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Wednesday, June 8, 2011

संत का सत्याग्रह बनाम सरकार की सख्ती

हरिराम पाण्डेय
6जून 2011
बाबा रामदेव के आंदोलन के प्रति मनमोहन सिंह सरकार की सख्ती के जनता में अच्छे संदेश नहीं जायेंगे यह तय है और ना इससे सोनिया जी के कांग्रेस या सरकारी तंत्र के बारे में जनता अच्छा सोचेगी। बाबा रामदेव ने विदेशों में जमा भारतीयों के अघोषित धन को देश में लाने और उन धनपतियों को दंड देने की मांग को लेकर सत्याग्रह तथा अनशन शुरू किया है। शनिवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में उनके मंच को तोड़ कर और उनहें जबरन वहां से उठा कर हरिद्वार ले जाने की पुलिस कार्रवाई से जनता गुस्से में है। यह गुस्सा अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में साफ दिखता है। बोफोर्स कांड में बार- बार की लीपा- पोती से धोखा खायी जनता इस मसले को लेकर काफी शंका में है। सरकार की मजबूरी भी बहुत नाजायज नहीं है क्योंकि इस सारे मामले में विदेशों की भी भूमिका है जिसके लिये न केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति अनिवार्य है बल्कि कूटनीतिक कुव्वत भी जरूरी है। अमरीका और इंग्लैंड के समक्ष भी विदेशों में जमा धन को लेकर समस्या खड़ी हुई थी पर उन्होंने इसे सफलतापूर्वक सुलझा लिया। अब चूंकि समस्या सरकार के साथ है पर उसे वह राजनीतिक लाभ के लिये जनता के सामने स्पष्टï ना कर इस पर लीपापोती करती है। और उसकी इस क्रिया से जनता की शंका और बढ़ती जाती है। अगर कोई सूचना भी मिलती है तो वह उस पर गंभीरता से विचार करने के बदले हल्के से लेती है। इससे जनता में शंका बढ़ती जाती है। अब जनता के मन में यह बात घर कर चुकी है कि सरकार विदेशी बैंकों में जमा काले धन के धारकों के विरुद्ध कार्रवाई ही नहीं करना चाहती है। इसके कारण जनता में गुस्सा बढ़ता गया और सरकार को इसका इल्म नहीं हो सका, क्योंकि सरकारी सूचनातंत्र वास्तविक कम और पसंदीदा खबरें ज्यादा परोसते हैं तथा अखबार मीडिया जनता के गुस्से को ठीक से प्रतिबिम्बित नहीं कर पायी। सरकार चाहती तो इस गुस्से को कम कर सकती थी। इसके लिये मनमोहन सिंह सरकार को सिविल सोसायटी के नेताओं से और आम जनता से बातें कर अपनी कठिनाइयों को बताना चाहिये था पर मनमोहन सिंह चुप्पी साधे रहे। प्रधानमंत्री को उन देशों में जाना चाहिये था जो भारत के आर्थिक अपराधियों के लिये मददगार हैं और उनसे सहयोग मांगना चाहिये था। उन देशों के नेताओं को बताना चाहिये था कि उनके सहयोग पर ही हमारे देश से उनके देश का कारोबार निर्भर होगा। सरकार को एक टास्क फोर्स का गठन करना चाहिये था जो न केवल फाइनेंशियल इंटेलिजेंस का काम करे बल्कि इस बात का भी पता लगाये कि अमरीका और इंग्लैंड ने कैसे इस पर फतह हासिल की साथ यह भी पता लगाये कि हमारी संस्थाओं में कहां और क्या खोट है जिससे ब्लैक मनी का सृजन होता है। सरकार ऐसे तंत्र भी तैयार कर सकती थी जो जनता को अनवरत यह बताये कि इस दिशा में क्या कुछ हो रहा है, पर सरकार ने कुछ नहीं किया। इसके बावजूद सरकार को जब पता लगा कि बाबा रामदेव इस मसले को लेकर व्यापक आंदोलन करने वाले हैं तो उसे उनके पास अपने दूत भेज कर अपनी पोजिशन बता देनी चाहिये थी पर उसने यह भी नहीं किया। उल्टे बाबा को अण्णा हजारे के आंदोलन को नगण्य बनाने में लग गयी। अब जब बाबा रामदेव अनशन पर बैठ गये तो सरकार उन्हें जबरन उठवा रही है। इससे आमतौर पर जनता गुस्से में आ गयी है। अब सरकार को चाहिये कि वह जनता को विश्वास में ले। इसके लिये संभव हो तो प्रधानमंत्री राष्टï्र को सम्बोधित करें और अपने मंत्रियों को काबू में रखें ताकि वे भड़काऊ भाषण न दें। जनता को विश्वास में न लेना और रामदेव के साथ ज्यादती करना सरकार के लिये लाभदायक नहीं हुआ।

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