केंद्र सरकार के दावे और हकीकत
देश में अजीब माहौल बना हुआ है। एक तरफ तेजी से बढ़ती महंगाई, नोटबंदी को लेकर भ्रामक हालात और सीमा पर तथा आसपास के इलाकों में आतंकवादी हिंसा और गोलबारी। हर ओर एक अजीब अनिश्चयता तथा अराजकता। नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री संसद में बोल नहीं रहे हैं और बाहर विपक्ष को उकसा रहे हैं। संसद में विपक्ष प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहा है और जवाब के नहीं मिलने पर संसद में हंगामा तथा काम काज बंद। समाचर मीडिया दो या तीन गुटों में बंट गया है और गुट खुद को सही बता रहा है। क्या हो रहा है इस लोकतंत्र में। राजनीतिक तार्किकता से साहेचें तो कितना अस्तव्यस्त है सब कुछ। नोटबंदी को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आंदोलन को हवा दी। सरकारी पक्ष कह रहा र्है कि ‘यह केंद्रीय राजनीति में जगह बनाने का उनका प्रयास है। उन्हें राज्य की जनता के कल्याण के लिये सोचना चाहिये। ’ अब्पा इस तरस बोलने वालों से पूछा जा सकता है कि क्या नोटबंदी का असर बंगाल की जनता पर नहीं पड़ रहा है। हकीकत तो यह है कि अगर यही हालात रहे तो बंगाल में अकाल पड़ सकता है। तो क्या उसका विरोध किया जाना राजनीतिक स्वार्थ है। सरकार ने कहा कि नोटबंदी का उद्देश्य नकली नोटों की बाढ़ को ख्त्म करना है। प्रश्न है कि देश में अब तक कितने नकली नोट पाये गये। रिजर्व बैक के आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 में कुल भारतीय नोटों में से केवल 0.0007 प्रतिशत ही नोट नकली पाये गये हैं। यानी , हर दस लाख नोट पर 7 नोट नकली पाये गये। आलोच्य अवधि में भारत में कुल नोटों की संख्या 90.26 अरब थी जिसका मूलय 16.41 लाख करोड़ था। अगर मूल्य के हिसाब से देखें तो इनका मूल्य सिर्फ 29.64 करोड़ था। इसमें पुलिस और अन्य एजेंसियों द्वारा जब्त किये गये नोटों की गिनती शामिल नहीं है। लोकसभा में 18 नवम्बर 2016 को पेश राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2015 में 43.8 करोड़ रुपये जली नोट पकड़े गये। साथ ही 30 सितम्बर 2016 तक 27.8 करोड़ के जाली नोट पकड़े गये। इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के संयुक्त अध्ययन के अनुसार हर दस लाख नोट पर केवल 50 नोट नकली हैं। इस अध्ययन के मुताबिक हर साल 70 करोड़ रुपये मूल्य के जाली नोट बाजार में आ जाते हैं। 2012 में भारत के तत्कालीन वित्तमंत्री पणव मुखर्जी ने एक श्वेतपत्र जारी कर बताया था कि देश में 3.7 प्रतिशत से 7.4 प्रतिशत कालाधन पाया गया है। उदाहरण के लिये 2011-12 में 9289 करोड़ रुपये मूल्य की अघो्रशत सम्पति पायी गयी जिनमें 499 करोड़ रुपये यानी 5.4 प्रतिशत ही नगद थे। आयकर विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रैल 2016 से 31 अक्टूबर तक लोगों ने 7700 करोड़ रुपये मूल्य के कालेधन की घोषणा की जिनमें केवल 408 करोड़ रुपये ही नगद थे यानी 5 प्रतिशत ही नगदी थी बाकी 95 प्रतिशत विबिन्न निवेशों और बेनामी बैंक खातों के रूप में थी। कुल मिला कर कहा जा सकता है निक कालाधन या जालीनोट बहुत बड़ी समस्या नहीं है। सरकार ने मच्छर मारने के लिये तोप चला दिया। सरकार फौज को सामने रख कर एक उन्मादी देशभक्ति का वातावरण तैयार करने की कोशिश कर रही है ताकि सीमापर होने वाली हानियों पर पर्दा डाला जा सके। शनिवार को पाकिस्तान में नये सेनाध्यक्ष के नाम की घोषणा हुई और इधर भहारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने ललकारा कि ‘हम लड़ने को बेचैन नहीं हैं लेकिन अगर किसी ने हमपर बुरी नजर डाली हम उसकी आंखें निकाल कर उसके हाथ में रख देंगे। हमारे पास इतनी ताकत है।’ उन्होंने कहा कि सीमा पर पिछले तीन दिनों से फायरिंग नहीं हुई है , हम जैसे को तैसा जवाब दे रहे हैं ये बात वे समझ गये हैं। लेकिन अगर अखबारों की रपटों का सर्वेक्षण करें तो पता चलता है कि सर्जिकल हमले के बाद से अब तक यानी दो महीनों में सीमा पर निंयत्तण रखा के उल्लंघन के दौरान गोलीबारी और सीमा पर फौजियों पर हमलों के कारण हमारे 20 जवान शहीद हो गये। औसतन तीन दिनों एक जवान देश पर शहीद हो रहा है। इसमे वह घटना भी शामिल है जिसमें 22 नवम्बर 2016 को उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में माछिल सेक्ट में तीन जवान देश के काम आ गये जिनमे एक का सिर काट कर दुश्मन ले गया। रक्षामंत्री जी को यह घटना मालूम होगी। उसदिन कहा गया था कि इस कायराना हरकत का उचित जवाब दिया गया था। आज पांच दिन में क्या कुछ हुआ रक्षामंत्री जी नहीं बता रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि 15 नवम्बर 2106 तक सीमा पर 279 झड़पें हुईं। एस ए टी पी द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार जममू कश्मीर में 20 नवम्बर 2016 तक आतंकवाद से जुड़ी विभिन्न घटनाओं में 74 जवान शहीद हो गये। यह संख्या 2009 के बाद सबसे ज्यादा है। 2015 के मुकाबले 81 प्रतिशत ज्यादा सैनिक इस साल शहीद हुये हैं और हमारे रक्षामंत्री जी ताल ठोंक रहे हैं। यहां एक और बात नजर आ रही है कि इस वर्ष आम आतंकवादियों के हाथों नागरिकों के मारे जाने की घटनाएं कम हुई हैं। 2015 के मुकाबले इस वर्ष 45 प्रतिशत कम नागरिक मारे गये। इससे पता चलता है कि आतंकी फौजियों पर हमले ज्यादा कर रहे हैं। यह एक नयी रणनीति की ओर संकेत दे रहा हे। आतंकियों के आकाओं ने कश्मीर की जनता को तंग नहीं करने का संभवत: फैसला किया हो। यह देश से बगावत को हवा देने की कोशिश के अंतर्गत तो नहीं किया जा रहा है। दो दिन पहले फारुख अब्दुल्ला क्या क्या बोल गये यह सरकार ने सुना ही। बुरहान वानी के बाद की घटना सबने देखा है। कहीं यह नयी रणनीति तो नहीं है। वीरता के बड़बोलेपन की खुशफहमी से दूर इस ताजा संकेत का विश्लेषण जरूरी है।
Monday, November 28, 2016
केंद्र सरकार के दावे और हकीकत
Posted by pandeyhariram at 1:20 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment