हरिराम पाण्डेय
14 जून 2011
किसी भी लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के चंद कायदे- कानून होते हैं जो सार्वदैशिक या कहें कि वैश्विक होते हैं। हालांकि वे कोई लिखित संविधान के अंग नहीं होते पर रिवाजों में उसे अपनाया जाता है। मसलन दुनिया में हर जगह पार्टी के काम- काज के लिये पार्टी का नेता जिम्मेदार माना जाता है और चुनाव में पार्टी अगर हार जाती है तो वह नेता अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए पद से इस्तीफा दे देता है। पर लगता है कि ऐसा कोई लोकतांत्रिक रिवाज कम्युनिस्ट पार्टी में नहीं माना जाता है। अब इसमें कोई हैरत नहीं है कि माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव प्रकाश करात ने पश्चिम बंगाल में पार्टी की शर्मनाक पराजय के बाद पद नहीं छोड़ा। प्रकाश करात के दिमाग में जवाबदेही की वह प्रतिबद्धता है ही नहीं जो एक जन नेता में होनी चाहिये। उनके भीतर वह नैतिकता है ही नहीं जिसके कारण वह नेता पार्टी की पराजय के बाद अपनी जिम्मेदारी को कबूल करते हुए पद से इस्तीफा दे देता है। इस पूरे प्रकरण में जो सबसे आहत कर देने वाला तथ्य है वह है पद नहीं छोडऩे के बारे में उनकी दलील। प्रकाश करात की दलील है कि पार्टी के नेता का पद चुनाव के नतीजों के आधार पर तय नहीं किये जाते बल्कि उसका निर्णय पार्टी की विचारधारा (पार्टी लाइन) और अन्य मुद्दों के आधार पर होता है। इस दलील की व्यर्थता सब समझते हैं। सी पी एम संसदीय लोकतंत्र की वकालत करती है। पार्टी के नेता के पद पर किसे रखा जाय इसके लिये चुनाव के परिणाम को आधार नहीं बनाया जाता है। यह कहना सरासर सियासी बेईमानी है। सीधी सी बात है कि एक राजनीतिक विचारधारा जिसे आम जनता ने मानने से इंकार कर दिया हो तो इसका साफ मतलब है कि उस विचारधारा में कहीं ना कहीं भारी दोष है। प्रकाश करात का पद नहीं छोडऩे के बारे में दलील यह छिपाने की कोशिश है कि चुनाव में पराजय का मतलब आम जनता ने पार्टी लाइन को अस्वीकार नहीं किया है। स्व. हरकिशन सिंह सुरजीत के बाद श्री प्रकाश करात ने पद संभाला और तबसे उन्होंने पार्टी की हैसियत और मकसद दोनों को ओछा कर दिया। पार्टी कांग्रेस के विपक्ष की भूमिका निभाने लगी। कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस लेने के पीछे यही मनोवृत्ति थी। उनके काल में पार्टी लाइन कितनी कमजोर हुई इसका अंदाजा विभिन्न चुनावों के नतीजों से लगाया जा सकता है। पश्चिम बंगाल में पार्टी की स्थिति बेहद शर्मनाक हो गयी ओर संसद में भी इसकी ताकत काफी घटी। आज प्रकाश करात एक ऐसी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं जे न केवल बंगाल और केरल में चुनाव हारी है बल्कि उसने बड़ी तेजी से जनाधार भी खोया है। पार्टी धीरे धीरे राष्टï्रीय स्तर पर अप्रासंगिक होती जा रही है। अगर यह पराजय पार्टी लाइन का नतीजा है तो इस लाइन को जितनी जल्दी हो त्याग दिया जाना चाहिये। पार्टी का नेता जो कुर्सी पर बना रहना चाहता है वह इसी तरह के अहमकाना दलीलें दिया करता है। अब अगर करात की यह पार्टी लाइन कायम रही तो बेशक पार्टी का भविष्य अंधकारमय है।
Wednesday, June 15, 2011
करात का कानून
Posted by pandeyhariram at 10:07 PM
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