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Thursday, November 3, 2016

कश्मीरियों में बढ़ता अविश्वास


कश्मीरियों में बढ़ता अविश्वास

कश्मीर घाटी में हालात बेहद खराब हैं। खराब इसलिये नहीं कि वहां प्रदर्शन हो रहे हैं या पथराव हो रहे हैं या स्कूल वगैरह बंद हैं या नौजवानों की गिरफ्तारियां हो रहीं हैं। ऐसा तो पहले भी हुआ है, या यूं कहें कि कश्मीर में ऐसा अक्सर होता आया है।  इसबार कश्मीरी साइकी बेहद अवसाद ग्रस्त है ,  हालात इसीलिये खराब हैं। कश्मीरियों के जेहन में यह बात घर कर गयी है कि दुनिया में उनके लिये सोचने का वक्त किसी के पास नहीं है। दुनिया का ध्यान पश्चिम एशिया के इस्लामी विश्व की ओर है। वहां खतरा ज्यादा बढ़ गया है। सीरिया में अमरीका या रूस का मामूली गलत कदम व्यापक विपत्ति का कारण बन सकता है। इधर भारत का अमरीका से बढ़ता दोस्ताना और आर्थिक महाशक्ति के तौर पर उसके विकास  के कारण दुनिया का हर देश चाहता है कि भारत हमारे साथ रहे। अतएव कोई भी उसे घरेलू झगड़े के लिये फटकारना नहीं चाहता है। उधर पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद के शरणस्थल के रूप में बदनाम हो चुका है अतएवगरत से जुड़े किसी भी ऐसे मामले में जहां पाकिस्तान की भूमिका दिखती है लोग उसी की तरफ उंगली उठा रहे हैं। हाल में उड़ी में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद वादियों द्वारा उड़ी में हमले के बाद पाकिस्तान और कश्मीर को लेकदिनिया की निगाह में बचाखुचा जो भी था वह खत्म हो गया। भारत में कश्मीर के बारे में जब भी चर्चा होती है तो यही कहा जाता है कि वहां पाकिस्तान गड़बड़ी फैला रहा है और उदाहरण के लिये उड़ी हमले को सामने को सामने रख दिया जाता है। जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आये तो कश्मीरियों के मन में आशा जगी कि वे कश्मीर के सम्बंध में अटल बिहारी वाजपेयी की दिशा में सोचेंगे। पर ऐसा हुआ नहीं। मोदी जी ने चाहे दुर्घटनावश हो या जानबूझ कर हो भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आकुल देश में बदल दिया। सब लोग उसी दिशा में सोचने लगे जिस दिशा में सरकार सोचने के लिये इशारा कर रही है। इस कारणवश कश्मीर एक राजनीतिक समस्या ना हो कर सुरक्षा के लिये समस्या बन गया। बचा खुचा जे कुछ भी था वह कश्मीर में भाजपा – पीडीपी की सरकार ने चौपट कर दिया। पीडीपी ने हिंदुत्व के आदर्श को लेकर भाजपा के शासन में शामिल होने को उचित बना दिया। अब स्थिति यह हुई कि भाजपा ने इसे हिंदू मुसलमतान समस्या के चश्मे से देखना शुरू कर दिया। लिहाजा वहां हिंदु बहुल जम्मू और मुस्लिम बहुल कश्मीर में रस्साकशी बढ़ गयी साथ ही हर बात के लिये यहां तक कि मामूली​ राजनीतिक झगड़े के लिये पाकिस्तान को दोषी बताने की प्रवृत्ति के कारण वहां कश्मीरियों में असंतोष बढ़ने लगा। दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रति भारत की समस्या और गहरी होती गयी और इस कारण देशवासियों के मन में यह बात आने लगी कि कश्मीर में कुछ भी हो सकता है और जो कुछ भी हो रहा है उसके लिये पाकिस्तान दोषी है। लोगों ने कश्मीरयों के असंतोष के बारे सोचना ही छोड़ दिया। नतीजा यह हुआ है कि विरोदा करने वाला हर कश्मीरी पाकिस्तान समर्थक दिखने लगा, भारत का दुश्मन दिखने लगा। अब ऐसी स्थिति में दुश्मन से चाहे गोली से निपटिये या पैलेट गन से या फिर अन्य तरीके से यह तो सेना या सुरक्षा बलों को तय करना था। मीडिया ने सरकार के इस संकुचित नजरिये को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। यहां संकुचित इसलिये कहा जा रहा है कि सरकार का नजरिया मामले का सही निदान नहीं कर पा रहा है। यही नहीं यह नजरिया सरकार के राजनीतिक हित को भी साध हा है। आजकल आप सोशल मीडिया देखें तो सरकार की आलोचना करने वाले हर आदमी से यही पूच जा रहा है कि ‘भारत समर्थक है या भारत विरोधी।’ कश्मीर और कश्मीर के लोगहों के बारे में यह जो सोच में बदलाव आया है वह चिंताजनक है। अब कश्मीरी यह सोचने लगे हैं कि भारत में कोई भी उनके लिये नहीं सोच रहा है। अब इस भावना के बढ़ने के फलस्वरूप उनका भारत के प्रति और ‘कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’ वाले राजनीतिक जुमले के प्रति मोहभंग होने लगा है। अटल बिहारी वाजपेयी ने इसी श्रीनगर में नारा दिया था ‘इंसानियत और जम्हूरियत’ का और इसके बाद कई कदम उठाये थे उन्होंने जिससे विश्वास बढ़ने लगा था। आज स्थिति अचानक बदल गयी। सुरक्षा बलों का खौफ खत्म हो चुका है। सड़को पर खड़े हो कर वहां के बच्चे सुरक्षा बलों को ललकार रहे हैं कि आओ और हमें पैलेट गनों से अंधा कर दो। इस तरह ललकारने वाले वहां के बुर्जुग नहीं हैं, कश्मीर की किशोर पीढ़ी है। यह वह पीढ़ी है जिसके हाथ में कलम या लैपटॉप होना चाहिये था आज उनके हाथ में पत्थर है। भारत की जनता कहती है कि पत्थर से क्या होने वाला है? लेकिन उनका मानना है कि इस पत्थर बाजी ने कमसेकम पैलेट गन का सवाल संसद में उठा तो दिया। यहां ऐसे नेता दिख रहे हैं जो कश्मीरीयों से वार्ता करने के हामी हैं पर वार्ता की प्रक्रिया शुरू होती नहीं दिख रही है। इससे जो विलम्ब हो रहा है उसे लोग राजनीतिक स्वार्थ समझ रहे हैं। इससे अविश्वास बढ़ता जा रहा है समस्या गंभीर होती जा रही है। मोदी जी को इस दिशा में सोचना चाहिये। वे इतिहास गड़ने जा रहे हैं अगर उन्होंने कश्मीर की जनता में व्याप्त इस असंतोष का निराकरण कर देते हैं तो वे विश्व इतिहास में अमर हो जायेंगे।

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