फिर धड़ल्ले से आने लगे हैं जाली नोट
रिजर्व बैंक की कागज़ सप्लायर कंपनी पाकिस्तान को दे रही मदद
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि इस उद्देश्य नकली नोटों की मदद से होने वाले आतंकवाद और अन्य विध्वंसक गतिविधियों की फंडिंग को रोकना है. गृह राज्य मंत्री श्री किरण रिजिजू ने बड़े शान से कहा था कि नोट बंदी के बाद जाली नोट छापने वाले आत्म हत्या कर लेंगे, पर देश भर की बात छोड़ दें केवल बंगाल की सीमा पर मालदा में विगत हफ्ते भर में लगभग तीन लाख रूपए मूल्य 2 हज़ार के जाली नोट पकड़े गए हैं. कितने बाजार में आ गए इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन इस धंधे से जुड़े बंगला देशी सूत्रों का कहना है कि केवल इसी एक हफ्ते में 15 करोड़ से ज्यादा मूल्य के दो हज़ार के जाली नोट कोलकता पहुँच चुके हैं. देसी सूत्रों के मुताबिक इसके कुछ भाग का उपयोग उत्तर प्रदेश के चुनाव में हो रहा है पर टारगेट वह नहीं है.
लक्ष्य के बारे में बात करने से पहले ये नोट छपते कहाँ हैं और कौन छाप रहा है. सन्मार्ग की खोज के मुताबिक ये नोट वही छाप रहे हैं जो भारतीय रिजर्व बैंक के नोटों को छापते हैं. ये नोट कराची और दुबई में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई एस आई द्वारा चलाये जा रहे प्रिंटिंग प्रेस में छप रहे हैं और छपाई में एक स्विस नागरिक की नॉट छपाई की ब्रिटिश कंपनी इस काम में सहयोग कर रही है. दिलचस्प बात है कि यही कंपनी भारतीय रिजर्व बैंक के साथ दो हजार के नोट छापने में इन्टीग्रेटर है. 2010 में इस कंपनी पर भारत में पाबन्दी लगा दी गयी थी. चूँकि रिजर्व बैंक उसका सबसे बड़ा ग्राहक था, उसके आर्डर बंद होने के बाद वह कंपनी आरथिक संकट में फँस गयी थी. इधर नोट छपाई के काम में इन्टीग्रेटर्स के तौर पर फ्रेंच फर्म आरजो विग्गिन्स, क्रेन ( अमरीका) और जर्मनी की एक फर्म को जोड़ा गया. जर्मनी की वह फर्म रिजर्व बैंक को कागज़ बेचती थी और बाद में पता चला कि वह पकिस्तान के लिए नोट भी छपती थी. 2015 में भारत में उसे प्रतिबंधित कर दिया गया. हैरत की बात है कि वह ब्लैक लिस्टेड कंपनी भारत के नोट छपाई तक कैसे पहुंची?
सुन कर हैरान रह जाएंगे कि इस कंपनी के ताल्लुकात सत्तारूढ़ दल से बहुत पुराने हैं. जब सन्मार्ग ने इन संबंधों की डोर का सिरा खोजने की कोशिश की तो हैरत में डाल देने वाली हक़ीक़तें सामने आईं. 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयर लाइन्स की उड़ान संख्या आई सी 814 के अपहरण की घटना बहुतों को याद होगी. उस विमान की फिरौती के रूप में घोषित तौर पर मसूद अजहर समेत तीन आतंकियों को छोड़ा गया. देश को बताया गया कि विमान के यात्रियों को मुक्त कराने के लिए ऐसा किया जा रहा है. लेकिन एक यात्री का जिक्र नहीं किया गया जिसके लिए यह सारा चक्कर चला. उन यात्रियों में उस ब्रिटिश कंपनी का मालिक भी शामिल जो आज 2000 के नोट छापने के काम में रिजर्व बैंक का इंटेग्रेटर है. खुफिया सूत्रों के मुताबिक उसकी फिरौती की रकम भी भारत सरकार ने ही चुकाई थी. वह सबसे अमीर स्विस नागरिकों में एक है और उसकी रिहाई के लिए स्विस सरकार ने भारत पर दबाव दिया था.
आज वही कंपनी फिर भारत में नोट छापने में लग गयी है. अंतरराष्ट्रीय राजनयिक हलकों में तो यह भी चर्चा है कि नए नॉट छापने के लिए इस ब्रिटिश कंपनी ने एक बड़े नेता के नजदीकी व्यापारी को मोटी रकम चुकाई है. चर्चा तो यह भी है कि " मेक इन इंडिया " के तहत मध्य प्रदेश में नोट बनाने का कागज़ और स्याही का कारखाना बैठाने का समझौता हुआ है पर सरकार ने इस बारे में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है.
कराची और दुबई में छपे ये जाली नोट पाकिस्तानी राजनयिक सामानों में ढाका लाये जाते हैं. वहां से मालदा आता है और फिर देश के अन्य भागों में चला जाता है. चूँकि पाकिस्तानी जमातों पर अमरीकी दबाव बढ़ रहा है इस लिए वहाँ के आतंकी भारत भागेंगे और उन्हें यहां स्थापित करने के लिए इस बार यह कार्य किया जा रहा है. अभी यह कह पाना कठिन है कि वह ब्रिटिश कंपनी आतंकियों को और क्या मदद कर रही है तथा भारतीय अर्थ व्यवस्था में उसकी घुसपैठ कहाँ तक हुई है.
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