हरिराम पाणेय
22.6.2011
मजबूत लोकपाल बिल लाने के लिए सरकार को मनाने की तमाम कोशिशें नाकाम होने के बाद अब अण्णा हजारे फिर से आंदोलन की राह पर हैं। उन्होंने एलान किया है कि इस बार का उनका आंदोलन सरकार को सबक सिखाने के लिए होगा। बाबा रामदेव ने भी उनके इस प्रस्तावित आंदोलन को पूरा-पूरा समर्थन घोषित कर दिया है। अण्णा हजारे भड़के हुए हैं। कहते हैं कि पाकिस्तान से लड़े अब देश के दुश्मनों से लडेंग़े। वे और उनके साथी भ्रष्टïाचार मिटाने के लिये कमर कस कर निकल गये हैं। कभी अनशन कर सरकार को झुकाने पर आमादा हैैं तो कभी बिल के मसौदे को लेकर परेशान हैं, लेकिन सवाल है कि क्या इससे भ्रष्टïाचार खत्म होगा?
सिविल सोसाइटी व विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आयें। वे इसके खिलाफ अभियान चलाएं व जनता को जागरूक करें। वे सरकार पर तेजी से काम करने के लिए दबाव बनाएं। यह सब अच्छी बात है और हमारे देश के लोकतंत्र के मजबूत होते जाने के संकेत हैं। इनसे देश की राजनैतिक प्रक्रिया और भी स्वस्थ होती है। पर भ्रष्टाचार के जिस राक्षस का हम सामना कर रहे हैं, उसका वध तो अंतत: राजनैतिक प्रक्रिया के तहत होना है।
हमें इस मौके को बर्बाद नहीं करना चाहिए, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सही तरीके से लड़ी जानी चाहिए। आज कुछ लोग अनशन और भूख हड़ताल को इसके खिलाफ लड़ाई का हथियार बना रहे हैं। यह तरीका सही नहीं है, क्योंकि अनशन में मुद्दा पीछे छूट जाता है और अनशन करने वाले आदमी पर सारा ध्यान केंद्रित हो जाता है। मुद्दे को पीछे छोड़कर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते। महात्मा गांधी ने अनशन का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था, लेकिन महात्मा गांधी का मामला अलग था और तब देश की हालत भी भिन्न थी।
आजादी के बाद किसी बड़े नेता ने कभी अनशन का सहारा नहीं लिया। अनशन के अलावा आंदोलन के अन्य तरीके हैं, जिनका इस्तेमाल करके सरकार और समाज पर दबाव बनाया जाना चाहिए। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए हमें इसके स्वरूप को समझना पड़ेगा। भ्रष्टïाचार सत्ता की ही बुराई नहीं है, बल्कि एक सामाजिक बुराई भी है। यह हमारी सामाजिक व्यवस्था से निकलता है, इसलिए हमें उसके स्तर पर भी इसे मिटाना होगा।
आजादी के बाद हमारे देश में भ्रष्टाचार बढ़ता गया। यह इतना व्यापक हो गया है कि इसका होना नियम है और न होना अपवाद, लेकिन पिछले कुछ महीनों से भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आए हैं और उनमें जो बड़ी राशि शामिल है, उसने देश के लोगों के दिल और दिमाग को झकझोर दिया है। भ्रष्टाचार के इन मामलों पर सरकार ने जो प्रतिक्रिया दिखाई, वह भी लोगों को परेशान करने वाली रही। प्रधानमंत्री की छवि एक ईमानदार व्यक्ति की है और माना जाता है कि अपनी ईमानदारी के कारण ही वह इस पद पर पहुंचे हैं, लेकिन उनके नेतृत्व में बनी सरकार में इतना भ्रष्टाचार हो तो, लोगों के होश उड़ेंगे ही।
भ्रष्टाचार का अंत राजनैतिक प्रक्रिया के इस्तेमाल से ही होगा। यह सोचना गलत है कि राजनैतिक लोगों को अलग-थलग करके इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है। आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल बना है, वह राजनैतिक पार्टियों द्वारा पैदा किए गए दबाव की भी देन है। यह कहना गलत है कि बाबा रामदेव और अण्णा हजारे जैसे गैर राजनैतिक लोगों के कारण ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं। सच तो यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उन दोनों के अनशन करने के पहले ही अनेक प्रभावशाली लोग 2 जी स्कैम में जेल में पहुंच चुके हैं। राजनैतिक दबाव के तहत मुकदमे दर्ज हुए। अदालतों का भी उसमें योगदान रहा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार को लगाई गई लताड़ की हम अनदेखी नहीं कर सकते।
पिछले साल देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने करप्शन के सवाल को लेकर सफल भारत बंद करवाया था। आईपीएल घोटाले में राजनैतिक दलों के दबाव के कारण शशि थरूर को मंत्रिपरिषद से बाहर जाना पड़ा था। 2 जी स्पेक्ट्रम स्कैम में जेपीसी की मांग करते हुए पूरे विपक्ष ने संसद के शरद सत्र को ही नहीं चलने दिया था। उसके कारण सरकार दबाव में आयी थी और जेपीसी का गठन भी हो गया।
इसमें मीडिया की भी जबर्दस्त भूमिका रही। उसने भ्रष्टाचार के मामले को अच्छा कवरेज दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने में संसद की सर्वोपरि भूमिका की कोई भी अनदेखी नहीं कर सकता। संसदीय और लोकतांत्रिक दबाव सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने के लिए बाध्य कर देंगे। हमें संसद पर भरोसा करना चाहिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ जो सवाल खड़े हो रहे हैं, उनका हल अंतत: संसद से ही निकलना है।
Friday, June 24, 2011
राजनीतिक तरीके से ही दूर होगा भ्रष्टïाचार
Posted by pandeyhariram at 3:37 AM
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