भारत में एक राजनीतिक मुद्दा है रेप
सरकार महिलाओं की रक्षा के लिए सैकड़ों कानून बना सकती है, लेकिन वे बेकार क्योंकि कोई भी प्रवर्तन नहीं है।प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लंदन के टाउन हॉल में गुरुवार को अपने बहुत प्रचारित कार्यक्रम "भारत की बात, सब के साथ" में कहा, "बलात्कार बलात्कार है, इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए।" लेकिन . देश उनसे जानना चाहता है कि मिला, "वास्तव में भारत में बलात्कार का राजनीतिकरण कौन कर रहा है?" जम्मू के कठुआ में आठ वर्ष की एक बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गयी। कहा जा रहा है कि, इसका उद्देश्य उस क्षेत्र बकरवाल समुदाय को डराना था। आज उन बलात्कारियों को बचाने के लिए राज्य के दो पूर्ववर्ती बीजेपी मंत्रियों के समर्थन से स्थानीय नेताओं द्वारा आंदोलन किया जा रहा है। इस मामले में, बलात्कार संसाधनों पर नियंत्रण के लिए एक ऐसा हथियार है जिसे दक्षिण पंथी राजनीति का समर्थन है।
उन्नाव में 16 साल की एक किशोरी का कथित रूप से बीजेपी विधायक ने बलात्कार किया था, कहा जाता है कि इसका उद्देश्य राजपूतों द्वारा नीची जातियों को आतंकित करने के लिए किया गया था। बलात्कारी को ठाकुर लॉबी-वर्चस्व वाले राज्य सरकार द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। यह मामला तबतक वैसे ही दबा रहा जब तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सी बी आई के जरिये कार्रवाई नहीं की। पिछले पांच सालों में दक्षिणपंथी ताकतों ने कथित तौर पर कई महिलाओं शील भंग किया है। उद्देश्य था पुरुष वर्चस्व , महिलाओं पर अधिकार, या जाति-सांप्रदायिक प्रभुत्व के साधन के रूप में। यहां यह समझना जरूरी है कि महिलाएं अपने स्त्रीत्व की वजह से हाशिए पर हैं। पुरूष और स्त्री एक स्वाभाविक निर्माण है और यौन शोषण एक जैविक क्रिया है। दोनों पितृसत्ता की शक्ति की गतिशीलता हैं। क्योंकि यह जाति, वर्ग , धर्म, राष्ट्रीयता, या किसी भी संस्कृति के साथ जुड़ा हुआ है और हाशिये पर है। एक दलित महिला से न केवल एक महिला होने के कारण बलात्कार किया जा सकता है, बल्कि उसके एक दलित होने के कारण भी।
कठुआ और उन्नाव की घटनाओं के बाद अब कई विरोध हुए हैं जिनमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य भी शामिल हैं और मोदी सरकार सार्वजनिक गुस्से का लक्ष्य बनी रही।
नरेंद्र मोदी जब 18 अप्रैल को लंदन पहुंचे तो भारत में यौन हिंसा के बढ़ते ज्वार को देखते हुए कई गुटों ने उनकी अगवानी विरोदा प्रदर्शन किये।वे नारे लगा रहे थे "मोदी घर जाओ " और "हम घृणा और लालच के मोदी के एजेंडे के खिलाफ हैं।" वहां बसे भारतीय अपने नेता की कथित निष्क्रियता से परेशान हैं। यही नहीं , कठुआ, उन्नाव और सूरत के हालिया बलात्कार पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करते हुये सोमवार को न्यूयॉर्क का हिंदू संगठन साधना के सदस्य यूनियन स्क्वायर पर चढ़ आये। " यूनाइटेड फॉर जस्टिस " के नाम से इस प्रदर्शन में शामिल वक्तओं ने भारत सरकार की आलोचना की और बलात्कारियों को समर्थन देने का आरोप लगाया।
2015 में भारत में बलात्कार के कुल 34,651 मामले दर्ज किये गये। इनमें से 33,098 मामलों में, पीड़ित अपराधियों को जानते थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बलात्कार की शिकार महिलाओं में छह साल से कम उम्र की बिच्चयां और 60 वर्षों से अधिक की महिलाएं शामिल थीं। मध्यप्रदेश में 4,391 बलात्कार के मामले दर्ज किये गयके जो कि अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक हैं, राजस्थान एक और प्रमुख राज्य है। दिल्ली में 2,199 ऐसे मामले सामने आए - जो केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक है। यह महत्वपूर्ण है कि पिछले पांच वर्षों से राजस्थान में और मध्य प्रदेश में 15 वर्षों से भाजपा का शासन है। अगस्त 2016 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में बलात्कार के 34,600 मामले दर्ज हुये थे, मध्यप्रदेश और दिल्ली कुख्यात सूची में सबसे ऊपर हैं। भारत सरकार ने फास्ट ट्रैक कोर्ट और एक कठोर बलात्कार कानून बनाया जिसमें मृत्युदंड शामिल है। लेकिन एक युवती पर 2012 में भयानक हमले ने देश को चौंका दिया था। अपराध के आंकड़े बताते हैं कि तबसे हालात खराब हो गए हैं। देश की पुलिस तहकीकात और अदालतों में परेशान करने वाली प्रणालीगत समस्याओं के कारण इसे प्रात्साहन मिल रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 2012 के बाद से, बलात्कार के मामले 2016 में 60 प्रतिशत बढ़कर करीब 40,000 हो गये, जिसमें 40% बाल बलात्कार की घटनाएं थीं। इन घटनाओं में गिरफ्तार लोगों की सजा दर लगभग 25 प्रतिशत बनी हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों से पता चला है कि 2016 के अंत तक बलात्कार के मामलों में लंबित मामले 133,000 से अधिक थे। 2012 में यह लगभग 100,000 से था। हर साल बलात्कार के 85 प्रतिशत मामले आदालते यूं ही पड़े रह जाते हैं। दिल्ली में राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि 2017 में यौन हिंसा से जुड़े हत्या के लिए 43 मौत की सजा दर्ज की गई थी, जो पिछले वर्ष की संख्या में दोगुना है। यौन अपराध अधिनियम के तहत 2012 में बच्चों के संरक्षण के लिये पारित कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के पीड़ितों के मामले में पुलिस को एक महीने के भीतर सबूत इकट्ठा करना होगा और अदालत को एक साल के भीतर सुनवाई पूरी करनी होगी। आंकड़ों के मुताबिक 2012 और 2016 के बीच हर वर्ष के लिए जांच की गई सभी बलात्कारों में से एक तिहाई के लिए पुलिस फाइलें खुली रहती हैं। भारत में बलात्कार महामारी की जांच करने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। सरकार सौ कानून बना सकती है और फिर भी यह असफल हो जाएगी क्योंकि इसे लागू भी तो करना होगा, जो हो नहीं रहा है। इसके लिये जो राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है वह केंद्र और अधिकांश राज्यों में गायब है।
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