CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, February 26, 2017

कंसास की घटना से मिलते संकेत

कंसास की घटना से मिलते संकेत

 

अमरीका के कंसास शहर में एक अमरीकी ने दो भारतीय इंजीनियरों को एक बार में केवल इसलिये गोली मार दी कि वे अमरीकी नहीं थे और उन्हें गालियां दे रहा था तथा अमरीका से जाने के लिये कह रहा था और भारतीय इंजीनियरों ने इसकी शिकायत बार चलाने वालों से कर दी और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया। इसे घृणाजन्य अपराध कहा जा रहा है तथा इसका असर अमरीका के अन्य भागों में भी पड़ने की आशंका है। जबसे अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘अमरीका पहले’ का नारा दिया है तबसे वहां सामाजिक शत्रुतापूर्ण वातावरण बनता जा रहा है। भारतीय डरे हुये हैं, असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। ट्रम्प प्रशासन का ज्निवार्सन के कानून के प्रस्ताव ने अमरीका में इतना भय पैदा कर दिया है कि वहां भी भारत के स्लम निवासियों या तेल से अमीर हुये खाड़ी के देशों में बाहर से आये मजदूरों या चीन के आंतरिक प्रवासी मजदूरों की तरह एक नये वर्ग के बनने की आशंका हो गयी है। अमरीका में 110 लाख ऐसे प्रवासी मजदूर हैं जिनके रोजगार का कोई रेकार्ड नहीं है। इतनी बड़ी आाबादी और उनके परिजन अचानक गुम हो जायेंगे। वैधानिक व्यवस्था से अलग इतनी बट़ी आबादी अपनी मजदूरी को दूसरे को सौंप देने या वेश्यावृति जैसे दांदों में पड़ कर गंभीर शोषण का शिकार होंगे। औपचारिक सुरक्षा और सुविधाओं से वंचित वह आबादी मजबूरन अनौपचारिक विकल्पों की ओर बढ़ेगी और इससे भ्रष्टाचार के मौके बड़ेंगे, गुडों के गिरोह तैयार होंग या अन्य तरह के अपराध बढ़ेंगे। प्रशासन ​जिस लाभ के लिये प्रवासियों पर शिकंजा कस रहा है उसके परिणाम ठीक विपरीत होंगे। समाज एक जुट नहीं होगा, टुकड़ों में बंट जायेगा। अप्रमाणिक प्रवासियों की तादाद खत्म होने की बजाय एक नयी परिस्थति जन्म लेगी जिसे संभालना कठिन हो जायेगा। अमरीका में अप्रमाणिक प्रवासी सदा कूड़ेखाने की जिंदगी गुजारते हैं। यह एक ऐसी आाबदी हे जिसे सरकार नजरअंदाज कर देती है और लोग उन्हें झेलते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प के नये नियम से अप्रमाणिक प्रवासियों पर बोझ बढ़ेगा और जिसका दुष्प्रभाव समाज पर पड़ेगा। इस तरह के अधोवर्गय समुदाय का उद्भव कानून ओर हकीकत के बीच बड़ा अंतर आ जाने से होता है। अब जैसे भारत का उदाहरण लें। यहां के स्लम अक्सर गरीबी से संघर्ष के उदाहरण हैं। लेकिन ये स्लम ये भी बताते हैं कि भारत की सरकार अपनी तेजी से बढ़ रही आबदी को सुविधाएं मुहय्या नहीं करा पा रही है। जो लोग गांवों से शहरों में आते हैं उन्हें किफायती आवास नहीं मिल पाते इसलिये जो गैर कानूनी आवासन स्थल ौ वहीं लोग आ जाते हैं। इन स्लम वासियों को शहरों में लोग बर्दाश्त करते हैं क्योंकि ये उनकी सुख सुविधाओं में मदद करते हैं, जैसे घरेलू  नौकर या दाई से लेकर भंगी, आया, सफाईवाला इत्यादि। परंतु इसके साथ एक जोखिम भी बना रहता है कि स्लम को साफ कर दिया जायेगा क्योंकि शासन के आकलन में उसका अस्तित्व नहीं है। इस तरह के निवासी सरकार की सभी सेवाओं को हासिल नहीं कर पाते यहां तक कि पुलिस की मदद भी उन्हें पूरी नहीं मिलती। अमरीका में भी अप्रमाणिक प्रवासियों की स्थिति यही है। हालांकि वे स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं पर गलत समय में गलत जगह पर फंसे होने के कारण उन्हें निर्वासन का दंड भोगना होगा। इसके पहले के प्रशासन ने अपराधियों को खदेड़ने का अभियान चलाया था और इससे अप्रमाणिक प्रवासियों को एक तरह रहने की इजाजत मिल गयी थी। साथ ही शासन से बुनियादी बातचीत का रास्ता खुला, सुरक्षा का एक भाव पैदा हुआ।  नये प्रशासन ने जो निर्वासन कानून बनाया उससे दुबारा अनिश्चयता का भाव पैदा हो गया है। मध्यपूर्व के खाड़ी के देशों का अदाहरण लें। वहां मजदूर प्रवासी हैं उनके निवास पद्धति को काफला पद्दाति कहते हैं। इसमें जो निमार्ण में काम करने वाले या घरों में काम करने वाले अकुशल मजदूर रहते हैं उनके लिये नियोजक खुद कानून बना सकते हैं और लागू कर सकते हैं। इसके कारण उनकी रोजी रोटी या जीवन सबकुछ नियोजक की इच्छा पर निर्भर रहता है। अब जबकि इक बड़ा समुदाय इस तरह का जीवन बितायेगा तो उसका असर पूरे समाज पर पड़ेगा। कोलकाता या मुम्बई में अंडर वर्ल्ड के उत्थान का इतिहास देखें तो वह स्लम से ही शुरू होता है। जे एफ रिबेरो की पुस्तक ‘फ्रॉम रामपुरी टू ए के 47’ के अनुसार ‘‘कुछ लोग गिरोहबंद हो कर वहां के बाशिंदों की हिफाजत करते हैं और बाद में अपना अपना इलाका बांट लेते हैं। अब उस इलाके में रहने वाले लोग इस ​िफाजत की कीमत चुकाते हैं और फिर उसे अपना संरक्षक मान लेते हैं।’’ अमरीका में प्रवास की पाबंदी ने भी कुछ ऐसा कर दिया है। अप्रमाणिक प्रवासी धीरे धीरे अपराधी बन रहे हैं , वे तस्करी से जुड़ गये हैं या फिर लोगों को चोरी छिपे अमरीका लाने और बाहर निकालने के काम में लग गये हैं। ट्रम्प के नये नियम इसे और व्यापक और घातक स्वरूप दे देंगे। ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के प्रो सियान फॉक्स के मुताबिक ऐसे इलाकों में सब ताल मेल बना कर चलते हैं। जो लोग मजदूरी करते हैं वे उसका कुछ हिस्सा वहां के गुंडों को दे देते हैं बदले में वे गुंडे उनकी हिफाजत करते हैं। एक सामंजस्य बना रहता है ओर सबकुच् ठीक ठाक चलता है। इसे खत्म करने का मतलब है तालमेल को खत्म करना। इससे समाज प्रभावित होगा। कंसास की घटना से कुछ ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं। अमरीकी समाज में भारी विपर्यय की आशंका बढ़ रही है।         

0 comments: