100 में 100 ! हे प्रभु !!
मंगलवार को आईसीएसई की 10 वीं कक्षा और आईएससी की 12 वीं कक्षा के नतीजे कौंसिल ऑफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन द्वारा प्रकाशित किए गए। नतीजों को देख कर अच्छे अच्छों को पसीना आ गया। भारत के इतिहास पहली बार आई एस सी परीक्षा में बच्चों को शत प्रतिशत अंक प्राप्त हुए। लड़कियों ने इसमें बाजी मारी है। लड़कियों को दसवीं कक्षा की परीक्षा में 99. 05 प्रतिशत और लड़कों को 98.12 प्रतिशत नंबर प्राप्त हुए। 12वीं कक्षा में 97.84 प्रतिशत लड़कियां सफल हुईं जबकि 95.40 लड़के सफल हुए। आईसीएसई परीक्षा की दसवीं कक्षा में दो बच्चों को 99.60% नंबर आए जबकि दूसरे स्थान पर 10 बच्चे आए जिनके अंक थे 99.40 प्रतिशत थे तथा तीसरे स्थान पर 24 बच्चे आए जिनके अंक थे 99.20% थे। आईएससी बोर्ड की 12वीं कक्षा में दो बच्चों को 100% नंबर आए और दूसरे स्थान पर 16 छात्र थे जिन्हें 99.75 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए थे। तीसरे स्थान पर 36 बच्चे थे जिन्हें 99.50 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए । यही नहीं सोमवार को घोषित सीबीएसई बोर्ड की दसवीं कक्षा की परीक्षा में 13 छात्रों को सर्वोच्च अंक प्राप्त हुए। सर्वोच्च अंक 500 में 499 थे। इस परीक्षा में 92.45 प्रतिशत छात्र पास हुए थे जिसमें 57,256 छात्रों को 95% तथा सवा दो लाख छात्रों को 90% से ऊपर अंक प्राप्त हुए थे।
इतने ज्यादा अंक प्राप्त करने वाले छात्र अतीत के उन छात्रों की तरह ही है जिनमें से अधिकांश को किसी काम के लायक नहीं माना गया था। अब तो अधिकतम अंक की तो बात छोड़िए पास करने वाले छात्रों की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है। इससे साफ पता चलता है कि कुछ तो ऐसा हो रहा है जिसके कारण इतने ज्यादा अंक आ रहे हैं। मजे की बात है इस साल जिन बच्चों को बहुत ज्यादा नंबर हासिल हुए हैं उनमें से अधिकांश न किसी बड़े स्कूल के छात्र थे न किसी बड़े शहर के निवासी। वे मामूली स्कूलों से पास करने वाले छात्र थे । इन्होंने मानवीकी जैसे विषयों में भी उतने ही ज्यादा अंक हासिल किए जितने विज्ञान के विषयों में प्राप्त होते हैं। इन्होंने विषयनिष्ठ अंक प्रदान किए जाने इस सीमा को भंग कर दिया। शीर्ष स्थान पर छात्रों की बढ़ती संख्या उच्च शिक्षा पर दबाव बना रही है जहां अभी भी अच्छी गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थानों क्षमता सीमित है। उच्च शिक्षा में नामांकन की लंबी प्रतीक्षा सूची और लगभग शत-प्रतिशत कट ऑफ नंबर और 5-5 ,6-6 नामांकन सूचियों को निकाला जाना बताता है कि अच्छे शिक्षण संस्थानों में नामांकन के लिए कितना दबाव है। यही नहीं, अच्छे नंबर हासिल करने का दबाव बच्चों पर बढ़ता जा रहा है। पिछले साल तक नंबरों के इस उफान का कारण मॉडरेशन बताया जाता था अब तो लगता है कि बोर्ड यह दिखाना चाहते हैं कि उनके यहां ज्यादा सफल छात्र हैं। लेकिन केवल यही कारण नहीं है। इसके अलावा कक्षाओं में लगातार टेस्ट परीक्षा और उच्च अंक प्राप्त करने के लिए ट्यूशन इत्यादि के साधन छात्रों पर लगातार दबाव बढ़ा रहे हैं। अब तो फोन में भी टेस्ट की तैयारी के एप्स आ रहे हैं। यही नहीं इंटरनेट के माध्यम से भी ट्यूशंस की व्यवस्था हो रही है। पिछले छात्रों के आंसर शीट दिखाए जाते हैं ताकि तैयारी करने में सहूलियत हो।
