भारत ने गलती की
अमरीका की " प्रथम पुत्री " और अमरीकी राष्ट्रपति की सलाहकार इवांका ट्रम्प के भारत आने को लेकर देश में बड़ा उत्साह है। वे ग्लोबल उद्यमी सम्मेलन में शामिल होने के लिये यहां आ रहीं हैं। इस सम्मेलन का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण की प्रकिया को तेज करना है। इसका नारा है " अग्रणी महिला , सम्पन्नता सबके लिये। " बेशक हमारे देश को ऐसी पहल की जरूरत है। देश में विकास को अगले स्तर तक पहुंचाने के लिये उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना ही होगा। उद्यमता का लोकतंत्रीकरण एक आदर्श है और उसकी सार्थकता स्पष्ट दिख रही है , खासकर ऐसे वक्त में जब दुनिया पूंजीवाद के गुमराह स्वरूप में आगे बढ़ रहीं है। अगर किसी ने इस सम्मेलन का उद्घाटन टी वी वगैरह में देखा होगा तो वह सहज ही मान लेगा कि यह फोटो खिंचवाने की नरेंद्र मोदी की भव्य स्टाडल है। इसके प्रचार के लिये पी आर तंत्र ने भी कई स्तरो पर बहुत होम वर्क किया है। इस सम्मेलन की थीम " महिलाएं पहले और सम्पननता पीछे- पीछे " ने दुनिया में खुद को अलग दिखाना शुर कर दिया है। इस अवसर पर मोदी जी ने अपने भाषण में कहा कि " भारत में महिलाएं शक्ति का अवतार मानी जातीं हैं और हम अपने विकास के लिये महिला सशक्तिकरण पर भरोसा करते हैं।" इवांका ने भी बड़ा अच्ह भाषण दिया। उन्होंने कहा कि " महिलाएं दुनिया भर में विपरीत परिस्थतियों का मुकाबला कर रहीं हैं।" उन्होंने महिला उद्यमियों के लिये दुनिया भर में बेहतर अवसरों का आह्वान किया। गंका ट्रम्प ने कहा कि " जब महिलाएं सशक्त होंगी तभी हमारा परिवार , हमारा समाज , राष्ट्र ओर हमारी अर्थ व्यवस्था सशक्त होगी। " उन्होंने कहा कि " हमारे पिताजी के चुनाव के बाद हमने देश की सेवा के लिये , महिलाओं सहित सभी अमरीकियों को सशक्त बनाने के लिये- सफल बनाने के लिये अपना व्यवसाय छोड़ दिया। " उन्होंने कहा कि यदि भारत श्रमिक लिंग भेद को आधा भी खत्म कर दे तो अगले तीन साल में यहां की अर्थ व्यवस्था में 150 अरब डालर का विकास हो जायेगा। लगता है कि इंवांका ने सबकुछ ठीक ही कहा है पर आंकड़ों की जरा जांच कर लें तो अछच होगा। नासकॉम की रपट के मुताबिक भारत में 5000 स्टार्टअप्स में महिलाओं की भागी दारी फकत 11 प्रतिशत है। यही नहीं जिन स्टार्टअप्स को शेयर पूंजी से चलाया जा रहा है उनमें महिलाओं की भागीदारी केवल 3 प्रतिशत है। अतएव महिला उद्यमिता में ठोस परिवर्तन करने की जरूरत है। यहीं आकर महिला उद्यमियों के इस शानदार सम्मेलन में आन - बान - शान के साथ इवांका की मौजूदगी का कोई अर्थ नहीं रह जाता। इस मोड़ पर आकर लगता है कि महिला उद्यमी सम्मेलन में प्रतीक चिन्ह के तौर पर इवांका को आमंत्रित कर गलती की है भारत ने। यही नहीं इवांका ने खुद को महिला सशक्तिकरण का चैम्पियन घोषित किया है यहां यह याद रखना होगा कि वे राष्ट्रपति की पुत्री हैं और इसी के कारण वे वर्तमान पद कायम हैं। दुर्भाग्यवश उन्होंने महिलाओं की दशा सुधारने के लिये कुछ नहीं किया है। यही नहीं वे अमरीका की कुछ महिला विरोधी नीतियों का हिस्सा रहीं हैं। अमरीका में इस बात पर तीखी बहस है कि अमरीका में लिंगभेद को कम करने के प्रयासों के दौरान इवांका का भाषण एक तरह से उनका दोमुंहांपन है। सितम्बर में इवांका ने एक बयान जारी कर कहा था कि नस्ल , जाति और लिंग के वेतन हासिल पाने के आड़े एकत्र करने के लिये अन्हें सौ से ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं है। उन्होंने दावा किया कि ओबामा शासन द्वारा लागू यह योजना इच्छित परिणाम नहीं दे सकी। एक तरफ वे लिंग समानता की वकालत करलती हैं दूसरी तरफ यह महनने से इंकार कर देती हैं कि वेतन में लिंग भेद कायम है। अमीर और सफल पेशेवर के तौर पर एक ब्रांड इवांका की सर्वोच्च प्राथमिकता है। पिता डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा कई महिला विरोधी नीतियों को लागू किये जाने पर उनकी चुप्पी सबकुछ बता चुकी है कि वे असल में क्या हैं। फॉर्चून पत्रिका ने अपने सितम्बर के अंक में लिखा था कि " इवांका ने हमें बता दिया है कि वह क्या है और बहुत दुख से हमने सीखा है कि हम उनपर विश्वास नहीं कर सकते। " न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है कि इवांका कभी भी सीधी नहीं चलने वाली। यह उनकी फितरत ही नहीं है। वे एक आदमी से ज्यादा एक प्रतीक चिन्ह हैं।
इन सब तथ्यों से हम दो निश्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इवांका को महिला सशक्तिकरण के अपने वायदे पर भरोसा नहीं है। अतएव महिला सशक्तिकरण के सम्बंध में उनके सारे बयान व्यर्थ हैं। कई लोग कहते हैं कि वे नकली महिलावादी हैं, यह कथन सही लगता है। दूसरी तरफ अगर यह सही नहीं हे तो इवांका मे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर प्रभाव डालने और उनसे नीतियां बदलवाने की क्षमता नहीं है। अगर उनमें राष्ट्रपति से नीतियां बदलवाने की क्षमता होती या अपने आदर्श उनके मायने रखते तो वे कबका स्वतंत्र रूप में काम करना शुरू कर चुकी होतीं। राष्ट्रपति की आर्थिक सलाहकार कौंसिल के सदस्य एलन मस्क का उदाहरण सबके सामने है। अभी भी भारत का यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि ग्लोबल सममेलन में उन्होंने भारतीय उद्यमियों को क्या संदेश दिया है। लेकि एक बात तो स्पष्ट हे कि इवांका को आमंत्रित कर भारत ने महिला सशक्तिकरण को गलत संदेश दिया है।