शव पर सियासत
अभी दो दिन पहले की बात है ‘एक रैंक एक पेंशन’ मसले के हल में देरी से मायूस होकर इक पूर्व सैनिक 69 वर्षीय रामकिशन ग्रेवाल ने आत्महत्या कर ली। अब वह खुदकुशी क्या हुई कि यूं समझ लें कि मोदी सरकार और विपक्ष में सियासी हाथापाई शुरू हो गयी। वैसे सेना को लेकर सियासत तो पिछले कुछ महीनों चल रही थी। सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक में यह साफ देखा जा सकता था था पर आत्महत्या का यह मामला तो बड़ी ही भद्दी राजनीती में बदल गया। एक रैंक एक पेंशन पर सरकार ने लम्बे लम्बे दावे किये हैं और इस अकेली आत्म हत्या ने न केवल उन दावों की पोल खोल दी बल्कि सरकार को भी शर्मसार कर दिया। यहां तक कि बुधवार को रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने गोवा में कहा कि ‘विगत 46 वर्षो में किसी सरकार ने एक रैंक एक पेंशन को लेकर कुछ नहीं किया। हमारी सरकार ने इस मसले को हल कर दिया।’ रक्षा मंत्री ने यहां तक दावा किया कि इस मद में 5500 करोड़ रुपये दिये गये हैं। इससे 20लाख 69 हजार सैनिकों को लाभ पहुंचेगा। अगर यह सच है तो ग्रेवाल की खुदकुशी का क्या कारण हो सकता है। रामकिशन ग्रेवाल का पत्र जो इन दिनों सोशल मीडिया में वाइरल हुआ है उसमें लिखा है कि क्षेत्री सेना और सुरक्षा कोर में सेवाएं प्रदान करने के बाद भी उसे वन रैंक वन पेंशन का ला भ तो मिल नहीं रहा है साथ ही ेंशन जो मिल रही है उसमें भी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ नहीं प्राप्त हो रहा है।
ग्रवाल की आत्महत्या की खबर सुनते ही राजनीतिक पार्टियों में इसे सरकार के खिलाफ भुनाने की होड़ मच गयी। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री रमेश सिसोदिया और कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ग्रेवाल के परिजनों से मिलने और सांत्वना देने के लिये राम मनोहर लोहिया अस्पताल चल पड़े। हालांकि इनका इरादा इस अवसर का राजनीतिक लाभ उठाना था। फौज की प्रशंसा में और उसके प्रति अपने दायित्व को लेकर महीने भर से ढोल पीट रहे मोदी सरकार को शर्मसार करन था। सेना ने नियंत्रण रेखा पर सर्जिकल हमला किया और इसकी घेषणा के तत्काल बाद से ही मोदी जी खुद और उनकी सरकार के अन्य नेता यहां तक कि भाजपाह के लीडरान भी लगे थे ताल ठोंकने। हर मंत्री या पार्टी का हर नेता इसका श्रेय लेना चाहता था। मोदी जी ने तो हिमाचल प्रदेश में एक सभा में अपने खास अंदाज में यहां तक कह दिया कि ‘आक्रमण के मामले में हमारी सेना इसरायली सेना के समतुल्य है।’ विपक्षी दलों ने सर्जिकल स्ट्राइक के की सफलता का जमकर विरोध नहीं किया। अरविंद केजरीवाल ने केवल इतना ही कहा कि ‘ हमले की हकीकत पर जो सवाल उठ रहे हैं मोदी जी उसका जवाब दें।’ राहुल गांधी ने तो इसे खून की दलाली की संज्ञा दी। दोनो पार्टियां इस मामले में सरकार के अभियान रथ के पहिये की हवा निकालने के लिये ब्याकुल थीं। वे अवसर की तलाश में थीं और ग्रवाल की आत्महत्या ने यह अवसर दे दिया। इसके बाद सरकार ने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सोदिया ओर कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को मनोहर लोहिया अस्पताल जाने और ग्रवाल के परिजनों से मिलने से रोकने के लिये पुलिस बल का प्रयोग कर मामले को और जटिल बना दिया। जैसे ही उनके रोके जाने की खबर आयी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की। कांग्रेस ने मोदी के इस काम को अलोकतांत्रिक बताया। दूसरी तरफ पुलिस ने ग्रेवाल के परिवार वालों को यह कह कर रोक दिया तथा बाद में हिरासत में ले लिया कि वे राजनीतिक नेताओं से सम्पर्क कर रहे हैं। पुलिस की इस कार्रवाई ने मामला और बिगाड़ दिया। इसके विरोध में राजनीतिक दलों के कार्यकर्त्ताओं ने उस थाने का घेराव कर दिया जहां ग्रवाल के परिवार के गिरफ्तार लोग रखे गये थे। आत्महत्या की यह दुखद घटना आनन फानन में राजनीतिक हाथापाई में बदल गयी। सरकार का यह फैसला कि ग्रवाल के परिवार से मिलने जाने वाले राजनीतिक नेताओं को गिरफ्तार करने की सरकार की आत्ता ने विपक्ष को सरकार के खिलाफ एक हथियार दे दिया। 2011 में इसी तरह की गिरफ्तारियों ने लोकपाल आंदोलन की चिंगारी को आग के भड़कते बगूलों में बदल दिया था।क्या मोदी सरकार चाहती है कि फिर वैसा ही आंदोलन हो।
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