भारत का ज्ञान संकट
हमारे देश की शिक्षा की सबसे बड़ी विडम्बना है कि हम या हमारी समाज या शासन व्यवस्था शिक्षा के ‘इनपुट’ पर ज्यादा जोर देती है ‘आउटपुट’ पर नहीं। भारत ने इस साल पहली बार ‘प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टुडेंट असेसमेंट (पीसा)’ में भाग लिया और बड़े शर्म के साथ कहना पड़ता है कि हमारी रैंकिंग 74 में से 72वें स्थान पर थी। देश में शिक्षा की स्तिथि की वार्षिक रपट ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एडुकेशन रिपोर्ट (ए एस इ आर)’ एक साल के स्थगन के बाद इस वर्ष जारी हुई। 2014 के पहले 10 साल तक हर साल इस रपट में यह बताया गया कि दाखिला भी पूरा नहीं पड़ता और साथ ही पढ़ाई की भी स्थिति ठीक नहीं है। 2005 में जब ए एस ई आर को चालू किया गया था तब भी कोई शिक्षा के बारे में यानी बच्चे कितना जान पा रहे हैं इस पर बहस नहीं थी बल्कि शिक्षण पर बहस ही शिक्षा पर बहस का मान दंड थी। बहस होती थी संसाधन पर। जैसे शिक्षकों की नियुक्ति, शिक्षा संस्थानों की संख्या में वृद्दि इत्यादि। यही कारण है कि विगत कुछ वर्षो में देश के कोने कोने में मंहगे और तड़क भड़क वाले शिक्षण संस्थान खुल गये। गांव गांव में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की भरमार हो गयी। काई यह नहीं देखता कि बच्चे या छात्र क्या पढ़ रहे हैं चर्चा का मुद्दा रहता था कि वे कहां पढ़ रहे हैं। यहां तक कि जब 2010 में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ तब भी सारा जोर इनपुट पर था इसके लाभ पर नहीं था। इसी दिशा में पांच साल की और यात्रा के बाद अब शिक्षा यानी बच्चे सचमुच शिक्षित हो पा रहे हैं या नहीं जिसे अंग्रेजी में कहते हैं ‘लर्निंग’ पर बहस शुरू हुई है ना कि संसाधनों पर। आज कल राज्य स्तरीय आकलन पद्धतियां चालू की गयीं हैं। एन सी ई आर टी ने एन ए एस चालू किया है। मानव संसधन मंत्रालय गणना आकलन (सेसस असेसमेंट) पद्धति भही चालू करने जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ससटेनेबल डेवेलपमेंट गोल (एस डी जी) चालू होने वाला है। इसमें शिक्षा र्कंी उपलब्धियों और संसाधनों दोनो का आकलन होगा न कि केवल संसाधन का। यह सब बड़ा ही प्रोत्साहन जनक है। इससे उम्मीद की जा सकती है कि नीति निर्माण में शिक्षा की उपलब्धियों यानी ज्ञान को स्थान दिया जायेगा। यह इससे भी पता चलता है कि सरकार लगभग तीन दशकों के बाद नयी शिक्षानीति का मसौदा तैयार कर रही है। लेकिन अपनी पीठ खुद थपथपाने के पहले हमें यह देखना जरूरी है कि इस नयी नीति के लिये किन रेकार्ड्स या अभिलेखों को आधार बनाया जा रहा है। यदि हम ए एस ई आर के विगत दस वर्षों के शिक्षा की उपलब्धियों(लर्निंग) के आंकड़े देखें तो पायेंगे कि 2010 से बुनियादी शिक्षा या बुनियादी ज्ञान की स्थिति में उत्तरोत्तर गिरावट आयी है। आधे से ज्यादा बच्चे प्राइमरी कक्षा पार कर जाते हैं और पढ़ना नहीं सीख पाते हैं। इसका असर आगे की शिक्षा पर पड़ता है। आप सोच सकते हैं कि ऐसे बच्चे ऊंची कक्षा में जा कर क्या करेंगे। इसके अलावा जब बच्चे ऊंची क्लास में जाते हैं तो उनकी आगे की यात्रायानी ट्रेजेक्ट्री एकदम सपाट होती है। एक बार अगर बच्चा पीछे छूट जाता है तो ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि वह दुबारा उस विंदु पर पहुंच जाय जहां और बच्चे हैं। इसके कारण लगातार शिक्षा या ज्ञान की हानि होने लगती है। इसका साफ असर दिखता है कि ऊंची कक्षा में भी कई छात्र ठीक से पढ़ नहीं पाते। उनके पाठ अशुद्दा होते हैं, उच्चरण अशुद्ध होते हैं। 2014 में किये गये एक सर्वे के मुताबिक आठवीं क्लास के 25 प्रतिशत छात्र कक्षा दो के पाठ का ठीक से या कहें शुद्ध वाचन नहीं कर पाते थे। यही नहीं बच्चे आगे की कक्षा में लगातार मंद होते जा रहे हैं। फर्ज करें एक बच्चा 2009 में कक्षा 3 में अपनी पठन यात्रा आरंभ करता है। तो 2010 में वह चौथी कक्षा में और 2011 में पंचवीं कक्षा में वह जायेगा। लेकिन अगर उसके सहपाठियों का आकलन करेंगे तो पता चलेगा कि वे पिछली कक्षा से मंद हैं। इसका मतलब है कि बच्चें में शिक्षा का गुणत्मक प्रभाव उत्तरोत्तर घट रहा है। यह खतरनाक संकेत है पर पर यह नया नहीं है और ए एस ई आर कोई पहली संस्था नहीं है जिसने इस ओर संकेत किया है। एन सी ई आर टी ने एन ए एस के माध्यम से यह बताया कि बच्चों के ज्ञान के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। अब जब पहली बार ‘एडुकेशन इनिशियेटिव’ द्वारा किये जा रहे सर्वेक्षण ‘पीसा’ में भारत ने भाग लिया तो वह 74 देशों में 72 वें स्थान पर आया। यानी 71 देशों में शिक्षा की ज्ञान प्रदाता स्थिति हमसे बेहतर है। इस सर्वेक्षण से एक बड़ी दिलचस्प बात उभर कर आयी कि बड़े और महंगे इलीट स्कूलों के छात्र भी अच्छा नहीं कर रहे हैं, उनके ज्ञान का स्तर भी सही नहीं है। हालांकि यह आकलन आखिरी नहीं है और भी आकलन की जरूरत है और भी सर्वेक्षण की आवश्यकता है। सभी स्कूलों के गणना आकलन की भी जरूरत है। लेकिन इससे पहले जरूरी है कि इसके लिये हमारा उद्देश्य क्या है। हमारा उद्देश्य हो कि इन समस्याओं को कक्षा में ही सुलझाया जाय। हम अपना ध्यान ज्ञान की ओर ले जा रहे हैं और देश में इस समय ज्ञान का संकट है। इसमें सिर्फ सर्वेक्षण आकलन ही जरूरी नहीं है।
Tuesday, November 29, 2016
भारत का ज्ञान संकट
Posted by pandeyhariram at 7:51 PM
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