भारत को ख़तरा बढ़ा
पिछले हफ्ते सिंध के शेहवान के विख्यात शिया मस्जिद शाहबाज कलंदर में विस्फोट से लगभग 100 श्रद्धालु मारे गए. ऐसी घटना पहले कभी नहीं हुई थी. इससे सारा मुल्क दहल गया. पकिस्तान में शिया और गैर सुन्नी आबादी आतंकी हिंसा का अक्सर शिकार होती रही है. शेहवान की घटना की सबसे बड़ी विलक्षणता है कि इस्लामिक स्टेट ( आई एस ) ने इसकी जिम्मेदारी ली है. आई एस ने पकिस्तान को यह इत्तिला कर दी है कि वह उसकी चौखट पर खड़ा है और भविष्य में भारी खून खराबा कर सकता है. इसका सबसे पहला उद्देश्य था पाकिस्तानी सुरक्षा और खुफिया तंत्रों को झकझोर देना . और दुनिया को यह बता देना की ये फिसड्डी हैं तथा शिया अल्पसंख्यकों की हिफाज़त में नाकाम हैं. इस हमले के इशारे को पकिस्तान ने भांप लिया और वहां के सुरक्षा तंत्र में हड़कंप मच गया. अफरा तफरी में कार्रवाई हुई और पाकिस्तानी फौज ने आतंकवादियों के संदेह में 100 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. चौबीस घंटे के भीतर यह हुआ और इससे साफ ज़ाहिर है कि फ़ौज आतंकित थी और आवाम में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए यह कार्रवाई की गयी. ताकि लोग यह समझें कि फ़ौज ने बदला ले लिया. लेकिन यहां एक सवाल है कि अगर उस घटना के दोषी आसपास ही थे और फ़ौज के पास उनकी फेहरिस्त भी थी तो यह कार्रवाई पहले क्यों नहीं की गयी ताकि उस धार्मिक स्थल पर मौजूद मरने से बाख जाते. इतना बड़ा नरमेध नहीं हुआ होता. यहां एक और संदेह होता है कि अगर शक के बिना पर सौ लोग मारे गए तो यक़ीनन कुछ बेक़सूर लोग भी होंगे जिनकी जान नाहक गयी. इस मामले पर बहस हिती रहेगी लेकिन फिलहाल जो सवाल पकिस्तान की जनता वहाँ की सरकार से पूछ रही है कि क्या कोई आतंकवाद विरोधी संगठन है सरकार के पास जो इस आतंक से निपट सके. अपनी ताकत और खुफियागीरी की डींग मारने वाले जनरलों से पाकिस्तानी अखबार लगातार पूछ रहे हैं कि ऐसा कैसे हुआ? क्या दोनों घटनाएं एक की प्रतिशोधस्वरुप थीं या संयोगवश एक साथ घटीं. यह वहाँ के सुरक्षा तंत्र पर एक गंभीर आरोप है. वहाँ राष्ट्रिय एक्शन प्लान पर भी सवाल उठ रहे हैं. इसका जिक्र कुछ ऐसे होता है मानो कि मज़ाक है. जनता नवाज़ शरीफ सरकार से भी पूछ रही है क्योंकि देश अर्से से आतंकवाद के खत्म होने का इंतज़ार कर रहा है. सभी आश्वासन और दिखाऊ कार्रवाईयां बदकिस्मती से बेनतीजा रहीं और मिली केवल मौत. अब पाकिस्तानी फौज ने अफगानिस्तान के आतंकी गिरोहों पर दोष मढ़ना शुरू कर दिया है कि वे पकिस्तान में इस तरह के हमले कर रहे हैं. अब उसकी नज़र फेडरली ऐडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियाज ( फाटा ) पर जा रही है क्योंकि यह आतंकवाद का केंद्र माना जाता है. यह सब जानते हैं कि उस इलाके में अल कायदा , हक्कानी नेट वर्क , तालिबान और उससे जुड़े गिरोहों के गढ़ हैं. फाटा बेहद पिछड़ा है और वहाँ सरकार की ओर विकास के लिए कुछ नहीं किया जाता है. यहां की आबादी लगभग 60 लाख है और सोलह प्रतिशत साक्षरता है, महिलाओं में फकत एक प्रतिशत साक्षरता है. वहाँ शिक्षा और विकास की जरूरत है. उनके जीवन में मामूली विकास भी आतंकवाद की पकड़ को कम कर देगा. यही नहीं उस इलाके में मानवाधिकार के उल्लंघन की घटनाएं अक्सर होती है. वहाँ मानवाधिकार को बहाल करने और उसकी हिफाजत करने के बदले सरकार वहाँ नए नए क़ानून लागू कर रही है. यह कदम प्रतिगामी हो रहा है वहां किसी भी तरह का विकास आतंकवाद की वृद्धि को लगाम लगायेगा. पूरी संभावना है कि अब अफगानिस्तान पर दबाव डालेगा. क्योंकि वह उसी को आतंकवाद का जनक मानता है. उसकी खुन्नस इस बात पर भी है कि अफगानिस्तान भारत के करीब आता जा रहा है और दोनों मिल कर आतंकवाद का मुकाबला करने की तैयारी कर रहे हैं. यह पकिस्तान की आँखों में खटक रहा है और वहाँ भारतीय अवस्थापनाओं को ख़तरा है. आतंकवाद की घटनाओं ने पाकिस्तानी जनता के सामने फ़ौज की मूंछे नीची कर दी हैं. अब इसमें कोई शक नहीं है कि पकिस्तान अपनी जनता का ध्यान भटकाने की गरज से भारत पर आतंकी हमले शुरू करेगा और कश्मीर को निशाना बनायेगा.
भतार सरकार को इसके लिए तैयार रहना चाहिए. क्योंकि वह अपनी शर्म को कम करने जके लिए देश के अन्य भागों में भी खून खराबा कर सकता है. इसके लिए फ़ौज कोण तैयार रहना होगा. इतना ही नहीं, पाकिस्तानी आतंकी गिरोहों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने से उन गिरोहों के गुर्गे भारत में शरण ले सकते हैं. इससे भी सावधान रहने की जरूरत है.
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