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Tuesday, February 28, 2017

दूध – दूध हे वत्स तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं ’

दूध – दूध हे वत्स तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं ’

 

 कई दशक पहले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा था

 

हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं

दूध – दूध हे वत्स तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं

 

तेजी से विकसित होता हमारा देश मोह , माया, कोमलता , नफासत जैसे मानवीय सद्गुणों के  के खोने के अलावा कई भौतिक सम्पदा भी खोता जा रहा है। इनमें पर्यावरण के बाद दूसरी दौलत है हमारे देश का गोधन यानी दुधारू पशु। यह विकास का दंड है कि आर्थिक समृद्धि के बढ़ने के साथ साथ जमीन पर दबाव बड0 रहे हैं, शहर फैल रहे ओर उसी अनुपात में खेती सिकुड़ रही है , साथ ही कृषि के मशीनी करण के कारण गोधन पालन का रिवाज खत्म होता जा रहा है।इसका आवांतर दुष्प्रभाव है कि चारे का उत्पादन तेजी से घट रहा है क्योंकि उसकी खपत नहीं है। अब धीर धीरे हालत यह होने जा रही है कि अगर  अगले तीन वर्षों में चारे का अत्पादन लगभग दोगुना नहीं हुआ तो अगले पांच वर्षों में हमारे बच्चे दूध के बगैर बिलबिलाने लगेंगे। जिस देश कभी दूदा की नदियां बहतीं थीं , जिस देश के दर्शन में पालनहार भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं उस देश को अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिये विदेशों से दूध का आयात करना होगा। स्टेट ऑफ इंडियाज लाइवलीहुड की ताजा रपट के मुताबिक अगले पांच साल में देश में दूध की खपत 2100 लाख टन बढ़ जायेगी यानी 2020-21 तक दूध की खपत 36 प्रतिशत बढ़ने वाली है यानी प्रतिवर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से उत्पादन में वृद्धि होगी तब यह टार्गेट पूरा हो सकता है। जबकि नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि 2015- 16 में दूध का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 0.1 प्रतिशत बड़ा है। दूध का उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने के लिये भारत में 2020 तक 17640 लाख टन चारे का उत्पादन करना होगा जबकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि फिलहाल 9हजार टन चारा ही उपलब्ध है। यानीमोटे तौर पर 49 प्रीतिशत चारे की कमी है। आई आई एम बंगलोर की एक रपट के अनुसार लोगों की रहन सहन की आदतें ओर आर्थिक सम्पन्नता के बढ़ने के फलस्वरूप दूध की निजी खपत 1998-2005 के 5 प्रतिशत से बढ़कर 2005 से 2012 के बीच 8.5 प्रतिशत वार्षिक हो गयी। दूध की तेजी से बढ़ती खपत के कारण दूध की कीमतें तेजी से बढ़ रहीं हैं। स्टेट ऑफ इंडियाज लाइवलीहुड 2015 की रपट के अनुसार दूध की कीमतें पिछले वर्ष की तुलना में 16 प्रतिशत बढ़ीं हैं। हालांकि पिछले दिन दूध का अत्पादन बड़ रहा था 2015 में समाप्त हुये दशक में दूध का उत्पादन पूर्व के दशक के 920 लाख टन से बढ़कर 1460 लाख टन हो गया था पर चारे के अभाव के कारण यह उत्पादन तेजी से गिर रहा है। दूध की क्वालिटी और मात्रा दोनों का चारे से सीधा सम्बंध है। भारत के गोधन का दूध उत्पादन दुनिया के दुधारू पशुओं की तुलना में लगभग आधा (48%) है। प्रति दुग्ध अवधि (लैक्टेशन पिरीयड) का वैश्विक औसत 2038 किलोग्राम है जबकि भारत का औसत 987 किलोग्राम है। देश में सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन तीन राज्यों में होता है। इनमें पंजाब , हरियाणा और राजस्थान क्रमश:  प्रथम , द्वितीय और त़ृतीय हैं। अगर  प्रतिव्यक्ति ग्राम प्रतिदिन के आंकड़ों को देखें तो  औसतन पंजाब में 1032 ग्राम , हरियाणा में 877 ग्राम और राजस्थान में 704 ग्राम है जबकि राष्ट्रीय औसत 337 ग्राम है। आम तौर पर दुधारू पशुओं को तीन तरह का चारा खिलाया जाता है, जैसे हरा चारा , सूखा चारा और खली तथा अनाज वगैरह। लेकिन देश में चारे का भारी अभाव है। यहां कुल कृषि योग्य भूमि के केवल 4 प्रतिशत भाग में चारा उगाया जाता है।  आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल जरूरत का महज 63 प्रतिशत हरा चारा, 24 प्रतिशत सूखा चारा और खली तथा अनाज वगैरह मात्र 76 प्रतिशत उपलब्ध है।  अगर कृषि संसदीय समिति की 2016 की रपट को मानें तो देश में दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये पशु चारे की उपलब्धता को दोगुनी करनी होगी। फसल उगाने के बाद जो डंठल बचती है जैसे धान का पुआल या गेहूं का भूसा इत्यादि वह पशु चारे का सबसे बड़ा स्त्रोत है। लेकिन कृषि के मशीनीकरण के कारण ये डंठल बेकार माने जाते हैं ओर अनहें खेतों में ही जला दिया जाता है। इसका दोहरा दुष्प्रभाव होता है। इक तो चारे की कमी और दूसरा पर्यावरण का सत्यानाश। स्टेट ऑफ इंडियाज लाइवलीहुड की ताजा रपट के मुताबिक अगर अत्पादन का अचित विकास नहीं किया गया तो देश को आयात की ओर देखना होगा। चूंकि भारत बहुत बड़ा उपभोक्ता है तो बेशक कीमतें बहुत तेजी से बढ़ेंगीं। दुधारू पशुओं को पालने में जो खर्च लगता है उसका 60 से 70 प्रतिशत खर्च केवल उन्हें खिलाने में लगता है। स्टेट ऑफ इंडियाज लाइवलीहुड की ताजा रपट में यह सुझाव दिया गया है कि भूमिहीन ओर छोटे किसानों के लिये इन दिनों गोपालन या डेरी फार्मिंग आय का अच्छा पूरक बन सकता हे। उनकी आमदनी में 20 से 50 प्रतिशत वृद्धि हो सकती है। साथ ही दूध का धंधा साल भर चल सकता हे। इसके विपरीत अगर दूध उत्पादन को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में बच्चे , बूढ़े ओर बीमार लोग दूध के लिये तरसेंगे।

दूध – दूध दुनिया सोती है लाऊं दूध कहां किस घर से

दूध –दूध हे देव गगन के कुछ बूंदें टपका अम्बर से         

 

 

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