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Friday, June 24, 2011

बेअसर क्यों है भ्रष्टïाचारविरोधी यह आंदोलन


हरिराम पाणेय
20.6.2011
इन दिनों देश में बहुत बड़ा आंदोलन चल रहा है। यह आंदोलन भ्रष्टïाचार के खिलाफ है और 1974 के जे. पी. आंदोलन के बाद देश में सबसे बड़ा आंदोलन है। यों तो संविधान ने सरकार को लोकहित में शासन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है, पर इसे मानता कौन है? किस पार्टी में दागी नेता नहीं भरे पड़े हैं? फिर वे किस मुंह से भ्रष्टाचार का मुद्दा उठायेंगे? केंद्र और राज्यों में विपक्षी पार्टियां जरूर सत्ता पक्ष पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही हैं, पर उनकी आवाज में कोई दम नहीं होता। चोर-चोर मौसेरे भाई! भूतपूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा कहते हैं कि 30 प्रतिशत लोग पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके हैं और 50 प्रतिशत लोग भ्रष्ट होने के कगार पर हैं। मात्र 20 प्रतिशत लोग ही पक्के तौर पर ईमानदार हैं। 30 प्रतिशत लोग कम नहीं होते। इसका अर्थ होता है कि हर तीसरा व्यक्ति पक्के तौर पर भ्रष्टï। अब सरकार कुछ कर नहीं पायी इसीलिए इस बार आंदोलन की कमान गैर राजनीतिकों के हाथों में आ गयी है। अण्णा हजारे और बाबा रामदेव के आंदोलन के तरीके अलग हो सकते हैं, आंदोलन का प्रभाव और परिणाम भी अलग हो सकता है, पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी मुहिम ने पूरे देश को उद्वेलित कर दिया है। जनता-जनार्दन को लग रहा है कि इस बार बात दूर तक जायेगी।
दरअसल, अभी तक प्रौढ़ या बुजुर्ग ही भ्रष्टाचार को कोसते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इन आंदोलनों ने युवा मनों को भी छुआ है। उन्हें भी समझ में आ गया है कि यह बात उनके कैरियर व भविष्य से सीधे जुड़ी है। अगर भ्रष्टाचार नहीं होगा, या कम होगा, तो सीधे रास्ते से उन्हें कैरियर और भविष्य की सीढिय़ां नजर आयेंगी। उनकी मंजिल आसान होगी। सोने पे सुहागा ये कि इससे समाज और देश भी खुशहाल होगा। अंतत: इन सबका असर उनके जीवन-स्तर और जीवन-शैली पर पड़ेगा। इसलिए युवाओं का प्रत्यक्ष व परोक्ष समर्थन इस आंदोलन को है। वे बदलते भारत की चाह कर रहे हैं और भारत के बदलने का स्वप्न देख रहे हैं।
यहां तक सब ठीक है... पर एक गड़बड़ है! तमाम कोशिशों, इच्छाओं और सपनों के बावजूद भारत बदल नहीं रहा, लेकिन इस तरह के भ्रष्टïाचार को संरक्षण कौन देता है? राजनीति या नौकरशाही। अब लोग देखते हैं कि तथाकथित बड़े- बड़े सम्मानित लोग भ्रष्टïाचार में लिप्त हैं और उनकी संपत्ति, धन- वैभव दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है तो लगता है सभी को कि यही रास्ता है सुख सुविधा से जीने का। प्रत्यूष सिन्हा ठीक कहते हैं कि समाज में अब भ्रष्टïाचार को निम्न दृष्टि से नहीं देखा जाता। भ्रष्टïाचार के मामले में पकड़े जाने पर भी सामाजिक प्रतिष्ठाï कम नहीं होती।
इसकी वजह भी साफ है। नेताओं और अफसरों को लग रहा है कि यह आंदोलन पानी का बुलबुला है, जो समय के साथ फूट जायेगा। आखिर वे घाट-घाट का पानी पिये हुए हैं। जानते हैं कि एक बार जनता का जोश ठंडा होने पर सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा। इसीलिए वे बेखौफ पहले की तरह भ्रष्टाचार कर रहे हैं। किसी का डर नहीं है उन्हें। संदेश साफ है। सिस्टम की जड़ों तक को भ्रष्टाचार ने इस कदर जकड़ लिया है कि अण्णा या रामदेव या फिर पूरे देश के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से भी वह बेअसर है। क्या भ्रष्टाचार की जड़ों को उखाडऩे वाला कोई महा-आंदोलन होगा? अगर हुआ, तो क्या वह सफल होगा?

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