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Sunday, February 19, 2017

पुराण कथाओं की सियासत

पुराण कथाओं की सियासत

 गत दिनों उत्तर प्रदेश की एक चुनाव सभा में प्रधान मंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने नश्वर और अनश्वर की चर्चा कर एक नवीन बिम्ब का सृजन करने का प्रयास किया। भाषण कला में निष्णात मोदी ने खुद की तुलना कृष्ण से कर डाली। यह तुलना कुछ इस अंदाज में की उन्होंने कि कुछ अटपटा नहीं लगा। लेकिन जो लोग संवाद समझते हैं और संवादों के माध्यम से बिमब सृजन का मानोविज्ञान समझते हैं वे इस चाल को जरूर समझे होंगे। साथ ही राष्ट्र को यह बताना जरूरी है कि इस चाल की शह और मात क्या है। मोदी ने कृष्ण के परिवार बदलने से अपनी बात का सूत्र पकड़ा। उन्होंने कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश ने उन्हें कृष्ण की भांति गोद लिया है और अब वे उसे ही अपना माई बाप समझते हैं और एक सच्चे पुत्र की तरह इसकी सेवा करना चाहते हैं।’’ मोदी जी ने बड़ी सफाई से दत्तक या अभिग्रहण के हिंदू संस्कारों की परिभाषा बदल दी। धर्म शास्त्रों के मुताबिक मोदी ने इस तरह से कह कर कर धर्मशास्त्रों में विहित सूत्रों के अनुसार दत्तक की अशुद्ध व्याख्या की है। अगर सही ढंग से देखें तो कृष्ण दत्तक नहीं थे। वशिष्ठ धर्म सूत्र के 17 वें अध्याय के श्लोक 36-37 में विहित नियम के मुताबिक कृष्ण दत्तक नहीं थे बल्कि ‘अपविद्ध पुत्र’ थे। ‘ माता पिता के एक समुच्चय द्वारा त्यागे जाने के बाद ​किसी दूसरे समुच्चय द्वारा अपनाये गये बालक को अपविद्ध पुत्र कहते हैं। ’  मोदी का छल यह था कि वे कृष्ण के माध्यम से अन्य पिछड़ी वर्ग की सहानुभूति हासिल करने के इच्छुक थे। लेकिन यहां एक विभ्रम है कि कृष्ण जन्मना यादव नहीं थे। जो आज ओ बी सी की कोटि में गिने जाते हैं। केशव तो देवकी - वासुदेव के पुत्र थे जो वृषणी कुल के क्षत्रिय थे। इसी लिये कृष्ण के वसुदेव, देवकीनंदन और वार्ष्णेय कहा जाता है। कृष्ण के जनक क्षत्रीय थे और नंद –यशोदा ने उन्हें गोद नहीं लिया था बल्कि उन्हें चोरी छिपे जेल से निकाल कर नंद के घर में रख दिया गया था और उनकी नवजात पुत्री को वापस जेल में ले आया गया था। कृष्ण लीलावातार थे, परम योद्धा थे और ​​​त्रिकालदर्शी थे इसलिये सबके प्रिय थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मथुरा या गोकुल में अपनी राजधानी नहीं बनायी बल्कि वे द्वारका चले गये, जो अभी गुजरात में है। इसीलिये कृष्ण को द्वारकाधीश भी कहते हैं। चालाक राजनीतिज्ञों का यह पुरानी चाल है कि वे इतिहास को अपनी सुविधानुसार गढ़ लेते हैं। इसीलिये कृष्ण के यदुवंशी होने की बात मंडल आयोग के जमाने में फैलायी गयी और बात ने असर किया। क्योंकि उसी समय यादवों को अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया। इससे उस समय विधान सभाओं तथा संसदीय चुनाव क्षेत्रों का गठन भी बदल गया। उस समय से अबतक कई नेताओं ने कृष्ण का स्वांग रचा। इन नेताओं ने पौराणिक कथाओं को अपने अनुसार गढ़ लिया और चुनाव के लिये किसी भी चुनाव क्षेत्र से अपने पारिवारिक सम्बंध जोड़ लिये। इस लिये इसमतें हैरत नहीं है कि वे उन लोगों से नफरत करते हैं जो उनके ऐसे सम्बंधों की तफ्तीश करते हैं। अब देखना है मोदी की बात लोग कैसे सुनते हैं। मोदी एक प्रखर वक्ता हैं, वे जब बोलते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। मोदी ने उत्तर प्रदेश की दुखती रग , बीमारू राज्य (बिल्कुल पिछड़े राज्यों में से एक ) , को पहचाना और बड़े नामों के बिम्ब को इस्तेमाल करना शुरू किया। मोदी ने ठीक समझा है कि कृष्ण का नाम यहां इस्तेमाल करना सही होगा। कृष्ण ने यू पी के मथुरा से वृंदावन और गुजरात के द्वारिका तक की यात्रा की। इस आधुनिक कृष्ण ने इस पथ को उल्टा कर दिया और उन्होंने गुरात से यू पी की यात्रा की। जष्से ही माहौल में बात का असर दिखा उन्होंने बड़ी सफाई से कहा कि 2014 में जो यहां के लोगों ने उन्हें अपना कर दया दिखायी है मैं अंतिम सांस तक इसकी सेवा करना चाहता हूं। खुद को प्रधान सेवक कहने वाले मोदी गांदा जी की तरह घुटनों तक धोती नहीं पहनते हैं बल्कि शानदार चूड़ीदार पाजामा और कुर्ता पहनते हैं और महंगी शॉल कुछ इस तरह लिपटा रहता है कि उनका 56 इंच सीना अलग से दिखता है। वे भीड़ से आगे चलते हैं और सबके नमस्कार –प्रणाम का जवाब देते हैं। यह उनकी शैली नहीं है बल्कि वे यूरोप अनुरागी की स्टाइल अपनाना चाहते हैं। जिस मंच पर उन्होंने खुद को कृष्ण से तलना की उसी मंच पर उन्होंने बेहद गुस्से में कहा कि ‘आपकी मां बहनें अंधेरे में बाहर नहीं निकल सकतीं हैं, यह सच है या नहीं।’ उन्होंने कहा कि यह जीवन नहीं है , यह लोकतंत्र नहीं है और अचानक उन्होंने बताना शुरू किया कि कैसे बड़े बड़ों की हवा निकाल दी, कैसे नेहरू गांदा के शिकंजे से देश को मुक्त कर दिया। इसके बाद वे सही मसले पर आये कि ‘मुझे वोट दें, मैं राज्य का विकास करूंगा जिसने मुझे इतने प्यार से गोद लिया है। ’ भारत माता की जय। मोदी जी की सारी बेचैनी और अनश्वरता नश्वरता के बिम्ब संधान का उद्देश्य केवल वोट का स्वार्थ था। यह स्पष्ट बाजारवाद है जिसमें आदर्शों , मिथकों और स्थितियों को एक साथ मिलाकर जिंस बनाया जाता है और उसे लोगों में बांटा जाता है। ठीक वैसे ही जैसे प्रसाद की मिश्री , न चाहते हुये भी लेते हैं लोग और कुछ सेकेंड तक मुंह में मिठास बनी रहती है। मोदी आदर्शों और मिथकों को जिंस में ढालने में माहिर हैं। अच्छे दिनों के जुमले से लेकर कृष्ण के मसले तक का विश्लेषण करें तो पता चल जायेगा।    

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