सच को खोजने दें
समय बदलता है और इतिहास भी। आज महाराणा प्रताप और चित्तौड़ के युद्ध पर नयी रोशनी डालने की बात हो रही है तो कई लोगों को आपत्ति हो रही है। लेकिन अंग्रेजों तथा मुगलों ने इतिहास को अपने हित में तोड़ा मरोड़ा है और उन व्याख्याओं की समीक्षा तो होनी ही चाहिये और अगर जरूरत हो तो इतिहास भी बदल दिया जाना चाहिये।
जब भारत की स्वाधीनता का संग्राम चल रहा था तो उस समय प्राचीन भारत और भारत की प्राचीन सभ्यता की बात बहुत होती थी। उसे ही आधार बना कर देश को एकजुट करने का प्रयास किया जाता था। वेद, रामराज्य, गीता, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद जैसे लोग और ज्ञान भारतीयता के बिम्ब होगये थे और देश को एक सूत्र में पिरोने का साधन बन गये थे। देश के अतीत का एक गौरव बोध तैयार किया गया था। भारत माता का चित्र और बंदे मातरम वाला गीत हमारे गौरव बोध की पहचान थे। भारत के संविधान के निर्माताओं ने कहा ‘इंडिया दैट इज भारत, इंडिया ही भारत है।’ यह इस लिये कहा गया नूतन और प्राचीन को जोड़ा जा सके। यह स्पष्ट कर दिया जाय कि आधुनिक भारत और प्राचीन भारत एक ही है। भारत की आजादी के बाद वामपंथी , मार्क्सवादी और यहां तक कि कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने भारत के इतिहास की किताबें लिखीं। जैसा कि सब जगह वामपंथियों ने किया है यहां भी उन्होंने भी भारतीय धर्म और संस्कृति को खारिज करते हुये इतिहास को तोड़ मरोड़ दिया। उन्होंने हिदू धर्म को एक पृथक पंथ घोषित कर दिया और भहारतीय सभ्यता को एक आधुनिक कहानी बताते हुये इसके इतिहास को खारिज कर दिया। उनका मानना था कि भारतीय सभ्यता किसी ऐतिहासिक सच्चाई को बिमिबत नहीं करती। उनके मुताबिक भारत एक राष्ट्र के तौर पर मुगलों और बिटिश की देन है और जिसका निर्माण नेहरू के काल में हुआ। उनके मुताबिक मुस्लिम हमलावर प्रगतिशील नजरिये के धर्मनिरपेक्ष अगुआ थे। वे देश को लाभ पहुंचाने का श्रेय औपनिवेशिक शासन तथा अंग्रेजों को देते हैं। हाल में शशि थरूर ने एक किताब लिखी है ‘पैक्स इंडिया,’ इस पुस्तक में उनहोंने अंग्रेजों के अपराध एक एक कर गिनाये हैं। अंग्रेजों एक औपनिवेशिक कहानी भारतीयों के बीच डाल दी कि उसने भारत की मदद की है जबकि उन्होने लाखो भारतीयों को अकाल में मरने दिया, अत्याचार में पिसने दिया और पारम्परिक शिक्षा , विद्या और संस्कृति का दमन किया।
एक भारतीय का अपनी र्सकृति के साथ का सहज सम्बंदा उस क्षण विघटित होने लगा अंग्रेजो ने शासक के तौर पर हमारी जीवन पद्धति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। भारतीय इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना थी जब जीवन के सहज प्रभाव को इतिहास के फ्रेम में परिभाषित किया जाने लगा। अब जिस तरह शशि थरूर ने लिखा है ब्रिटिश के बारे में उसी तरह मुगलों के बारे में या अन्य मुस्लिम हमलावरों के बारे में भी तो लिखा जा सकता है। मुगलों ने हिंदुओं को बड़ी संख्या में मारा और मंदिरों का विनाश किया। इन हमलावरों ने चाहे वो अंग्रेज हों या मुगल या कोई और उन्होंने हमारी चेतना को अतीत, वर्तमान और भविष्य में बांट दिया। उन्होंने इतिहास के रूप में भारत के अतीत की खोज नहीं की बल्कि वर्तमान से हमें उन्मूलित कर दिया। यह सब कुछ ऐसा ही हुआ जैसे इतिहास के फावड़े ने हमें जड़ से उखाड़ कर अलग फेंक दिया और कह दिया कि यही भारत का वर्तमान है और वह तुम्हारा अतीत था, यानी इतिहास था। इसलिये विदेशी शासनों का जो विनाश हुआ वह हमारे भीतर हुआ। हमने अपनी संलग्नता का बोध खो दिया जो हमें अपने समय, परिवेश और संस्कृति से जोड़े हुये था। भारतीय संस्कृति की खूबी यही थी कि उसकी दृष्टि में वस्तु इगो से नहीं जुड़ी थी। जो गलत था उसे ऐतिहासिक वैधता देकर हमारे जीवन के विभिनन पहलुओं को कलुषित कर दिया। कुछ लोगों की दलील है कि अगर मुस्लिम हमलावरों ने दमन और नरसंहार किया भी है तो अब उस राख को कुरेदने की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे वर्तमान में मुस्लिमों या इसाइयों के विरूद्ध हिंदु समुदाय में गुस्सा पैदा हो सकता है, जबकि उस काल के क्रियाकलापों से इनका कोई लेना देना नहीं है। लेकिन क्या इसी आधार पर हम इतिहास को खारिज कर दें। जर्मनवासियों की संवेदनशालता के नाम पर क्या आज नाजी के अत्याचार से इंकार किया जाता है। अगर पाकिस्तान के इतिहास कारों की बात करें तो उनके धार्मिक नेताओं को गर्व से दिखाया गया है और यह बताने की कोशिश की गयी है कि मुसलमानों के हमले के पहले भारत कुछ नहीं था। दुर्भाग्यवश भारतीय फिल्म उद्योग भी इतिहास को उन्हीं के पक्ष में दिखाने लगा है उसने शासन के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध नहीं दिखाया जा रहा है, जबकि भारतीय प्रतिरोध का इतिहास आठवीं सदी से उपलब्ध है। कुछ लोगों का माहनना है कि मुगल सेकुलर थे क्योंकि उनकी फौज में हिंदू भी थे। इसलिये इस विषय में धर्म को लाया जाय। इस दौर में यूरोप में क्या हो रहा था? जब 17वीं सदी में तुर्कों ने वियना पर हमला किया था। वे कहते हैं कि वे यूरोप को इस्लाम बना देंगे। दूसरी तरफ इसाइयों की फौज अन्य मोर्चों पर लड़ रही थी और उसमें ईसाइ सैनिक भी थे।
आज जबकि विद्वतजन इतिहास को राजनीतिक तौर पर गलत बता रहे हैं। तो उन्हें अज्ञानी क्यो कहा जा रहा है। इतिहास की पूरी गवेषणा होनी चाहिये और सच को खोजा जाना चाहिये। इतिहास से इंकार भविष्य का जाखिम हो सकता है।
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