हरिराम पाण्डेय
16.6.2011
एक बार फिर भयानक महंगाई मध्यवर्गीय घरों पर दस्तक दे रही है। हालांकि यह कहना लोगों को आतंकित करना होगा कि दुनिया जब आर्थिक दुरवस्था से उबर रही है तो हमारा देश आर्थिक मंदी का शिकार होने जा रहा है। आर्थिक स्थिति के हालात के जो संकेत मिल रहे हैं उससे तो साफ जाहिर होता है कि यदि महंगाई को नहीं रोका गया और ब्याज की दरें नहीं नियंत्रित की गयीं तो आर्थिक विकास जो हो चुका है वह तो व्यर्थ हो ही जायेगा साथ ही उस विकास का सपना भी चूर- चूर हो जायेगा। गत वर्ष जनवरी से मार्च के बीच सकल घरेलू उत्पाद के विकास की दर 9.4 प्रतिशत थी जो इस साल उसी अवधि में घट कर 7.8 प्रतिशत हो गयी। अब सत्ता के टुकड़ों पर पलने वाले आर्थिक विशेषज्ञ कह सकते हैं कि विकास की गिरती हुई दर वित्त मंत्रालय की सोची स्कीम के कारण है। वित्त मंत्रालय ने 'ओवर हीटेड इकॉनोमीÓ की संभावना से ऐसा किया है जिससे दूरगामी दुष्परिणाम से बचा जा सके। दलील चाहे जो भी हो लेकिन आम आदमी के लिये यह सही नहीं है। लम्बी अवधि तक आर्थिक विकास को अवरुद्ध किया जाना दरअसल समाज की वित्तीय स्थिति पर एक तरह से ऐसा पेंडुलम इफ्ेक्ट पैदा करता है जिसके एक सिरे पर विकास का प्रकाश है और दूसरे पर गरीबी का डरावना दु:स्वप्न। अतएव भारतीय रिजर्व बैंक को ब्याज दरें बढ़ाने से पहले गंभीरता से सोचना चाहिये। चूंकि मुद्रास्फीति और मौद्रिक घाटा आपस में सम्बद्ध हैं इसलिये सरकार यदि मुद्रास्फीति को बढऩे देती है तो बेशक मौद्रिक घाटा भी बढ़ेगा और इसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था की हालत जर्जर हो जायेगी और राजस्व को भी हानि पहुंचेगी। सरकारी रणनीतिकार तो यह कहेंगे कि ब्याज दरें बढ़ाने की बात में दम है क्योंकि इससे उनलोगों पर लगाम लगेगी जो असाधु हैं, लेकिन इस नीति से अतीत में भी बहुत क्षेत्रों को भारी घाटा लग चुका है। इसका नतीजा होगा कि जो क्षेत्र पिछड़ेंगे वे दूसरे को भी नीचे घसीट लेंगे। पिछले वर्ष लगभग नौ प्रतिशत विकास दर रही जो चालू वित्त वर्ष में 7.5 पतिशत होने की संभावना है। वैसे 7.5 प्रतिशत बहुत कम नहीं है, खास कर भारतीय अर्थव्यवस्था को देखते हुए यह ठीक- ठाक है क्योंकि विश्व के कई देशों की आर्थिक व्यवस्था लडख़ड़ा रही है। लेकिन हम उससे अपनी तुलना क्यों करें, हमारा मुकाबला तो चीन जैसी सशक्त अर्थ व्यवस्था से है। आर्थिक विकास और सहयोग संगठन ने भी लगातार कायम रहने वाली मुद्रास्फीति के खिलाफ चेताया है और निजी क्षेत्र के विकास में सब्सिडी बंद करने का सुझाव दिया है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ने भारत के अपने ताजा सर्वे में कहा है कि तेल का आयात करने वाले देशों में भारत का स्थान सर्वोपरि है और इसे इस सब्सिडी को इस तरह घटाना चाहिये कि उससे गरीब ज्यादा प्रभावित न हों। यह एक ऐसा निर्णय है जिसमें कई जोखिम हैं और इसके लिये व्यापक राजनीतिक सहमति की जरूरत है। ऐसा आज नहीं तो कल होना ही है क्योंकि तेलों की कीमतों में सब्सिडी का असर उन लोगों तक बमुश्किल पहुंचता है जिनके लिये वह बनाया गया है। इसका अधिकांश भाग तो दलाल खा जाते हैं। आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन के उस सर्वे में सबसे चौंकाने वाले सुझाव हैं जिसमें कहा गया है कि शासन में पारदर्शिता बढ़ानी चाहिये और एंटी करप्शन एजेंसियों को ज्यादा चुस्त बनाया जाना चाहिये। फिलहाल दोनों मसले सबसे ज्यादा लोगों को आकर्षित कर रहे हैं लेकिन सरकार का रवैया कुछ ऐसा है मानो 'आल इज वेल।Ó
Thursday, June 16, 2011
सरकार महंगाई रोके वरना विकास का बंटाधार हो जायेगा
Posted by pandeyhariram at 11:23 PM
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