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Wednesday, November 30, 2016

बेबसी का एक समंदर दूर तक फैला हुआ

बेबसी का एक समंदर दूर तक फैला हुआ

बेबसी का एक समन्दर दूर तक फैला हुआ 

और कश्ती कागजी पतवार के साये में है

नोटबंदी के बाद हमारे शहर कोलकाता का यही मंजर है। रोजगार का संकट है। इस शहर में रोज कमाने और उस कमाई को खाकर खुद और अपने परिवार को जीवत रखने वाले लोगों का बहुल्य है। जिनसे मिलो वही कहेंगे  कि हम रोज कुआं खोदने और प्यास बुझाने वाले लोग हैं। नोटबंदी ने इन्हें सबसे ज्यादा आघात पहुंचाया है। इनका कहना है कि हम कैसे जियेंगे अगर सरकार अचानक हमारे हाथ बांध दे और कुआं खोदने की मुमानियत कर दे। नोटबंदी के इक्कीसवें दिन , हावड़ा और अन्य इलाकों में जहां निम्न मध्यवर्गीय लोग या दिहाड़ी करने वाले लोग ज्यादा रहते हैं वहां बैंकों के सामने कतारें दिख रहीं हैं। चेहरे पर एक खास किस्म की बेचारगी और बेबसी। बैंक ाटों बाद खुलेंगे , कतारें सुबह से लगी हैं और वह भी फकत दो हजार रुपयों के लिये। अमीर घरों के काम का बोझ अपने घुटनों पर उठाये रखने वाली महिलाएं बैंकों के सामने सुबह से कतार में हैं। उनपर दोहरी मार पड़ रही है काम पर नहीं जायेंगी तो पैसे कटेंगे और यहां दो हजार रुपये नहीं निकाल पायी तो चूल्हा कैसे जलेगा।
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है

उसी के दम पे रौनक आपके बंगले में आयी है

 कैशलेस समाज बनाने के चक्कर में कैशविहीन समाज बनता जा रहा है। कतार में खड़े मिल जायेंगे असम , बिहार, बंगाल, झारखंड , उत्तर प्रदेश और नेपाल के मजदूर। लापियरे का सिटी ऑफ जॉय कहा जाने वाला यह एक अजीब शहर है जहां खास काम के मजदूर खास इलाके में चौराहे पर बैठे मिलते हैं। मजदूरी कराने वाले लोग उन्हें वहां से ले जाते हैं बुलाकर , काम करवाते हैं और मजदूरी देते हैं। चाहे वह तालों की चाबी बनाने वाले हों या पानी का पाइप सुधारने वाले या सफेदी करने वाले या हाथ रिक्शा या ठेला खीचने वाले, गाड़ियों से सामान उतारने वाले या ठेले पर हिमालय लेकर चलने वाले वाहकों को पुल की चढ़ाई पर पीछे से ठेलने वाले ,सब के सब मिलेते हैं खास खास जगहों में बैठे हुये। यह इनके अड्डे हैं। इनको काम मिलना बंद हो गया और बंद हो गया है पेट भरने का इंतजाम। यही शादियों का मौसम भी है। कुछ मजदूरों को शादियों में झाड़ू बुहारी , बर्तन धोने या अतिथियों की अन्य सेवायें करने का काम मिलता है तो उन्हें ठेकेदार पुराने पांच सौके नोट देता हे जिसका बस वाल छुट्टा नहीं देता और कई कई किलोमीटर चल कर वे वहां आते हैं जहां फुटपाथ उनका बसेरा है। इनकी पीड़ा का क्या होगा, वे केसे जियेंगे। 
रोटी कितनी महंगी है ये वो औरत बतायेगी

जिसने जिस्म गिरवी रख के ये कीमत चुकाई है
अगर कोई यह बात उठाता है तो समर्थक उसकी खिलली उड़ाते हैं। इस नोटबंदी से सबसे ज्यादा उतपीड़ित हुए हैं तो कोलकाता या उसके आस पास के उपनगर जैसे स्थान। मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने विरोदा का स्वर दिया तो उनकी हंसी उड़ायी जा रही है। उनके प्रयास को राजनीतिक स्वार्थ साधना बताया जा रहा है। 
जहर देते हैं उसको हम कि ले जाते हैं सूली पर 

यही हर दौर के मंसूर का अंजाम होता है

उन गरीबों की भूख के बारे में साचें जिनके पास आधार कार्ड नहीं है और इस के कारण उन्हें बैकों से वापस कर दिया गया। वे अपने पैसे तक का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इन्हें कुछ दलाल अपने आधार कार्ड देकर हजार पांच सौ के नोट बदलवाने के लिये कतार में खड़े कर देते हैं। ये लाग मामूली मजदूरी पर यह कार्य करते हैं। नोटबंदी से किस काले धन पर रोक लगेगी यह तो प्रभु ही जाने पर इन गरीबों के जीवन का दुख तो बढ़ ही जायेगा। 
गर चंद तवारिखी तहरीर बदल दोगे 

क्या इनसे किसी कौम की तकदीर बदल दोगे

हमारे देश की अर्थ व्यवस्था में गरीबो की गणना शायद ही कभी होती है क्योंकि उन्हें सब्सीडी भकोसने वाला और देश के तीव्र आर्थिक विकास में रोड़े अटकाने वाला माना जाता है। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि स्मार्ट सिटी बनाने के लिये या उद्योगीकरण के लिये अगर उनकी जमीन ले ली जाय तो वे बोलें नहीं , उनकी झोपड़ियां तोड़ दी जाय तो कराहें तक नहीं। इस अपेक्षा के बावजूद इतनी निर्दयता और अड़ियलपन कि रातों रात देश की अर्थव्यवस्था का 86 प्रतिशत भाग रद्दी घोषित कर दिया जाय और इनके बारे में सोचा तक ना जाय। 
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहा है वो 

इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नबाबी है
सरकार ने उन लाखों लोगों के बारे में सोचा क्या जिनके पास कार्ड नहीं हैं, वे दूधपीते बच्चे, बूढ़े और बीमार लोग क्या करेंगे?जिस अच्छे दिन के सपने हमारे प्रदानमंत्री जी दिखा रहे हैं वह तो दु:स्वप्न साबित हो रहा है और आम लोगों पर जोर दिया जा रहा है कि वे इसे सुहाना तथा रचनाशील बतायें। 

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है 

मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है

नोटबंदी के कारण जो विपत्ति आयी है वह गरीबों और साधनहीनों को सर्वाधिक उत्पीड़ित कर रही है लेकिन उनसे अपील की जा रही है कि वे इस दुख को बर्दाश्त करें। नेता के समर्थक तालियां बजाते हैं। 
एक जन सेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिये

चार छ: चमचे रहें, माइक रहे माला रहे

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