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Tuesday, February 21, 2017

इतना सन्नाटा क्यों है भाई

इतना सन्नाटा क्यों है भाई

भारत में काले धन के साम्राज्य के लिए की गयी कार्रवाई के तौर पर प्रधान मंत्री ने नोट बंदी का हुक्म दिया. उस कार्रवाई का खात्मा इतने सन्नाटे में खत्म हो जायेगा इसकी उम्मीद नहीं थी. बजट आया , रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति आयी और दोनों चले गए पर सन्नाटा कायम रहा. सरकार चुप रही और जनता इंतज़ार करती रही. नोट बंदी का क्या असर हुआ यह सरकार ने नहीं बताया और बाकी जिन्होंने बताया उसमे गड़बड़ था. बजट और आर्थिक सर्वे को देखने के बाद पता चला कि सन्नाटे का राज क्या है. इतने बड़े सुधार का दावा करने वाली कार्रवाई का नतीजा सिफर रहा. एक कहावत है कि किसी वस्तु को अगर आप तौल नहीं सकते तो उसे उठा भी नहीं सकते. सरकार ने नोट बंदी का हुक्म जारी कर दिया. मुसाहिबों के जरिये बात कुछ इस तरह फैलायी कि “ मेरे तरीके से सोचो” , पर सरकार को खुद नहीं मालूम कि जिसके खिलाफ यह कदम उठाया गया है उसका वजन क्या है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नवम्बर में कहा था कि यह यकीनी तौर पर मालूम नही कि बाजार में काला धन कितना है. अगर वित्त मंत्री का यह कहना सही है तो सरकार को यह बताना चाहिए था कि आखिर क्यों हज़ार और पांच सौ के नोट बंद किये गए.  यदि आर्थिक सर्वे की मानें तो नोट बेकार होने के कारण बंद किये गए. यहां बेकर  का मतलब है कि बाजार में चलते चलते  नोटों का खराब हो जाना. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक पांच सौ छोटे   नोट के इस तरह खराब होने की दर 33 प्रतिशत है, 500 के नोटों की दर 22 प्रतिशत और 1000 के नोटों के ख़राब होने की दर 11 प्रतिशत है. इन आंकड़ों से रिजर्व बैंक  ने यह आकलन किया कि लगभग 3 लाख करोड़ के नोट कभी बाजार में नहीं गए हैं या फिर बहुत कम गए हैं. 3 लाख करोड़ की यह राशि सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत है. क्या इसे काला धन माना जा सकता है? सर्वे में इसका कोई जवाब नहीं है.  लेक़िन यह तार्किक ढंग से काले और सफ़ेद धन का फर्क बताता है. सफ़ेद रुपया वह है जो आपात स्थिति के लिए घर में रखा होता है या कर्मचारियों को नगदी के तौर पर दिया जाता है, जबकि काला वह है जिसे छोटे व्यापारी पूँजी के रूप लगाते हैं और टैक्स में उसका जिक्र नहीं करते या चुनाव में पार्टियों को देते हैं.  नोटबंदी से बहुत ज्यादा लाभ नहीं  दिख रहा है, फकत इसके कि अग्रिम टैक्स भुगतान 35 प्रतिशत बढ़ गया जो अगले वित् वर्ष में 25 प्रतिशत होने की उम्मीद है.अगर यह सही है तो अगले दो वर्षों में कुल कर संग्रह 1.5 लाख करोड़ बढ़ जायेगा. बहुत पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने भी कहा था कि नोट बंदी के लाभ का कोई आंकड़ा नहीं है. बैंक को यह नहीं मालूम है कि बैंकिंग सिस्टम के बहार कितने बड़े नॉट हैं. सरकार ने बार बार कहा था कि नोट बंदी से आर्थिक मंदी नहीं आयी है लेकिन बाद में सरकार ने माना कि विकास पटरी से उतर गया है. आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि विकास दर में 1% की गिरावट आएगी. इससे कृषि को हानि हुई है, असंगठित क्षेत्रों को आघात लगा है. सरकार के पास इससे हुई हानि का कोई आंकड़ा नहीं है. अब क्या हुआ है यह समझने के लिए कोई बहुत अक्ल की जरूरत नहीं है. फिर भी इतना सन्नाटा क्यों है?  

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