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Friday, June 24, 2011

कहीं 'नत्थाÓ की गत ना हो अण्णा की


हरिराम पाणेय
17.6.2011
कई बार ज्यादा बक- बक करने वाले लोफर किस्म के राजनीतिज्ञ भी अनजाने ही सही बात बोल जाते हैं। मसलन अण्णा हजारे का मखौल उड़ाते हुये कांग्रेस के 'बयान पुरूषÓ दिग्विजय सिंह ने कहा कि अनशन करते- करते अण्णा हजारे की हालत कहीं 'नत्थाÓ की ना हो जाये। 'नत्थाÓ एक हिंदी फिल्म का अनशनकारी चरित्र है। अण्णा भ्रष्टïाचार मिटाने की बात करते हैं और उनके साथ कुछ नामी-गिरामी पांच अक्लमंद लोग (बाइबिल के फाइव वाइज मैन की तरह ) हैं। अन्ना को अच्छी तरह मालूम है कि अनशन पर बैठकर या फिर आंदोलन करके भ्रष्टाचार खत्म नहीं होने वाला है। भ्रष्टाचार विरोधी दूसरे संगठन वाले ये सब गैरसियासी तरीके से भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं। ये बार बार कह रहे हैं कि उनका आंदोलन किसी नेता या पार्टी के खिलाफ नहीं है। यानी यह सब सियासत से दूर रहकर ही भ्रष्टाचार का नाश करने और व्यवस्था परिवर्तन करने की सोच रहे हैं।
लेकिन, इससे कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि भ्रष्टाचार हो या व्यवस्था की खामियां ये सब राजनीति की वजह से ही हैं। गंदी राजनीति की वजह से ही आम आदमी परेशान रहता है। गंदी राजनीति ही भ्रष्टाचार की जड़ है। तो फिर राजनीति से दूर रहकर यह सब कैसे ठीक किया जा सकता है। किसी भी दिक्कत को जब तक जड़ से खत्म नहीं किया जाएगा वह फिर उभरती रहेगी और विकराल रूप लेती रहेगी। जो दिक्कतें भ्रष्ट और गंदी राजनीति की देन हैं उन्हें राजनीति में सुधार करके ही ठीक किया जा सकता है। राजनीति ही सारी दिक्कतों का हल है।
अब अण्णा के आंदोलन को ही देख लें। पूरा देश आंदोलन के समर्थन में है। सब चाहते हैं कि सशक्त लोकपाल बिल बने। आंदोलन को देखकर सरकार भी जॉइंट ड्राफ्टिंग कमिटी बनाने को मान गयी। लेकिन हुआ क्या....गैरसियासी लोगों पर फिर से सियासत भारी पड़ी। अब दो ड्राफ्ट कैबिनेट के पास भेजने की बात हो रही है। अण्णा कह रहे हैं कि सरकार ने उनके साथ धोखा किया। अब अगर दो ड्राफ्ट कैबिनेट में जाएंगे यानी पॉलिटिकल लोगों के पास तो वह तो फिर अपने फायदे वाले ड्राफ्ट को ही चुनेंगे। तो क्या फायदा हुआ आंदोलन से। अण्णा 16 अगस्त से फिर अनशन पर बैठ भी जाएं और फिर पूरा देश उनका साथ दे भी दे तो क्या होगा...यही कहानी दोहराई जाएगी। जब तक सियासत और सत्ता भ्रष्ट लोगों के हाथ में है तब तक यही होना है।
अण्णा या अण्णा जैसे लोग आंदोलन करके अपनी कुछ बातें मनवा तो सकते हैं लेकिन भ्रष्ट नेताओं को सुधार नहीं सकते। वह नहीं सुधरेंगे तो सियासत नहीं सुधरेगी और सियासत नहीं सुधरेगी तो व्यवस्था नहीं सुधरेगी। अगर सच में अण्णा और हम सबको व्यवस्था बदलनी है तो या तो जनता आंदोलन कर तख्ता पलट कर दे। यह क्रांति से ही हो सकता है। अथवा सियासत से भ्रष्ट लोगों के नामोनिशान ही मिटा दे। अगर सियासत में अच्छे लोग आएंगे तो उन्हें सुधारने की जरूरत नहीं पड़ेगी और न ही आंदोलन की जरूरत पड़ेगी। इसलिए अगर सच में अच्छी व्यवस्था चाहिए तो राजनीति से घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि राजनीति में घुसकर उसे साफ करने की जरूरत है। जरूरत यह है कि भ्रष्टï लोगों को राजनीति से बेदखल किया जाए और अच्छे लोग उन जगहों पर काबिज हों। सिर्फ वोट देने से कुछ नहीं होगा क्योंकि वोट लेने के लिए जो सामने होंगे वह भी तो भ्रष्टï होंगे। जब जनता साथ देगी तो व्यवस्था में परिवर्तन होकर रहेगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ अलग से लड़ाई लडऩे की जरूरत नहीं होगी।

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