सेना के नैतिक बल में भारी गिरावट का अंदेशा
एक तरफ सोशल मीडिया में जवानों को सलाम करने का अभियान चला हुआ है , कहा जा रहा है कि
“ ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी ”
प्रधानमन्त्री जी दिवाली सैनिकों के साथ मना रहे हैं , चारों तरफ उनकी प्रशंशा में गीत गाये जा रहे हैं
“ जब हम मना रहे थे दिवाली तो वे खेल रहे थे होली ,
जब हम बैठे थे घरों में वे झेल रहे थे गोली ”
सैनिकों के सम्मान में एक अभियान चला हुआ है/
रक्षा मंत्रालय में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर निहायत खुश नज़र आ रहे हैं/ वे हर जगह सर्जिकल हमले की तारीफ़ में पुल बांधते दिख रहे हैं/ उत्तरप्रदेश में चुनाव होने वाले हैं और ऐसा लगता है कि सर्जिकल हमले को चुनाव अभियान में शामिल कर लिया गया है/ लेकिन हकीकत तो यह है कि यह वर्ष सेना के लिए अत्यंत अवसादजनक रहा/ यह एक रैंक एक पेंशन के आन्दोलन से शुरू हुआ/ इस आन्दोलन में जो मांगें राखी गयीं थीं वे अभी तक पूरी तरह नहीं मानी गयी हैं/ उन्हें संतावें वेतन आयोग का लाभ भी नहीं मिल रहा है और अपंगता पेंशन में भी कटौती हो गयी/ अब साल के जाते- जाते सैनिकों के रैंक भी नीचे कर दिए गए/ 18 अक्टूबर को जारी एक आदेश में सेना के रैंक को घटा दिया गया है/ अब आप कैप्टेन रैंक के एक अफसर को ग्रेड बी के सरकारी कर्मचारी से कैसे तुलना कर सकते हैं/ आदेश में सेना के प्रिंसिपल दिरेक्टेर का पद जो ब्रिगेडीअर के समतुल्य था वह अब मेजर जनरल के बराबार दिया गया/ डाइरेक्टर रैंक जो पहले कर्नल रैंक के बराबर था उसे बाधा कर अब ब्रिगेडिअर के बराबर कर दिया गया/ ज्वाइंट डाइरेक्टर अब कर्नल के बराबर हो गाया जो पहले लेफ्टिनेंट कर्नल के समतुल्य था/ यानी, सेना के अफसरों की तुलना में सिविलियन अफसरों के पद बाधा दिए गए / हालाँकि 25 अक्टूबर को रक्षा मंत्री पर्रीकर ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि सेना के रैंक को लेकर उनके अगर कोई असमानता होगी तो उसे हफ्ते भर ठीक कर लिया जाएगा/ हालाँकि इससे सेनाधिकरियाओं में बेहद असंतोष है और कई अफसर टॉप यह कहते सुने जा रहे हैं कि इससे सेना का नैतिक बल कम होगा/ कई अफसर तो यह कह रहे हैं कि अफसरशाही ने एक बार फिर उन्हें नीचा दिखाया है/ अफसरशाही ने अक्सर ऐसा किया है/ ख़ास कर वेतन आयोग के लाभ को लेकर ऐसा हरदम होता आया है/ यह इसी सरकार की बात नहीं है पहले भी ऐसा हुआ है/ आई ए एस अफसर बाजी मार लेते हैं और सेना की मांग पर कान तक नहीं दिया जाता/ यद्यपि फ़ौज की ओर से रक्षा मन्त्रालय में कोई बात नहीं कही गयी है/ लेकिन अफसरों के रैंक्स में इसे लेकर चर्चा है/ कहा जा रहा है कि इससे नए भारती होने वाले जवान हतोत्साहित हो जायेंगे और इससे आने वाले दिनों में सेना के मनोबल पर भी असर पड़ेगा/ सरकारी सूचना के अनुसार भारतीय सेना से हर दिन औसतन एक सैन्य अधिकारी नौकरी छोड़ रहा है/ यह पिछले तीन सालों के दौरान तेजी से हुआ है/ नौकरी छोड़ने वालों में सबसे ज्यादा नौसेना के अफसर हैं/ हालांकि समय से पहले रिटारयमेंट (वीआरएस) लेने वाले अफसरों की संख्या में कमी आई है/ रक्षा मंत्री ने राज्य सभा में बताया कि सेना में11 हजार अफसरों की कमी है/ पर्रिकर ने बताया कि 2012 में564, 2013 में 448, 2014 में 319 और2015 में अब तक 97अफसरों ने वीआरएस ले चुके हैं/ रक्षा मंत्री ने लिखित जवाब में आर्मी में अफसरों के 9,642और अन्य रैंक्स के23,909 पद खाली बताए/ साथ ही नेवी में अफसरों के 1,179 और सेलर्स के 11,653 पद खाली हैं/ इसी तरह,एयर फोर्स में भी 6,664एयरमैन के पद पर नियुक्तियां की जानी हैं/ जानकारों का मानना है कि सेना में बेहतर मौकों की कमी के अलावा भी कुछ वजहों से अफसरों का सेना से मोह भंग हो रहा है/ कॉरपोरेट सेक्टर में उनके लिए कई बेहतर मौके होते हैं/ जहां तक 18 अक्टूबर वाले आदेश की बात है कुछ अधिकारी तो यह उम्मीद कर रहे हैं कि वह आदेश वापस ले लिया जाएगा/ उन्हें सरकार की सदाशयता पर भरोसा है/ लेकिन अधिकांश अधिकारी ऐसा नहीं मानते/ कुछ टिप्पणीकार तो यह कह रहे हैं कि सोशल मीडिया में जो उसके सेना का मुंह बंद करने की साजिश है लेकिन यह अतिश्योक्ति कही जायेगी/ हालांकि सरकार की ओर से इस आदेश का कोई सपष्ट कारण नहीं बताया गया है/ रक्षा मंत्री ने जो हफ्ते भर का वक्त दिया था वह आज समाप्त हो जाएगा/ यदि फ़ौज के असंतोष का निराकरण नहीं हुआ तो आने वाले दिन कुछ दूसरा रंग लायेंगे/ वैसे हमें सैनिकों की तरह सारकार की सदाशयता पर भरोसा रखना चाहिए/
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