बस जबानी जमा खर्च
मोदी जी ने जब चुनाव लड़ा था तो बार बार देश की जनता से वादा किया था कि राजनीति को अपराध से मुक्त करा देंगे. लेकिन उन्होंने ऐसा करने कोशिश तक नहीं की. उत्तर प्रदेश के वर्तमान चुनाव में 35-40 प्रतिशत उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं. कई आपराधिक कृत्यों पर तो सामाजिक वैधानिकता की मुहर लगी हुई है और वह काम सज़ा के बदले इनाम का सबब बन गए हैं.मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश के भा ज पा अध्यक्ष की बात करें. असोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ( ए डी आर ) द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष पेश शपथ पत्रों के आधार पर तैयार किये गए आंकड़ों के मुताबिक इस बार उत्तर प्रदेश में जितने लोग चुनाव लड़ रहे हैं उनमें भा ज पा के ऐसे उम्मीदवारों की सूची सबसे लंबी है जिन पर आपराधिक आरोप हैं.पहले चरण में भा ज पा के 41 प्रतिशत उम्मीदवार ऐसे थे और उसका अव्व्ल नंबर था. दूसरे चरण कांग्रेस के 40% और तीसरे चरण में सपा के 41 प्रतिशत आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार मैदान में थे. नरेंद्र मोदी जी ने 2014 में अपने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि कोई भी अभियुक्त चुनाव लड़ने का साहस नहीं कर सकेगा. लेकिन हकीकत जान के लगता है कि यह सब बस कहने की बात थी. बहुतों को याद होगा कि मोदी जी ने कहा था कि “ हमें राजनीति के अपराधीकरण को रोकना होगा और यह सब केवल बड़ी बड़ी बातों से नहीं होगा.” लेकिन देख कर तो लगता है कि वे केवल बातें ही करतें हैं. राजनीति को अपराधियो से मुक्त करने , राजनितिक अपराध और भ्रष्टाचार ख़त्म करने की दिशा में कुछ नहीं हो सका है. अलबत्ता उनके भाषण समय समय पर अपना स्वरुप और टोन बदलते रहे हैं. हाल में इस मामले में उन्होंने नोट बंदी का जुमला पेश किया. मोदी जी 2014 वाले चुनाव अभियान क़ा यहाँ जिक्र करने की क्या जरूरत है, यह पूछा जा सकता है, बेशक उसकी जरूरत है क्योंकि वादे के मुताबिक उसे खत्म करने की कोशिश भी की गयी हो ऐसा नहीं दिखता है. क्योकि अगर ऐसी भी हुई होती तो केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष नहीं बनाया गया होता. मौर्य पर लगभग एक दर्जन आपराधिक आरोप हैं. उनपर खून का मुकदमा चल रहा है और उसपर चार्ज शीट भी दाखिल हो चुकी है. ऐसे आदमी को पार्टी ने देश के सबसे बड़े राज्य का अध्यक्ष बनाया है. मौर्य को जब अप्रैल 2016 में राज्य पार्टी अध्यक्ष बनाया गया तो वहाँ नेताओं में गुस्सा दिखा था. पुराने नेताओं ने इसका विरोध किया था लेकिन मोदी और शाह ने यह कह कर मामला ख़त्म कर दिया की यह सब राजनीति प्रेरित है. मौर्य ने खुद कहा था कि उनपर लगाए गए अधिकाँश आरोप “ जान आंदोलनों का नेतृत्व करने के कारण लगाए गए हैं. “ लेकिन यह कहना सही नहीं है. काम से कम छान खान की खून के मामले में तो नहीं ही है. इस केस में चार्ज सहित तक दाखिल हो चुकी है. उनका राजनितिक रसूख चाँद खान के परिजनों को केस वापस लेने के लिए मजबूर कर रहा है. ए दी आर के आंकड़े बताते हैं कि मोदी जी राजनीती को अपराध मुक्त बनाने के लिए कुछ नहीं किया वरना मौर्य इतनी तेजी से तरक़्क़ी नहीं करते. वे। अपराधियों को टिकट देते रहे. यही नहीं अगर समाज वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो मोदी जी ने एक और आपराधिक धारा खोली है वह है आदर्श के नकाब में अपराध. चाय और अखबार बेचने वाला यूपी भा ज पा का अध्यक्ष बन जाता है केवल इसलिए कि वह विश्व हिंदू परिषद् का संगठन मंत्री था और 1991 का राम मंदिर आंदोलन में शामिल था. वह कभी संघ का नगर कार्यवाह भी रह चुका था. बाबरी ढाँचे को गिराया जाना एक आपराधिक कार्य था और अभी भी मुकदमा चल रहा है. लेकिन जो लोग उससे जुड़े थे उन्हें तरक़्क़ी दी जा रही है. 1949 में जिस जिला मजिस्ट्रेट ने मस्जिद में राम लाला की मूर्ति रखवाई थी उसे भ ज पा का एम् पी बनाया गया. इसमें हैरत नहीं है कि मौर्या ओर जो मुकदमें हैं राम मंदिर आंदोलन या गौ रक्षा आंदोलन से जुड़े हों. राजनीति में धन बल और बाहु बल की भूमिका के विश्लेषण के दौरान आदर्श के नकाब में अपराध पर भी विचार ज़रूरी है. क्योकि राम मंदिर और गौरक्षा आंदोलनों में पिछड़े तथा दलितों को शामिल किये जाने से इसका क्षेत्र और व्यापक हो गया. यह यह सरकार के कल्याण कारी कार्यों में शामिल हो गया है और इसका स्वरुप पुराने जमाने के लूद और ठगी से बदल कर आंदोलनकारी हो गया है. आदर्श की नींव पर खड़े अपराध का भी भारत में अलग इतिहास है जो 1949 में बाबरी मस्जिद में जबरन राम लाला की प्रतिमा स्थापित करने से लेकर मंदिर आंदोलन , ढांचा ध्वंस और गो रक्षा आंदोलनों के नाम की गयी गुंडागर्दियों को शामिल किया जा सकता है. क्योकि इन्ही अपराधों मुम्बई के दंगे और कर सेवकों को गोधरा में जला कर मार डालने जैसी घटनाओं को हवा दी थी. इसमें जो सबसे बड़ी बात है वह है कि मौर्य जैसे लोग जो इस तरह के नकाबपोश आदर्शवादी आंदोलनों में शरीक होते हैं उन्हें लगातार पुरस्कृत किया जा रहा है. यह कैसी अपराध मुक्ति है?
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है , नवाबी है
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