गरजे मोदी लेकिन क्यों ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगरा में नोटबंदी का विरोध करने वालों पर जोरदार हमला किया. वे वहां रविवार को परिवर्तन रैली को सम्बोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि ये कदम काले धन वालों के खिलाफ उठाया गया तो "आपको " तकलीफ क्यों हो रही है. पीएम ने कहा कि उन्होंने देश को भ्रष्टाचारियों, कालाबाजारियों और कालेधन से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया है. उन्होंने कहा कि इसमे सबसे ज्यादा आशीर्वाद गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों ने दिया है जिन्हें मैं सिर झुकाकर नमन करता हूं.प्रधानमंत्री ने बिना नाम लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बीएसपी अध्यक्ष मायावती पर भी हमला बोला. पीएम ने कहा ,ये खेल बंद होना चाहिए देश में . प्रधानमंत्री का तेवर बहुत अाक्रामक था. उनके रोम रोम से रोष टपक रहा था. प्रधानमंत्री ने कहा कि सीमा पार से आतंकवाद और जाली नोट घुसेड़े जाते हैं. हर तरह की तस्करी कैश में होती है. नोटबंदी से जालीनोटों के कारोबार को झटका लगा है. उन्होंने कहा कि ये पैसे आतंकियों तक पहुंचते थे, आतंकी जवानों को निशाना बनाते थे.आखिर कब तक चुप रहते. प्रधानमंत्री ने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि समस्या के बारे में सबको पता था, वे चुप इसलिए रहे कि देश की चिंता कम थी, उन्हें कुर्सी की चिंता ज्यादा थी.
प्रधानमंत्री का सम्पूर्ण भाषण देशवासियों के दिलोदिमाग में एक खास प्रकार का डर पैदा कर रहा था. पूरे भाषण में काला धन, आतंकवाद, चिट फंड के जरिये गरीबों का धन हड़पने, चुनाव का टिकट बेचने इत्यादि का आतंक पैदा किया गया है. अगर मनोवैज्ञानिक नजरिये से देखें तो राजनीति में डर भी एक हथियार है. लोगों के दिलोदिमाग में डर पैदा कर किसी भी प्रकार के काम को करवाया जा सकता है. विख्यात दार्शनिक बट्रेंड रसल का कहना था कि कोई भी समाज तार्किक अौर समझदारी भरा काम नहीं कर सकता जब तक वह डर या आतंक के प्रभाव में हो. जहां तक काला धन का सवाल है,जिसका ढोल मोदी जी पीट रहे हैं वह, भारतीय सांख्यिकी संस्थान के मुताबिक हमारी अर्थव्यवस्था में महज चार सौ करोड़ का है. इतना कालाधन बहुत ज्यादा नहीं है. वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वव़िद्यालय के प्रो.अरूण कुमार का अनुमान है कि केवल तीन फीसदी कालाधन नकदी में है शेष अवैध संपत्तियों के रूप में है.भारत के पहले सांख्यिकीविद ,योजना आयोग के पूर्व सलाहकार और भारत में अन्तररार्ष्ट्रीय विकास केन्द्र के निदेशक प्रणब सेन का मानना है कि देश के किसानों और ग़रीबों के लिए नोटबंदी का यह कदम विनाशकारी साबित होगा.सेन के अनुसार विमुद्रीकरण नगदी के 86 फीसदी हिस्से को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहा है. मतलब कि इस अर्थव्यवस्था में सभी तरह के लेन-देन के 65 फ़ीसदी हिस्से को पंगु बना रहा है जो कि मज़ाक नहीं है.नोटबंदी से नगदी के प्रति एक खास प्रकार का भय पनप रहा है.अगर बैंक से निकाली गई रकम कोई तुरंत खर्च कर देता है तो यह अर्थव्यवस्था के लिए कम नुकसानदायक है और अगर वह इसे दबा कर बैठ जाता है तो ज्यादा नुकसान होगा. प्रणब सेन के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में विकास दर में 0.3 से 0.4 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है. अगर यह 7.6 से 7.7 की बजाय 7.1 से 7.2 के बीच रहती है तो बड़ा नुकसान होगा. इसका खमियाजा ज्यादातर गरीबों और कृषि क्षेत्र को उठाना पड़ेगा.देश में नई नकदी की भौतिक उपलब्धता और उसे सिस्टम में डालने की प्रक्रिया धीमी है. असली चिंता कृषि पर दूरगामी असर पड़ने की है. अगर रबी की बुआई प्रभावित हुई तो इसके दूरगामी घातक परिणाम होंगे. ऐसे में जब आपूर्ति सुचारू नहीं हो तो वस्तु विनिमय प्रणाली भी नहीं चल सकती.यह मानसून फेल होने से भी बदतर है. क्योंकि मानसून के धोखा दे जाने पर गरीब अगली फसल तक अपना काम चलाने के लिए औरों से उधार ले लेंगे लेकिन आज वे ऐसा नहीं कर सकते. रबी की बुआई बर्बाद होने की कीमत इंसान को चुकानी पड़ सकती है. किसान अवसाद में आकर खुदकशी कर सकते हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा विमुद्रीकरण को व्यापक समर्थन मिलने से बहुत खुश है. अगर कल चुनाव कराए जाते हैं तो यह उसके लिए अचूक अस्त्र साबित होगा लेकिन कुछ राज्यों में चुनाव तीन माह बाद होने वाले हैं. तब तक लोगों को काफी आघात पहुंच चुका होगा. अभी मिल रहा ऐसा जन समर्थन तब कहीं घातक न बन जाए!मोदी जी इस स्थिति को जानते हैं और इसलिये लोगों के भीतर डर पैदा कर रहे हैं.
Tuesday, November 22, 2016
गरजे मोदी लेकिन क्यों
Posted by pandeyhariram at 6:37 PM
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