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Monday, November 21, 2016

भई भक्तन की भीड़

भई भक्तन की भीड़
क्या आप नहीं महसूस कर रहे हैं कि इधर कुछ सालों से हमारे समाज में कुछ खास देवताओं के भक्तों की भीड़ लग गयी है। वे अपने देव के खिलाफ मामूली परोक्ष व्यंग्य भी नहीं सुनना चाहते। अगर बहुत सभ्य हैं तो आप कुछ भी कहें तो वे ‘यूं होता तो क्या होता ’ कह कर अपना विरोध तो जाहिर कर ही देते हैं। जबसे हजार - पांच सौ के नोट बाजार से हटे हैं तबसे उसे लेकर सोशल मीडिया में हाथापायी हो रही है। शनिवर की सुबह मेरे एक आदरणीय मित्र ए. शर्मा जी ने वाट्सएप पर एक पैरोडी भेजी, 

रहते थे कभी जिनके दिलों में हम जान से भी प्यारों की तरह

बैठे हैं उन्हीं की जेबों में हम आज गुनहगारों की तरह

रीयली इंटरेस्टिंग। यकीनन ये हजार -पांच सौ के नोटों का दर्द था। अब हमने  यह पैरोडी भा गयी और उसने सोशल मीडिया में उसे ठोक दिया। ठोकना क्या था जैसे बर्रे के  छत्ते को छेड़ दिया। भनभनाते हुये भक्तों ने मुझे लहूलुहान कर दिया। हमलावरों में देसी तो देसी , विदेशों में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अौर विशेषज्ञ डाक्टर  भी शामिल थे। सबकी बातों का लब्बोलुवाब था ‘ उनके  देव पर व्यंग्य और ईशनिंदा समान है।’ सचमुच भक्तों की बढ़ती संख्या ​चिंता का विषय बन गयी है। ये भक्त कोई भी हो सकता या सकती है। मेरे आपके जैसे काॅमन मैन या सोशल मीडिया पर अनदेखे लोग या समूह। कोई भी। किसी भी पार्टी का समर्थक या विरोधी होना  कोई बड़ी बात नहीं है पर यह कैसे सही हो सकता है कि जिनके विचार आपसे ना मिलें वे गाली के पात्र हैं। अब उपरोक्त पैरोडी को ही लें, यह किसी पर व्यंग्य नहीं है शुद्ध हास्य है और इस पर अगर लोग आपकी थुक्का फजीहत इस लिये करें कि उनके देवाधिदेव को इस माध्यम से व्यंग्य का निशाना बनाया जा रहा है। हम तो भाई साहब यही मानते हैं कि हास्य तो हास्य है अगर उनके मायने निकाले जाएं और उसे फब्ती समझ लिया जाय तो फिर जै श्रीराम।  ऐसे लोग अहमक हैं और हमारे यहां सोशल मीडिया पर ऐसे अहमकों की हाट लगी हुई है। और वे सब मिल कर हमारे जैसे आदमी की वाट लगा रहे हैं। लोग ऊब रहे हैं पर यह नहीं समझ रहे हैं कि कैसे कुछ लोगों का एक समूह उनके विचारों को दबा रहा है और जबरन अपने पीछे आने को बाध्य कर रहा है। वे चीख कर कहते हैं कि देश प्रगति कर रहा है। जो जहां भी है जिस हाल में है वहां से प्रगति कर रहा है। भ्रष्टाचार , पाखंड, अभाव , जीवन जीने की स्थितियों के बगैर प्रगति कर रहा है। प्रगति इन भक्तों का चस्का है। अपना पेट भरते ही देश के सबी भूखों का पेट भर जाता है। अपना फ्लैट बनते ही देश में आवास की समस्या खत्म। सब कहते हैं, प्रगति करो। बिना प्रगति किये समस्याएं नहीं खत्म होंगी। नौकरी नहीं है तो नौकरी खोजो। रिश्वत दो। बिना रिश्वत दिये प्रगति नहीं हो सकती। भक्त चीख रहे हैं भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे। बेशक जिस दिन वे रेल की यात्रा करें दलाल  कम पैसे लेकर या फोकट में उनका टिकट कन्फर्म करवा दे। बाकी नाम राम का। भ्रष्टाचार कहां है देश में। ये बातें सारे भक्त अकेले अकेले चीखते हैं और वह आपके पास कोरस बन कर पहुंचता है। हर आदमी जहां फंसा है वहां वह भ्रष्टाचारहीनता चाहता है। भक्त चाहते हैं कि वे जहां काम करते हैं वहां छोड़ कर सकल देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाय। अब अहमदाबाद से उठा नारा देश पर छा गया और नारे के बल पर सत्ता मिल गयी। अब नारों को कायम नहीं रखेंगे तो कैसे चलेगा। धन्य है संसार सागर। धन्य हैं प्रभु।

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