मध्यवर्ग का मोहभंग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार शुरू किया था तो लोगों के अंदर विशेषकर भारतीय मध्यवर्ग के भीतर, चाहे वह देश में हो या विदेश में , एक उम्मीद जगी थी कि महंगाई घटेगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इसी उम्मीद पर देश ने उन्हें सत्ता की बागडोर सौंपी । देखते- देखते 5 साल गुजर गये । देश के शहरों में पेट्रोल की कीमतें आज उस समय से ज्यादा हैं जब 26 मई2014 को नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली थी। हालांकि उस समय से अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमत काफी गिरी। लेकिन देश में ऐसा कुछ नहीं दिखाई पड़ा। देश का मध्य वर्ग भारी मंदी से जूझ रहा है। वेतन बढ़ नहीं रहे हैं, रोजगार घटते जा रहे हैं, बोनस बंद हो चुके हैं। उम्मीद थी कि 2018 के बजट मैं आयकर की छूट की सीमा बढ़ेगी पर ऐसा नहीं हुआ। कीमतों के बढ़ने से , खासकर पेट्रोल की कीमतों के बढ़ने से , नौजवानों का एक वर्ग काफी दुखी है।
देश का मध्यवर्ग चुनाव में सबसे बड़ा वोट बैंक है। मध्य की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है। 2009 के 20% से बढ़कर 2014 में यह अनुपात 36% हो गया। 2014 में भाजपा ने बड़े जोर शोर से प्रचार किया था कि रोजगार बढ़ेंगे और भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएंगे। इस वजह से मध्यवर्ग भाजपा की तरफ खींचा चला आया। क्योंकि इसके पूर्व यह वर्ग राजनीतिज्ञों और राजनीति से क्षुब्ध हो चुका था , उस वर्ग का मोहभंग हो चुका था। यही कारण है कि इस समुदाय ने बहुत बड़ी संख्या में भाजपा को समर्थन दिया। मतदान का समग्र अनुपात 9% बढ़ गया । भाजपा का वोट का हिस्सा जहां10% बढ़ा वहीं कांग्रेस का 9% कम हो गया।
पूरी अवधि लगभग बीत चुकी है और सरकार की नीतियों के कारण महंगाई उल्टे, पेट्रोल के मामले में, बढ़ गई। क्योंकि, सरकार चाहती थी कि वह पेट्रोल की कीमतें बढ़ा कर व्यापार घाटे को पूरा करें। दुनिया भर में पेट्रोल की गिरती कीमत ने सरकार को अपना मंसूबा पूरा करने का अवसर दिया। लेकिन देश की उम्मीदें खत्म हो गयीं । भाजपा को उपचुनाव में करारा झटका लगा। यह एक प्रबल संकेत है। पिछले दिनों से लगातार जीवन जीना महंगा होता जा रहा है। भाजपा जब सत्ता में आई थी तो सर्विस टैक्स 12.5 प्रतिशत अब जीएसटी के नाम पर बढ़कर 18% हो गया है। इससे पानी बिजली आवागमन सब कुछ महंगा हो गया। वरिष्ठ नागरिक जो जीवन भर की संचित पूंजी के ब्याज से जिंदगी गुजारते हैं वे हताश हैं क्योंकि बैंक जमा पर ब्याज दर घट चुकी है। सोचिए, उनके लिए कितना बड़ा संकट है जिनकी ब्याज दर से जिंदगी चलती थी। एक तरफ ब्याज की दर कम हो गई यानी आमदनी घट गई और दूसरी तरफ महंगाई बढ़ गई यानी उस आमदनी में जीना कठिन हो गया। मध्यवर्ग को टैक्स में छूट नहीं मिली जो चोट पर मरहम का काम करती , ऊपर से जो लाभ मिलता था वाह सेस मैं1% इजाफा करके घटा दिया गया।
मध्य वर्ग के मतदाता पढ़े लिखे हैं और चीजों को समझते हैं, उन्होंने अब सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं। कुछ तो भाजपा से विमुख हो चुके हैं और हो सकता है उसे वोट न दें। लेकिन वोट नहीं देना या कहें कि मतदान में शामिल नहीं होना तो पार्टी के लिए फायदेमंद हो जाएगा। भाजपा को भी महसूस होने लगा है लिहाजा वह वामपंथी आदर्शों की ओर हल्का सा झुकती दिख रही है , विशेषकर अपनी आर्थिक नीतियों के मामले में। जैसे आरंभ में भाजपा मनरेगा के विरुद्ध थी लेकिन अब उसने उस मद में आवंटन बढ़ा दिया है। संदेश साफ है की अंत्योदय कार्यक्रम गलत नहीं था। लेकिन अन्य गैरबराबरियों का क्या होगा ?
भाजपा ने बड़ी चालाकी से एक नया वोट बैंक तैयार करना शुरू कर दिया है। वह वोट बैंक है गरीब और निम्न मध्यवर्गीय आबादी का। अब चूंकि मध्यवर्गीय आबादी तेजी से बढ़ रही है और कोई सरकार इसे नजरअंदाज करने का साहस नहीं कर सकती इसीलिए वह इसे भी लुभाने की कोशिश में है । 2014 में कांग्रेस ने मध्यवर्ग को ध्यान में नहीं रखा । कांग्रेस को उसकी कीमत चुकानी पड़ी । भाजपा को शक है कि मध्य मध्यवर्ग अमीरों के साथ जा सकता है यही कारण है कि पार्टी गरीब और निम्न मध्यवर्गीय समुदाय को लुभाने में लगी है। वह कितना सफल होगी यह तो वक्त ही बताएगा।
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