CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Thursday, February 16, 2017

अब मायावती के पीछे पड़ी भाजपा

अब मायावती के पीछे पड़ी भाजपा

भाजपा अदयक्ष अमित शाह ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव में उसकी प्रमुख प्रतिद्वन्दी सपा- कांग्रेस गटबंधन नहीं बल्कि बहुजन समाज पार्टी है, और नहीं तो कम से कम पहले दो चरणों में तो जरूर ऐसा ही है। उसके बाद के चरणों में हो सकता है कि कांग्रेस- सपा गठबंधन से उसकी टक्कर हो।  अब जहां तक पहले चरण में जिन क्षेत्रों मतदान हुये हैं उनमें उनमें विगत 2012 के चुनाव में सपा को 34 सीटें मिलीं थीं और कांग्रेस को तीन तथा बहुजन समाज पार्टी को 18 सीटें हासिल हुईं थीं। अब सवाल उठता है कि भाजपा अध्यक्ष आखिर इन 11 जिलों में मायावती या बसपा को मुख्य प्रतिद्वन्दी मान रहे हैं जबकि गठबंधन को हासिल हुईं सीटें बसपा को प्राप्त सीटों से दोगुनी से ज्यादा हैं। हो सकता है कि भाजपा की निगाह मुस्लि वोटों के विभाजन पर हो खास कर मुरादाबाद, अमरोहा, बिजनौर और रामपुर जैसे मुस्लिम बहुल जिलों में ये वोट तो चुनाव को प्रभावित कर ही सकते हैं। मुस्लिम वोटों के विभाजन का लाभ केवल भाजपा को ही मिलेगा। वह 2014 वाले समीकरण के बल पर अभी भी निर्भर है कि अगर मुस्लिम वोट बंट गये तो गैर यादव , गैर जाटव (अन्य पिछड़े वर्ग ) तथा ऊंची जाति के वोट उसे मिल जायेंगे। टी वी चैनल अब लगातार बता रहे हैं कि इस पहले चरण के मतदान के बाद किन पार्टियों की क्या संभावनाएं हैं। अमित शाह का कहना है कि उनहें नहीं मालूम कि यह चुनाव आयोग के निर्देश का उल्लंघन है या फिर इन चुनाव पंडितों ने कोई बाई पास खोज लिया है। बेशक अभी चुनाव केकई चरण बाकी हैं तथा यह भी मुतमईन नहीं है कि सब पार्टियां अपनी अपनी डफली बजायेंगी या शांत रहेंगी। लेकिन यह अभी साफ नहीं है कि किसका क्या होगा या यूं कहें कि किसे कितनी सीटें मिलेंगी। लेकिन भाजपा का मानना है कि पहले चरण ने बसपा ने ज्यादा वोट पाये हैं। मायावती ने ज्यादा तड़क भड़क नहीं दिखायी और चुपचाप प्रचार में लगी रही तो इसका यकीनन असर हुआ है। उनके जो प्रतिबद्ध वोट थे उन्होंने अपनी पसंद नहीं बदली है, वे बड़ी शांति से बसपा के हाथी के पीछे ही चल रहे हैं। अब यहां सवाल उठता है कि क्या बसपा उस जादुई संख्या को हासिल कर पायेगी जो उसे शीर्ष पर पहुंचा दें। बेशक बसपा ने मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की हरचंद कोशिश की है पर क्या वह पर्याप्त हो सकेगा। जहांतक मुस्लिम साइकी का सवाल है तो वह बड़ा अजीब है। मुस्लिम मतदाता बड़ा अजीब होता है। उसे अगर यह महसूस होगा कि उसका उम्मीदवार भाजपा के उम्मीदवार को हरा देगा तो वे उसी को वोट देगा। बेशक वह सपा- कांग्रेस गठबंधन का ही क्यों ना हो। प्रथम चरण के मतदान में रामपुर के बाहुबलि आजम खान और उनके पुत्र अब्दुल्ला आजम मैदान में थे। आजम खान अबतक उत्तर प्रदेश में मशहूर नाम है और जैसी कि संभावना है वे इस चुनाव पर व्यापक प्रभाव डाल सकते हैं।

इस चुनाव में उत्तर पश्चिम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कोई बहुत बड़ी ताकत नहीं है और जहां उसके वोट हैं भी तो कांग्रेस को यह मालूम है कि इससे उसे तथा गठबंधन को लाभ होगा। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रचार के लिये कई दौरे किये हैं और एक तरह से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  नोटबंदी को मुद्दा बनाया है। उन्होंने जो तरीका अपनाया है वह एक प्रकार से नोटबंदी पर जनमत संग्रह की तरह है। उनका जोर सरकार के कामकाज गिनाने पर नहीं था। दूसरी तरफ भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तिलिस्माती करिश्मों पर टिकी है। ये करिश्मे 2014 से आजमाये हुये हैं और विरोधी दलों की सोशल इंजीनियरिंग को बिगड़ देते हैं। मोदी आक्रामक मूड में हैं और वे सपा के घर में घुसकर ललकार रहे हैं। बदार्य।, बिजनौर और लखीमपुर खीरी​ इसका उदाहरण है। उनका निशाना खासतौर पर अखिलेश यादव सरकार की नाकामयाबियों पर है विशेषकर कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर अखिलेश यादव की असफलतायें उनका मुख्य मुद्दा है। मोदी जी के अलावा अन्य जिन नेताहओं ने प्रचार में हिस्सा लिया है वे संतोष गंगवार और केशव प्रसाद मौर्य। इन लोगों ने भी गैर यादव तथ अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश नहीं की। क्रंदीय मंत्री मेनका गांधी ने पीलीभीत में मोर्चा संबाला जबकि वरुण गांधी इस सबसे अलग रहे। पहले दो चरणों 140 सीटों पर चुनाव होने हैं और भाजपा को आशा है कि 90 सीटें वह जीत लेगी। इसका मतलब है कि उसे विधान सभा में लगभग दो तिहाई सीटें हासिल हो गयीं। किसी भी भाजपा समर्थक के लिये यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। अब कोई और भीतरी धारा अचानक बह निकले तो नहीं कहा जा सकता।        

0 comments: