नोटबंदी : क्या हुआ सरकार का वादा
विगत वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण प्रभावशाली कहा जा सकता है, प्रभावशाली इस मायने में नहीं कि वह एक अच्छा सन्दर्भ का काम कर सकलता है बल्कि इस अर्थ में भी कि वह कई बातों के लिए सावधान भी करता है. क्योंकि इसमें जो बातें जिस द्फ्हंग से कही गयीं हैं वे नरेन्द्र मोदी से जुड़े लोगों की सरकार या नरेन्द्र मोदी की सरकार से जुड़े लोगों की विशेषता नहीं है. आर्थिक सर्वेक्षण स्पष्ट कहता है कि नोट बंदी के प्रभावों का आकलन अभी बाकी है. सर्वेक्षण में बहुत सफाई से यह कहने की कोशिश की गयी है कि १नोत बंदी से हुए घाटे या मुनाफे का आकलन अभी बाकी है लेकिन यह कबूल किया गया है कि इससे सकल घरेलु उत्पाद में 0.5 प्रतिशत की गिरावट आयी है. नोट बंदी से हुए लाभ के बारे में सरकार बता नहीं पा रही है लेकिन जो घटा साफ़ दिखता है वह है कि प्रत्यक्ष कर वसूली में कमी आयी है. जितने काले धन को निकलने की घोषणा की गयी थी उस पर कर वसूली और जुर्माना उतना नहीं वसूला जा सका. दूसरी बात जो कही गयेदे थी वह थी कि नोत्बंदी के बाद बैंकों में रुपयों की बाढ़ आ जायेगी जिसके परिणाम स्वरुप बैंक ऋण पर ब्याज नदर घटा देंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग क़र्ज़ लेकर कारोबार कर सकेंगे. लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण में ऐसा कुछ भी नहीं सुना गया जो कि नोट बंदी के दौरान बार बार कहा गया था जैसे यह सब काले धन, जाली नोट और आतंकवाद को धन दिए जाने के खिलाफ जंग है. सरकार अपने ही बजट में इन वायदों को पूरा करने में नाकामयाब हो गयी. ऐसे मौके पर हम यह मानने को बाध्य हैं कि नोट बंदी से होने वाले जिन लाभों को गिनाया गया था वे नहीं हासिल हो सके. जैसा कि बजट में बताया गया है कि 2016 – 17 में कुल कर राजस्व 17 प्रतिशत बढ़ा. नए वर्ष में सरकार को उम्मीद है कि यह 12 प्रतिशत बढेगा. इसी तरह 2016 -17 में आय कर में 23 प्रतिशत वृद्धि हुई है जो नए वर्ष में बढ़ कर 25 प्रतिशा होने की उम्मीद है. सरकार के आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमनियम ने विगत सप्ताह एक अंग्रेजी दैनिक को दिए गए साक्षात्कार में कहा था कि नोट बंदी से जो सबसे ज्यादा चार लाभ हैं उनमें सर्विस टैक्स सर्वाधिक है पर जी एस टी के कारण इसके प्रभाव को अलग से आंकना कठिन है. यहाँ भी जो आंकड़े हैं उनसे नहीं लगता कि सर्विस टैक्स में बहुत कुछ आने वाला है. खुद वित्त मंत्री ने उम्मीद ज़ाहिर की है कि इस वर्ष सेवा कर में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो 2017- 18 में 11 प्रतिशत हो सकती है. इन कर वसूली के आंकड़ों में ऐसा कुछ भी नहीं दिखता कि नोट बंदी से बहुत लाभ हुआ हो. इसमें भी एक बात है कि चालू वर्ष के ये आंकड़े सरकार के संशोधित अनुमानित आकलन के आधार पर तैयार किये गए हैं लेकिन जब अंतिम दो महीनो की लाभ हानि का वास्तविक आकलन होगा तो इस राशि में और कमी आ सकती है. लेकिन नोट बंदी के कारण जिस वृद्धि की उम्मीद लगाई गयी थी या बंधाई गयी थी , उन उम्मीदों का पूरा होना कहीं दिखा नहीं. 2016 – 17 के बजट अनुमान और सरकार के संशोधित अनुमान में महज 4 प्रतिशत का अंतर है. इससे ऐसा लगता है कि राजस्व के मामले में सरकार थोड़ी खुश किस्मत है क्योंकि उसे कर राजस्व में 23,167 करोड़ की अनापेक्षित आमदनी हो गयी जो सरकारी उद्यमों में लाभ के खाते से आयी. यह तो साफ है कि नोट बंदी का बड़ा लाभ गिनाने की वित्त मंत्री के पास कोई गुंजायश नहीं थी. बड़ी बड़ी कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी कोई जगह नहीं थी और ना ही कोई बहुत बड़ी घोषणा करने की स्तिथि थी जो उनके बड़ बोलेपन को बल दे. मसलन स्मार्ट सिटी के लिए 9 हज़ार करोड़ का प्रावधान जो इस वर्ष के संशोधित आकलन से 559 करोड़ रूपए कम है. मनरेगा के लिए 48 हज़ार करोड़ रूपए का प्रावधान प्रभावशाली है पर जैसे ही यह पता चलता है कि इस मद में अनुमानित व्यय 47,499 करोड़ है तो सारा प्रभाव ख़त्म हो जाता है. स्टार्ट अप इंडिया का अपेक्षित कोष भी एक उदाहरण है. पिछले वर्ष इसके लिए 6 सौ करोड़ का कोष था इस वर्ष के बजट से वह गायब है. यही नहीं कई और दिक्कतें हैं जैसे सब जगह डिजिटल व्यवस्था हो रही है पर देश के हज़ारों गांवों में बमुश्किल 24 घंटा बिजली रहती है अहीं कहा गया है . मोबाइल फोन की बात है तो उसे भी चार्ज कराने की ज़रुरत होती है. इस मसले पर कुछ नहीं कहा गया है. बजट भाषण में पहले की तरह बड़ी बड़ी बातें नहीं थीं. जेटली यह मानने को मजबूर थे कि जो बड़ी बड़ी घोषणाएं हुईं थीं उन्हें पूरा नहीं किया जा सका. अब अगले साल के बजट में हो सकता है ज्यादा ‘ इमानदार’ नज़र आयें.
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