राहुल की कांग्रेस क्या इतिहास दोहरा सकेगी?
हमारे बहुत से पाठकों को 1977 का वह मंजर याद होगा जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी। जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति ने तूफान खड़ा कर दिया था और कांग्रेस को सत्ता से हटा दिया था। 1977 में पहली बार कांग्रेस पराजित हुई। उसके पहले से ही लोग कयास लगा रहे थे कि कांग्रेस हारेगी लेकिन इस बुरी तरह से पराजित होगी यह अंदाजा किसी को नहीं था। कांग्रेस को केवल 154 सीटें मिलीं। इंदिरा जी खुद रायबरेली में राजनारायण से हार गयीं। रानी जोकर से पिट गई । बहुत से राजनीतिक पंडित कहने लगे कि कांग्रेस गई । अब कुछ नहीं हो सकता। 1977 में राजनीति के सबसे कठिन दौर में थी इंदिरा गांधी। 6 महीने बाद इंदिरा जी को लगा भगवान ने उनके लिए संदेश भेजा है। बिहार के एक अनजान से गांव बेलछी में सवर्णों ने 11 दलितों को गोली मार दी और एक-एक कर जिंदा जला दिया। 1977 का मार्च का महीना था। जनता पार्टी की सरकार अपने विजय के जश्न में मशगूल थी और बेपरवाह थी। बेलछी हत्याकांड ने देश को दहला दिया था। लेकिन नव निर्वाचित सरकार का कोई मंत्री चाहे वह राज्य सरकार का हो या केंद्र का हो गांव वालों से सहानुभूति दिखाने नहीं गया। वे अपनी जीत का जश्न मना रहे थे और नफरत की सियासत फैलाने तथा इंदिरा जी को बदनाम करने में लगे थे । यह पहला मौका था जब कांग्रेस को डूबता हुआ जहाज कहा गया था। जनता उस पर गुस्सा थी। मसला था उन्होंने देश में 18 महीनों तक इमरजेंसी लगा रखी थी। 1977 का चुनाव वह बुरी तरह हारी थीं। उनके खिलाफ बेहद खराब वातावरण बन गया था। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए शाह कमीशन बैठाया था और ऐसा लग रहा था कि उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। हालात बेहद संवेदनशील थे और ऐसे में इंदिरा जी ने बेलछी जाने का निर्णय किया।वह उनकी राजनीति के पुनरोदय का वक्त बना। जनता पार्टी की सरकार सक्रिय हो सके उसके पहले वह चल पड़ीं। पहले ट्रेन से फिर जीप से फिर ट्रैक्टर से और तब हाथी से। बाढ़ और भारी कीचड़ लांघ कर वह बेलछी पहुंचीं। भंग मनोबल और आतंकित गांव वालों ने उनका स्वागत किया मानो गांव की बेटी आ गई है । उन्हें आजाद कराने वाली आई है। कोई काला झंडा नहीं था । ऐसा लग रहा था गांव के लोगों ने उन्हें इमरजेंसी के लिए माफ कर दिया। गांव वालों ने उनका स्वागत किया। नारे लगे "आधी रोटी खाएंगे इंदिरा को बुलाएंगे" और "इंदिरा के अभाव में हरिजन मारे जाते गांव में।"
यकीन नहीं हो रहा था की यह वही इंदिरा गांधी हैं जिसे 6 महीने पहले जनता ने बुरी तरह पराजित कर दिया था। इंदिरा गांधी आत्मविश्वास से भरी हुई बेलछी से लौटी और ऐसा लगा कि वह फिर से सियासत के प्लेटफार्म पर लौट आएंगी। इसके बाद जो कुछ भी हुआ वह इतिहास में दर्ज है । लहर लौट गई और 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आ गयीं।
कहा जाता है इतिहास खुद को दोहराता है आज फिर कांग्रेस उसी मोड़ पर खड़ी है ,जैसा इंदिरा जी के जमाने में हुआ था। कांग्रेस पर भ्रष्टाचार घूसखोरी इत्यादि के आरोप थे और वह सत्ता से बाहर कर दी गई थी।उनकी लीडरशिप स्टाइल पर भी उंगली उठाई गई। इतना ही नहीं और कई आरोप थे।
लगभग 4 दशक के बाद कांग्रेस को आज फिर वही दिन देखना पड़ा है। ऐसा लग रहा हैकि वह इतिहास की रद्दी की टोकरी में फेंक दी गई। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी लोकसभा में केवल 48 सीट पा सकी और सिर्फ 4 राज्यों में उसकी सरकार सिमट कर रह गई। ऊपर से कांग्रेस मुक्त भारत का नारा इन दिनों साधारण मुहावरा बन गया है। जिन लोगों ने कांग्रेस का मृत्यु संदेश लिखा उनका विचार है कि अब वह सत्ता आएगी। लेकिन ऐसे भी कुछ लोग हैं जिन्हें यकीन है कि पार्टी दोबारा जीतेगी। हवा ऐसी फैलाई गई है कि राहुल को लोग "पप्पू" ही समझते हैं । राहुल को खुद को बदलना होगा । आज की राजनीतिक पार्टी इस इस प्रकार के नकारात्मक मुहावरों के बाद नहीं टिक सकती और उसका चुनावी भविष्य बर्बाद हो जाता है । राहुल को यह दिखाना होगा कि गूंगी गुड़िया कही जाने वाली इंदिरा गांधी दुर्गा कही जाने लगी। यदि इंदिरा गांधी 1977 के पराजय के बाद पार्टी की निर्विवाद नेता बन सकती थीं तो राहुल भी पार्टी के भविष्य को सुधार सकते हैं। जरूरी है यह जानना कि कैसे। वह इस स्थिति में क्या 2019 में 1980 को दोहरा सकते हैं।
लेकिन राहुल इंदिरा गांधी नहीं हैं और ना नरेंद्र मोदी मोरारजी देसाई । 1980 के चुनाव में जनता चंद्रशेखर से ऊब चुकी थी और पार्टी में भी विखंडन शुरू हो गया था। लेकिन फिर भी राहुल तन कर खड़े होते हैं और अपना उत्साह दिखाते हैं निश्चय ही पार्टी का मनोबल बढ़ेगा और 2019 में फ़िजां बदलेगी। भाजपा 2014 को दौर में आने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देगी। वह कोई ऐसा दांव नहीं है जो छोड़ेगी। उधर राहुल को भी 1980 को दोहराने के लिए जोर लगाना पड़ेगा । अब देखना है कि 2019 दूसरा 2014 होता है या 1980। यह तो समय बताएगा। लेकिन हमें यह मुहावरा याद रखना होगा कि "भारत में दो चुनाव कभी एक से नहीं होते।"
0 comments:
Post a Comment