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Friday, February 17, 2017

हवा में घुलता जहर

हवा में घुलता जहर

पिछले हफ्ते केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने कहा कि देश में मृत्युदर और वायु प्रदूषण में सम्बंध का कोई पक्का सबूत नहीं है। दिसम्बर में मंत्री ने राज्य सभा में कहा था कि देश में वायु प्रदूषण से मरने वालों के बारे में कोई विश्वसनीफय अध्ययन नहीं है। लेकिन अगर सरकार ने हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट बोस्टन और हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवोल्यूशन , वाशिंगटन विश्व विद्यालय की वायु प्रदूषण की दशा सम्बंधी रिपोर्ट पढ़ी होती और गंबीरता से पढ़ी होती तो शायद उसके मंत्री ऐसा नहीं कहते। बुधवार को जारी उस रिपोर्ट में कहा गया है कि गत वर्ष  भारत में प्रति एक लाख लोगों में 91 आदमी जहरीली हवा में सांस लेने से मरे। 1990 के बाद से यह मृत्युदर बढ़ती जा रही है और पहली बार यह संख्या दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले मुल्क चीन से ज्यादा हो गयी।दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर है..इसके बाद गाजियाबाद का नंबर आता है। तीसरे नंबर पर इलाहाबाद, चौथे नंबर पर बरेली और पांचवें नंबर पर फरीदाबाद है। इस लिस्ट में कर्नाटक का हासन शहर आखिरी नंबर पर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण भारत के कई शहर उत्तर भारत के शहरों के मुकाबले कमप्रदूषित हैं।आलोच्य वर्ष में चीन में जहरीली हवा में सांस लेने से मरने वालों की संख्या 85 थी जबकि भारत में,91। हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीटृयूट के निदेशक डेन ग्रीनबाउम ने इस समस्या को लेकर भारत के रवैये पर चिंता जाहिर की है। उनका कहना है कि भारत को इस मामले में ज्यादा काम करना है। लेकिन विडम्बना देखें कि पक्के सबूतों के बावजूद सरकार इसे इंकार कर रही है। अगर देखें तो भारत सरकार , चाहे वह वर्तमान हो अथवा पूर्ववर्ती ,का यह चरित्र रहा है कि वह स्वास्थ्य के मापदंड पर मापी गयी असफलताओं को खारिज कर देती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2014 में रिपोर्ट आयी थी कि दिल्ली की हवा में जितना प्रदूषण है उतना दुनिया के किसी भी शहर की हवा में नहीं है। सरकार को सुझाव दिये गये कि इसे नजरअंदाज नहीं करे क्योंकि इस रिपोर्ट से यह पता चलता है कि दुनिया में आम लोगों की सेहत की क्या दशा है। खास करके भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी खराब है कि कई बार अदालतों को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा है। स्टेट ऑप ग्लोबल एयर की रपट में बताया गया है कि भारत में वायु प्रदूषण घर के बाहर कायम तीसरा सबसे बड़ा जोखिम है।यूनिसेफ के एक शोध में बताया गया है कि दुनियाभर के सात बच्चों में से एक बच्चा ऐसी बाहरी हवा में सांस लेता है जो अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम से कम छह गुना अधिक दूषित है। बच्चों में मृत्युदर का एक प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है।

 सरकार ने एक माह पहले केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के ढांचे में सुधार और अतिरिक्त मॉनिटरिंग केंद्रों की स्थापना की घोषणा की थी और इस समय यह रपट आयी है। इस बार की रपट में एक नये प्रदूषणकारी ततव को जोड़ा गया है और वह ततव है –ओजोन। इससे होने वाली मौतों की बढ़ती तादाद खतरनाक है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इससे होने वाली मौतों में 1990 के मुकाबले आज 148 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ओजेन प्रदूषण पर अभी विज्ञान में काम चल रहा है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि यह खतरनाक है। लेकिन ओजोन प्रदूषण के आंकड़े बताते हैं कि इसके मुकाबले के लिये चरणबद्ध प्रयास जरूरी है। सरकार नजरअंदाज करके स्थिति को और बिगाड़ ही सकती है।ग्रनपीज की एक रिपोर्ट में  दावा किया गया  है कि भारत में वायु प्रदूषणसे  हर वर्ष करीब 12 लाख लोगों की मौत होती है। रिपोर्ट भारत के 168 शहरों से हासिल किए गए वायु प्रदूषण के आंकड़ों पर आधारित है । रिपोर्ट का दावा है कि भारत का कोई भी शहर वायु प्रदूषण के मामले में खरा नहीं उतरता। यानी अगर डब्लू एच् ओ  द्वारा तय किए गये पैमाने को आधार माना जाए..तो रिपोर्ट में शामिल भारत का  हर शहर प्रदू​षित है। भारत में वायु प्रदूषण हर वर्ष 12 लाख लोगों की बलि ले रहा है। ये एक तरह का अदृश्य नरसंहार है। जिसे हर हाल में रोकना ही होगा। क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वो दिन दूर नहीं है जब भारत के लोगों को प्रदूषण से बचने के लिए पलायन करना पड़ेगा और दूसरे देशों में शरण मांगनी पड़ेगी।ये भी नहीं भूलना चाहिए..कि विकसित देशों ने औद्योगिक क्रांति के नाम पर पूरी दुनिया का पर्यावरण बिगाड़ा है। इन देशों ने कई वर्षों तक प्रदूषण की चिंता किए बगैर विकास की फैक्ट्रियां खोली और दुनिया के अमीर देश बन गए। जबकि भारत जैसे विकासशील देशों को अभी काफी लंबा सफर तय करना है इसलिए भारत चाहकर भी कोयले पर निर्भरता को एक तय सीमा से ज्यादा कम नहीं कर सकता ।

लेकिन इस तथ्य का दूसरा पहलू ये है कि भारत को विकास की योजनाएं बनाते हुए ये ध्यान रखना होगा कि 12 लाख भारतीय हर साल विकास के नाम पर किए जा रहे इस हवन की आग में झोंके जा रहे हैं। और कोई भी जिम्मेदार देश अपने नागरिकों की जिंदगियों को अनदेखा  करके विकास की सीढ़िया नहीं चढ़ सकता।

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