हिंदू आतंकवाद का शिगूफा
यह लगातार स्पष्ट होता जा रहा है धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारत में अल्पसंख्यकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और उससे भी खराब है कि हिंदू विरोधी वातावरण तैयार किया जा रहा है। यह अत्यंत दुखद है और कहें हास्यास्पद है कि अभी तक स्पष्ट नहीं है कि हिंदू क्या है? अब से कोई 50 साल पहले1966 में भारत के मुख्य न्यायाधीश पी बी गजेंद्रगडकर ने 5 सदस्य संविधान पीठ की ओर से लिखा कि “ यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि दर्शन हिंदू क्या है और कौन है , हमें यह जानना नामुमकिन लग रहा है हिंदू धर्म क्या है यहां तक कि इसे पूरी तरह बताना भी मुश्किल है। लगभग 70 साल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में निर्णय देते हुए कहां कि यह सामान्य ज्ञान है कि हिंदुत्व में कई विपरीत तरह के विश्वास आस्था और कर्मकांड है तथा पूजन विधि भी अलग अलग है और यह परिभाषित करना हिंदू क्या है बड़ा कठिन है। अब जबकि यह मामला हिंदुओं को आतंकवादी कहने का आता है लगता है सब के सब चुटकियों में जान लेते हैं हिंदू क्या है और इसके लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं पड़ती। आश्चर्य नहीं है कि भाजपा हिंदू हितों की रक्षक है । उसने सदा यह कहा कि हिंदू आतंकवाद शब्द अस्वाभाविक है। लगभग 10 साल पहले चंडीगढ़ में एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि कांग्रेस हिंदू आतंकवाद का शिगूफा छोड़ गई है अपने वोट बैंक के लाभ मैं। कांग्रेस ने मालेगांव विस्फोट के बाद यह शब्द गढ़ा लेकिन कभी भी मुस्लिम आतंकवाद का नाम उसने नहीं लिया। अब उसके बाद से कितना कुछ बदला। कांग्रेस सत्ता में नहीं रही। इसका समर्थन इसका पार्टी तंत्र और इसका विस्तार सब कुछ घट गया। हिंदू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद शब्द एक तरह से फूट डालो राज करो जैसी नीति का बिंब है। दूसरी तरफ यह एक ऐसी कथा भी है जिससे सभी धर्म आस्थाएं और परंपराएं बराबर हो जाती है तथा समान रूप से अच्छी और बुरी दिखाई पड़ती है। यह आधुनिकतावादी आदर्श है और कट्टर धर्मनिरपेक्षता भी। 2008 में आडवाणी जी ने टिप्पणी की थी सभी आतंकवादी चाहे जो हों जिस धर्म के भी हों आतंकवादी हैं, उसे सजा दी जानी चाहिए। यह एक तरफ से सुझाव है लेकिन इसमें वह तथ्य अंधेरे में चला जाता है की कुछ धार्मिक परंपराएं आतंकवाद और हिंसा को लेकर ज्यादा उदार हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यजनक है कि सभी धर्म अपनी आदर्श स्थिति में परम पहुंच गए कमाल बताते हैं लेकिन वास्तविकता में सभी समानरूप में बहुलवादी या शांतिपूर्ण नहीं है। किसी भी धर्म की व्याख्या करें या उसके विश्लेषण के लिए जरूरी है की उसके सिद्धांतों और आचरण का विश्लेषण किया जाए। वर्तमान में इस विषय पर और ज्यादा विमर्श की आवश्यकता है क्योंकि हाल में आतंकवाद विरोधी अदालत में न्यायमूर्ति के रवींद्र रेड्डी ने मक्का मस्जिद बम कांड में आरोपियों को दोषमुक्त करार प्रिया। मक्का मस्जिद हैदराबाद 400 वर्ष पुरानी मस्जिद है और यहां 18 मई 2007 को जुमे की नमाज के दौरान एक शक्तिशाली पाइप बम फटने से दो व्यक्ति मारे गए थे 58 आहत हो गए थे। जांच करने वाले एनआईए के पास अभियुक्तों के खिलाफ कोई सबूत नहीं था और वह सब के सब रिहा हो गए। अखबारों में यह छपा कि जज ने फैसला देने के बाद इस्तीफा दे दिया न कि क्या फैसला था यह छपा। ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले पर तीखी टिप्पणी की।
लेकिन क्या इसका यह अर्थ है हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता? नहीं, हिंदुत्व का जो चरित्र होता है उसके अनुसार किसी को बहकाकर दूसरे पर हमले नहीं करवाए जा सकते। जैसा कि जय मूर्ति गजेंद्रगडकर ने कहा है “ दुनिया में सभी धर्मों के विपरीत हिंदू धर्म में कोई एक पैगंबर या देवता नहीं है इस धर्म में किसी एक देवता की पूजा नहीं होती और ना ही यह कोई एक कर्मकांड मांगता है। हिंदू धर्म में कोई एक दार्शनिक अवधारणा, धार्मिक पूजा पद्धति नहीं है। वस्तुतः यह किसी संकीर्ण पारंपरिक स्वरूप या धर्म के एक तौर तरीके को नहीं मानता।
हिंदू राष्ट्रवाद या राजनीतिक हिंदुत्व को अपनी इस जीवन शैली मैं फेरबदल नहीं करना चाहिए। कट्टरवाद हिंदू धर्म को आघात पहुंचाता है। हिंदुओं को उन साजिशों पर भी नजर रखी होगी जो हिंदू धर्म को बदनाम करने और उसे विभाजित करने के लिए की जा रही हैं। ब्रिटिश राज में 1871 की जनगणना में धर्म और जाति अभी उल्लेख किया जाने लगा और इससे जो दानव निकला उसे आज तक रोका नहीं जा सकता। सही धर्मनिरपेक्षता है किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को समर्थन नहीं दिया जाए।
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