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Friday, June 24, 2011

संज्ञा से विशेषण बनता बंगाल


हरिराम पाणेय
19.6.2011
पश्चिम बंगाल इन दिनों अजीब विरोधाभासों का स्थान बना हुआ है। एक ही साथ एक ही स्थान पर कहीं सकारात्मक आशाओं का स्रोत है और वहीं वह नकारात्मक निषेध का सीमांत। एक तरफ सरकार कहती है कि उद्योगपति अपने उद्योगों के लिये खुद जमीन खरीदें तो दूसरी ओर सरकार देश भर के उद्योगपतियों को बुला कर बातें कर रही है। अब सिंगुर को ही लें। यह राज्य का एक छोटा सा स्थान नहीं है जहां कभी टाटा ने छोटी कार बनाने का कारखाना लगाया था जो लगा नहीं। लेकिन वह आंदोलन की भूमि बन गयी तथा उससे नयी सियासत का राज्य की सत्ता में प्रवेश हुआ, उसी के साथ वह वामपंथी राजनीति के अवसान की पहचान बन गया। ममता बनर्जी इसी रास्ते सत्ता में आयीं। हालांकि अन्य राजनीतिज्ञों की तरह सत्ता हासिल होने के बाद उधर देखने की जरूरत नहीं थी। लेकिन दल और देश को देखते हुए वह ऐसा नहीं कर सकती हैं। उन्होंनें अपने चुनाव प्रचार के दौरान राज्य की जनता से वायदा किया था कि वह सिंगुर में उन लोगों की जमीन वापस कर देंगी जोश अपनी देने के इच्छुक नहीं थे। सरकार ने कथित तौर पर वहां एक तरफ से सभी किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था- उनमें वे लोग भी शामिल थे जिन्होंने अपनी- अपनी जमीन देने से इंकार किया था। हालांकि इसके लिये काफी आंदोलन हुआ, खून बहा, पुलिस का बल प्रयोग हुआ और राजनीतिक नाटक हुए, जिसमें ममता जी का अनशन और राज्यपाल से कई पक्ष की कई दौर की बातें हुईं , पर बात नहीं बनी। सरकार और पीडि़तों के पक्षकार अपनी- अपनी जगह पर अड़े रहे। इसके बाद ममता जी ने इसे ही चुनाव का मुद्दा बनाया। वे चुनाव जीत गयीं। हालांकि इस विजय में सिंगुर की अकेली भूमिका नहीं थी लेकिन सिंगुर भी एक था। मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता जी ने अपना वायदा निभाया और विधानसभा में एक विधेयक पारित कर उन्होंने सिंगुर की वह सारी जमीन वापस ले ली जिसे सरकार ने टाटा को देने के लिये अधिगृहीत कर लिया था, इसमें वे लोग भी शामिल थे जो जमीन देना नहीं चाहते थे। ममता जी का निर्णय कई मामलों में बड़ा ही महत्वपूर्ण है और इतिहास में दर्ज होने के काबिल है। इसमें प्रमुख है कि कोई भी नेता या यों कहें कि बहुत कम नेता चुनाव प्रचार के दौरान किये गये वायदों को पूरा करते हैं। अधिकांश तो उन वायदों को याद ही नहीं करते। लेकिन सिंगुर तो ममता जी के लिये एक तीर्थ बन गया है। विजयी होने के बाद और मुख्यमंत्री बनने के बाद वे अपना आभार प्रगट करने के लिये सिंगुर गयी थीं। ममता जी का यह अकेला कदम ही बेहद सराहनीय है। इसके बाद उनका दूसरा उल्लेखनीय कार्य है जमीन को वापस देने का फैसला। भारत के इतिहास में इस कदम की नजीर नहीं है। इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है कि सरकार का यह निर्णय समस्याओं से घिरा था। पहले योजना थी एक अध्यादेश लाने की। लेकिन यह तकनीकी कारणों से संभव नहीं हो सका। इसके बाद आनन- फानन में विधेयक विधान सभा में पेश करने की योजना बनी और उसे क्रियान्वित कर दिया गया। पूरी प्रक्रिया में जल्दबाजी बहुत दिखी। चुनावी वायदे पूरे करने की कटिबद्धता और उन्हें पूरे करने के संकल्प सब अत्यंत सराहनीय कार्य हैं पर सरकार को जल्दीबाजी से बचना चाहिये, क्योंकि इसमें जहां गलतियों की काफी गुंजायश रहती है वहीं अपमान का जोखिम भी रहता है। विपक्ष के पास शोर मचाने और राजनीतिक लाभ लेने का एक हथकंडा आ जाता है। सरकार ने यदि अधिग्रहण खत्म करने के पहले इस विषय पर टाटा से बातचीत कर ली होती तो बेहतर होता। ऐसा करने से कम से कम निर्णय पर उंगली उठाने का मौका नहीं मिलता किसी को भी। इन सबके बाद भी एक महत्वपूर्ण तथ्य अभी बाकी है। सिंगुर राज्य की राजनीति में इतना प्रयुक्त हुआ कि यह एक बिम्ब बन गया। यदि यह पश्चिम बंगाल में जमीन और राजनीतिक सत्ता का बिम्ब है तो यह उद्योग और राजनीतिक दुर्घटना का भी प्रतीक है। पश्चिम बंगाल को यदि विकसित होना है तो यहां उद्योग और निवेश की जरूरत है। इसी उद्देश्य से मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता जी ने देश भर के उद्योगपतियों को शनिवार को कोलकाता बुलाया और राज्य में उद्योग लगाने का न्यौता दिया। उद्योगपतियों की समस्याएं सुनने के बाद उन्होंने एक कोर कमेटी बनाने की घोषणा की जिसमें उद्योग-व्यवसाय के प्रतिनिधियों के अलावा सरकारी अफसर और दो मंत्री रहेंगे और ये उद्योग लगाने में आने वाली समस्याओं को दूर करेंगे। इस बैठक में देश भर से डेढ़ सौ से ज्यादा उद्योगपति शामिल हुए। इसमें टाटा और अंबानी जैसे बड़े उद्योगपति नहीं आए, सिर्फ अपने प्रतिनिधि भेजे। ममता जी ने राज्य के उद्योग और वित्त मंत्री के नेतृत्व में एक कोर कमिटी के गठन की घोषणा की। इस कमिटी में 25 सदस्य होंगे जिनमें चेंबर ऑफ कॉमर्स के प्रतिनिधि और विभिन्न विभागों के अधिकारी होंगे। कहा गया है कि यह कमिटी उद्योग लगाने के रास्ते में आने वाली सारी दिक्कतों को दूर करेगी।
अभी पिछले हफ्ते ही ममता जी की सरकार ने सिंगुर में टाटा मोटर्स की लीज खत्म करने का कानून विधानसभा से पारित किया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि उद्योगपति उसी सरकार पर किस तरह से भरोसा करते हैं। फिलहाल हर निवेशक की नजर ममता जी के फैसले पर टिकी है। कोई भी गलत फैसला उन्हें यहां आने से रोक देगा। पूंजी लगाने के लिये जो भरोसा चाहिये वह जमीन से जुड़ी भावनाओं से कम नहीं है।

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