सामाजिक विपर्यय के संकेत
आपने आस पास बहुतों को मिलने जुलने पर नमस्कार या प्रणाम की जगह राम राम कहते सुना होगा। कई जगह लोग राम राम की जगह सीता राम भी कहते सुने जाते होंगे। तीन सदी या उससे कुछ पहले से रामनवमी या दशहरे के दिन या किसी धार्मिक उत्सव में एक नारा चलता था जै सियाराम। यानी राम पर सीता की विजय। यह भारत में नारी शक्ति का उद्घोष था। देश के लोकजीवन में लैंगिक समानता का प्रतीक था। भगवान राम की पहचान सीता से होती थी किसी दूसरे से नहीं। नारों का जबसे राजनीतिकरण आरंभ हुआ तो यह बदलने लगा। सीताराम या जै सियाराम बदल कर जय श्रीराम हो गया। भारतीय समाज और भारतीय लोकजीवन की आस्था के प्रतीक राम का उपयोग युद्ध घोष के रूप में होने लगा। बाबरी ढांचा गिराये जाने के समय यह संघ परिवार और फिर हिंदूवाद का नारा बन ग्या। जय श्रीराम यानी राम की विजय। यह नारा या इस शब्द का बिम्ब मर्यादा पुरुषोत्तम के शब्दिक बिम्ब या जैसियाराम से नहीं मिलता अथवा उनकी पर्याय बन पा रहा है। मर्यादा पुरूशोत्तम यानी मर्यादा या नियमों को मानने वाले और कहां आंदोलन तथा नियम कानून भंग करने का आह्वान करता नारा ‘जय श्रीराम।’ आडवाणी जी ने अयोध्या आंदोलन के समय स्पष्ट भी किया था कि‘ विचार मंदिर बनाना नहीं है विचार है इस माध्यम से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रचार।’ हिंदुत्ववादी जनता द्वारा इस नारे के स्वरों के आरोह अवरोह से तो अब तक यह स्पष्ट हो ही गया था कि हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रचार की हवा बह रही है। अब दशहरे दिन मोदी जी का दिल्ली के राम लीला मैदान में ना रह कर लखनऊ में उपस्थित रहना और जय श्रीराम के उदघोष के साथ अपना भाषण शुरू करना इस बात का संकेत हे कि राम नहीं अयोध्या के 16वीं सदी के उस ढांचे को लेकर कोई नया आंदोलन शुरू होने वाला है। इसके दो ही चार दिन के बाद केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा द्वारा अपनी अयोध्या यात्रा के दौरान घोषणा करनी कि अयोध्या में विवादास्पद स्थल पर एक संग्रहालय बनाया जायेगा साथ ही उनका यह कथन कि उन्हें राम के लिये कुछ करने का अवसर मिल रहा है यह उनका सौभाग्य है एक नयी दिशा की ओर संकेत कर रहा है। इससे कोई हैरत नहीं भी हुई क्योंकि साल भर पहले भी सरकार ने संग्रहालय बनाने की घेषणा की थी। लगभग चार महीने पहले उसने इसके लिये धन की भी मंजूरी दे दी है। इसका अर्थ है कि भाजपा यू पी चुनाव की प्रतीक्षा कर रही थी। अबसे लगभग डेढ़ माह पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी अयोध्या गये थे और उन्होंने भी कहा था कि 1989 से अब्पातक कुछ नहं बदला। उल्लेखनीय है कि 1989 में राहुल के पिता राजीव गांधी अपना चुनाव अभियान यहीं से शरू किया था और उनका बंटाधार हो गया। राहुल के बारे में अच्छी संभावना नहीं दिखती है। इसके बाद अयोध्या में विवादास्पद ढांचे को ध्वस्त किये जाने की अनेक प्रतीकों में से एक ‘राम-शरद कोठारी ’ की धरती कोलकाता में दिवाली के एक दिन पहले जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा यह घोषणा कि वहां और ठीक उसी स्थल पर मंदिर के अलावा कुछ भी नही स्वीकार्य है, जल्दी ही एक नये राजनीतिक आंदोलन का संकेत दे रहा है। यही नहीं, ठीक हफ्ते भर पहले गत सोमवार को उभर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने घेषणा की कि अयोध्या में रलिला के थीम पर एक पार्क बनाया जायेगा ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। राज्य सरकार ने इस प्रष्ताव को आनन फानन में मंजूरी भी दे दी। मायावती को छोड़ कर सभी ने मंदिर के बरे में कुछ ना कुछ कहा है। भाजपा सांसद विनय कटियार ने म्यूजियम की घोषणा को ‘लॉलीपाप’ बताया है। संघ ने कहा है कि मंदिर तो बनना चाहिये पर सहमति से और कानूनी सममति से। इससे साफ संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में ‘मंदिर राजनीति’ का जोर होगा और सामाजिक विपर्यय बढ़ेगा, सामाजिक खतरा बढ़ेगा।
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