दरअसल हमारी परीक्षाएं ज्ञान और रचनात्मकता की परीक्षा नहीं रह गई। अब तो बस स्मरण और तेजी से तथा शुद्ध रूप से उसे उपयोग करने की बात हो गई। प्रश्नों के उत्तर रट लिए जाते हैं और इतनी बार उनको लिखा जाता है की छात्रों को उसके कामा - फुल स्टॉप तक याद हो जाते हैं। यह ज्ञान की परीक्षा नहीं है, समझ की परीक्षा नहीं है। एक हिंदी फिल्म में ऐसे ही एक छात्र को दर्शाया गया था जिसे चमत्कार और बलात्कार में अंतर नहीं मालूम था और वह भाषण में चमत्कार को बलात्कार पढ़ता रहा। ऐसी परीक्षाएं और ऐसे ज्ञान उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को तैयार नहीं करते। वे विषयों को रट लेते हैं। सोचते नहीं है, विचार नहीं करते हैं, तर्क नहीं करते हैं और ऐसे बच्चे स्वतंत्र क्षमता का निर्माण नहीं कर सकते और ना कॉलेज के पाठ्यक्रम को सही ढंग से समझ पाते हैं। अगर समझ लेते हैं तो वह समझदारी मशीनी होती है। वे विषय को अक्सर समझते नहीं है बस परीक्षाओं में नंबर लाना चाहते हैं। परीक्षक उनके ग्राहक हैं और अंको में उन्हें पुरस्कृत करते हैं। बस जरूरी है साफ-साफ लिखना और अच्छे तथा सही डायग्राम्स बनाना। परीक्षक बच्चों के उत्तरों को देखे बिना। क्योंकि उन्हें मालूम है कि उत्तर हूबहू वही रहेंगे जो पुस्तकों में लिखे हुए हैं। इसलिए परीक्षक को भी ज्यादा जहमत नहीं उठानी पड़ती। बस डायग्राम्स का मिलान कर लेते हैं। लिखे उत्तरों को पढ़ते तक नहीं हैं। इससे कॉपी जांचने की प्रक्रिया तेज तो हो जाती है क्योंकि उसे मालूम है कि छात्र इन दिनों छात्र नहीं जेरॉक्स मशीन बन गए हैं । वे उन उत्तरों को इतनी बार रटते हैं और लिखते हैं कि गलती की गुंजाइश नहीं रहती। उच्च शिक्षा का उद्देश्य रोजगार के लिए बच्चों को तैयार करना है ताकि वे अपना भविष्य बना सकें । ज्यादा नंबर योग्यता की निशानी नहीं है क्योंकि प्रश्नों को इस तरह से तैयार किया जाता है कि छात्रों की स्मरण शक्ति की परीक्षा होती है ना कि वैचारिक क्षमता और ज्ञान के उपयोग की परीक्षा। छात्रों द्वारा इस तरह से रटकर परीक्षा पास करने के कारण उनकी क्षमता कुंद होने लगती है या कह सकते हैं अच्छे नंबर हासिल करने के लिए जो प्रतियोगिता होती है वह उच्च शिक्षा में या रोजगार में अच्छे नौजवान की क्षमता को हानि पहुंचाती है। हमारी परीक्षाओं का स्वरूप बदलना होगा। प्रश्नों को कुछ इस तरह से तैयार करना होगा कि छात्र उन पर विचार करें और उन्हें हल करने के क्रम में उन विचारों का उपयोग करें । रट कर परीक्षा पास करने का उच्च शिक्षा में कोई अर्थ नहीं रह जाता।
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