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Wednesday, June 8, 2011

बाबा रामदेव ने देश को छला है


हरिराम पाण्डेय
7जून 2011
इन दिनों देश में बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के भ्रष्टïाचार विरोधी आंदोलन की सबसे ज्यादा चर्चा है। ताजा खबरों के मुताबिक बाबा ने सरकार को माफ कर दिया और अन्ना जंतर मंतर के बजाय राजघाट पर अनशन करने को अड़े हैं। इन आंदोलनों में सबसे बड़ा मोहरा है आम जनता। नेता और मीडिया जो चाहते हैं उन्हें समझाते हैं, उकसाते हैं और फिर समझा- बुझा कर हट जाते हैं। यह वोट लेने के लिये दिये जाने वाले आश्वासनों से लेकर अन्ना के अनशन तक सबमें दिखता है। आखिर बाबा ने इतने लोगों की भावनाओं से क्यों खिलवाड़ किया? क्या इसे आचरण की ईमानदारी कहा जा सकता है। भ्रष्टïाचार खत्म करने के इतने नारों के बाद यह कहते हुए शर्म भी आती है और अफसोस भी होता है कि हमारे पास ईमानदारी नहीं है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भ्रष्टाचार गहराई तक उतर चुका है और बेईमानी एक राष्ट्रीय मजबूरी बन गयी है। आज स्थिति यह है कि हमारे यहां बेईमानी, भ्रष्टाचार की खुली लूट है। जो चाहता है वह लूट लेता है। यहां तक कि हम खुद ही खुद को लूट रहे हैं। जुर्म, वारदात, नाइंसाफी, बेईमानी,चालाकी और भ्रष्टाचार का सैकड़ों साल पुराना किस्सा कभी गेरुआ बाने में कभी गांधी टोपी में या फिर कोई और नयी पोशाक पहनकर फिर हमारे दिलों पर दस्तक दे रहा है। रगों में लहू बन कर उतर चुका है भ्रष्टाचार का कैंसर। अवाम सियासत के बीज बोकर हुकूमत की रोटियां सेंकने वाले भ्रष्ट नेताओं के भविष्य का फैसला करना चाहती है। बेईमान सियासत के इस न खत्म होने वाले दंगल में ईमानदारी थक कर चूर हो चुकी है। बेईमान और शातिर सियासतदानों की नापाक चालें हमें जख्मी कर जाती हैं तो हम संन्यासी और गांधीवादी की ओर कराहते हुए देखते हैं लेकिन वहां भी भावनाएं दम तोड़ जाती हैं। महंगाई, गरीबी, भूख और बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दों से रोजाना और लगातार जूझती देश की जनता के सामने भ्रष्टाचार इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा और सबसे खतरनाक बीमारी है। अगर इस बीमारी से हम पार पा गये तो यकीनन हमारा देश सोने की चिडिय़ा वाला वही सुनहरा हिंदुस्तान हो जायेगा। पर क्या ऐसा हो पाएगा, क्या आप ऐसा कर पाएंगे जी हां, हम आप से पूछ रहे हैं। अनशनकारियों और बाबाओं! के समाने भीड़ï लगा कर , मोमबत्तियां जला कर, नारे लगा कर, या सरकार को झुका कर हम भ्रष्टाचार की जंग नहीं जीत सकते। इस जंग को जीतने के लिए खुद हमारा बदलना जरूरी है। भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढ़ावा देने में हम भी कम गुनहगार नहीं हैं।
मंदिर में दर्शन के लिए, स्कूल अस्पताल में एडमिशन के लिए, ट्रेन में रिजर्वेशन के लिए, राशनकार्ड, लाइसेंस, पासपोर्ट के लिए, नौकरी के लिए, रेड लाइट पर चालान से बचने के लिए, मुकदमा जीतने के लिए भी हम ही तो रिश्वत देते हैं। एक बार ठान कर तो देखिए कि आज के बाद किसी को रिश्वत नहीं देंगे। फिर देखिए ये भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी कैसे खत्म होते हैं। दिल्ली का जन्तर-मंतर। यानी वह दहलीज जहां से देश का गुस्सा अपनी सरकार से फरियाद करता है।पिछली बार जब अन्ना का अनशन हुआ था तो जंतर मंतर पर गम और गुस्से का अजीब संगम था। क्योंकि अन्ना के समर्थन में आने वालों का ये मानना है कि अन्ना जो कहते हैं सही कहते हैं।
इसी तरह की भीड़ पिछले हफ्ते रामलीला मैदान में भी दिखी थी। ये भीड़ किसी वोट बैंक का हिस्सा नहीं बल्कि उनकी थी जो भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। लेकिन क्या हुआ। फिर एक चुप्पी सी दिखने लगी है फिजां में । बाबा रामदेव के माफी की खबर ने आमजनता के सपनों से छल किया है। वे एक मुर्दा चुप्पी को आवाज दे रहे हैं। सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना:
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।
क्या बाबा रामदेव की माफी इस बात का जवाब दे सकती है?

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