तीन हफ्तों में दो बार रोये पी एम
नोटबंदी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक कहा है। इस सर्जिकल स्ट्राइक का शिकार हुये देश को खास कर देश की जनता को तीन हफ्ते हो गये। देश में मौजूद कालधन को खत्म करने के लिये प्रदागनमंत्री नरेंद्र मोदी ने जादू की छड़ी घामायी और एक ही झटके में हजार- पांच सौ के नोट बेकार हो गये, बिल्कुल रद्दी के मानिंद। देश के 87 प्रतिशत नोट चलन से बाहर हो गये। जब मोदी जी ने नोटबंदी की घोषणा की तो मुख्य कारण यह था कि कारोबार से सरकार को उचित टैक्स नहीं मिल रहे थे। यह जानकर देश ने इस घोषण का स्वागत किया। इसके लिये सरकार ने एक और कारण बताया कि वह जाली नोटों के आतंक को खत्म करना चाहती है तथा आतंकवाद को मिलने वाले धन पर लगाम लगाना चाहती है। बेशक जली नोट एक गंभीर समस्या बन रहा था। क्योंकि जितने नकली नोट पकड़े गये थे उनमें 41 प्रतिशत 500 के थे 35 प्रतिशत हजार के थे। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल में 500 रुपयो के 1646 करोड़ नोट और हजार के 1642 करोड़ नोट चलन थे। इनकी संख्या को देखते हुये जाली नोट कोई बड़ी संख्या में नहीं थे। इतनी बड़ी तो नहीं थे कि व्यवस्था में कुछ करके उन्हें हटाया नहीं जा सकता था। लेकिन देश विरोधी होने के इल्जाम के बावजूद यह कहा जा सकता यह कदम अधूरी तैयारी के आधार पर उठाया गया और देश की अर्थ व्यवस्था अवरुद्ध हो गयी। इससे करोड़ों ऐसे लोगों के सामने कठिनायी पैदा हो गयी जो रोज कमाते खाते थे, सब्जी , फल इत्यादि बेचते थे। जो लोग खेतो में फसल की कटाई में लगे थे या बुवाई का सपना देख रहे थे। लोग मोदी की कार्यशैली पर टीका टिप्पणी करने लगे। अपने चौड़े सीने पर गौरव के बावजूद विगत बीस दिनों में दो बार मोदी जी की आंखें भर आयीं। पहली बार गेवा में भाषण के दौरान और दूसरी बार पिछले मंगलवार को एन डी ए के सदस्यों को सम्बोधित करत समय। अब देखना यह है कि ऐसा क्या हुआ कि मोदी जी की आंखें भर आयीं। कारण साफ है। नोट हमारे जनजीवन की गतिविदि की जान हैं। इस जान पर बवाल डालने के पहले उन्हें पर्याप्त नोटों की व्यवस्था कर लेनी चाहिये थी। यही नहीं सरकार को 100 रुपयों के नोटों या अन्य छोटे नोटों का भी प्रचुर बंदोबस्त कर लेना चाहिये था। समस्या इतनी ही नहीं है इसके अलावा नोटों की कमी को भरने में रिजर्व बैंक को काफी वक्त लगेगा। देश के करेंसी नोट प्रिटिंग प्रेस की क्षमता इतनी नहीं है कि सरकार जल्दी से या दो एक महीनों में हजार पांच सौ के नोट छाप कर कमी को पूरा कर सके। भारत सरकार के पास नोट छापने के चार प्रेस हैं, इनमें एक मध्य प्रदेश के देवास में है, दूसरा महाराष्ट्र के नासिक में है , तीसरा कर्नाटक के मैसूर में है और चौथा पश्चिम बंगाल के सालबनी में है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक अर्थ व्यवस्था में हजार और पांच सौ के कुल नोट की संख्या 22 अरब थी। मूल्य के आधार पर देश में 86 प्रतिशत हजार पांच सौ के नोट है जिसका मूल्य 14 खरब है। सरकार के सभी नोट प्रेस मिल कर 2015-16में हजार पांच सौ के 5 अरब नोट छापे थे और 2016-17 में 8 अरब नोट छापने का आर्डर था। अगर देश के सभी प्रेस को केवल दो हजार और पांच सौ के नोट छापने के काम लगा दिया जाय तब भी ये साल भर में 23 अरब नोट छाप सकेंगे इसमें 100 ओर उससे छोटे मूल्य के नोट नहीं शामिल हैं। यहां देश में दो हजार और पांच सौ के 22 अरब नोटों की जरूरत है। अब अगर सारे बड़े नोट आ जाते हैं तब भी अव्यवस्था फैल जायेगी। अतएव हालात सुधरने में साल भर से ज्यादा लग सकता है। मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्य सभा में कहा कि इस नोटबंदी से जी डी पी में 2 प्रतिशत की गिरावट आयेगी। बडझे अर्थशािस्त्रयों का भी मानना है कि इससे जी डी पी में 2.2 प्रतिशत की गिरावट आयेगी। इससे निकट भविष्य में भारी त्रासद स्थिति आ सकती है। सोचिये कि कुल जी डी पी का में अनौपचारिक क्षेत्र का हिस्सा 45 प्रतिशत है और उसका सकल कारोबार नगदी में होता है। यही नहीं देश में 16.5 करोड़ लोगों के बैंक खाते नहीं हैं। सरकार की जन धन योजना ने बहुत लोगों के खाते खुलवाये। लेकिन आधे खातों में कुछ भी नहीं है। जीरो बैलेंस है। यही नहीं जरा इस नोटबंदी से होने वाली हानि को देखें। देश में 45 करोड़ लोग मजदूरी करते हैं। इनमें केवल 7 प्रतिशत या 3.10 करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में हैं और 41.5 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में हैं। इनमें आदो तो खेती या निर्माण के काम या खुदरा कामों में हैं। इनमें से अधिकांश लोग दिहाड़ी पर काम करते हैं। इसलिये सरकार ने जिन नोटों को रद्द किया उनमें से अधिकांश दरअसल चलन में थे, कालेधन के रूप में जमा नहीं थे। हो सकता है अर्थ व्यवस्था पूरी तरह अवरुद्ध ना हो जाय पर बहुत से घर ऐसे हैं जहां इसके कारण चूल्हा नहीं जल पा रहा है। अब आर्थिक अव्यवस्था को संभाल पाने में अक्षम प्रदानमंत्री जी ने नया हथ्कंडा अपनाया और आंखों में आंसू भर कर कहने लगे कि वे गरीबों के लिये लड़ रहे हैं। इन गरीबों को उच्च वर्ग यानी अमीर वर्ग ने अब तक लूटा है। यानी वे उच्च वर्ग या अमीरों को गलत बता रहे हैं और एक तरह से माओ और लेनिन की तरह वर्ग संघर्ष की ज्वाला भड़काने की मनोवैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं। यही नहीं वे कहने लगे हैं कि ‘‘मेरी जान को खतरा है। ’’ इसकी सोशल मीडिया में काफी खिल्ली उड़ाई गयी है। अब सवाल उठता है कि क्या वे कदम पीछे करेंगे और100 रुपये या उससे छोटे नोटों की बड़ी संख्या छपवा कर बाजार में डालेंगे। हो सकता है इससे उनकी थोड़ा अपमान हो पर इस स्थिति में और कुछ नहीं किया जा सकता है।
Monday, November 28, 2016
तीन हफ्तों में दो बार रोये पी एम
Posted by pandeyhariram at 6:00 PM
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