मोदी की भारी विजय से कई मिथक टूटे
भारत के सियासी सागर में नरेंद्र मोदी की सुनामी आ गई। उम्मीद से ज्यादा सीटें हासिल हुईं और यह प्रमाणित हो गया की मोदी है तो मुमकिन है। यह नरेंद्र मोदी का करिश्मा कहा जाएगा। इस बात को मानने के लिए कई ज्ञान गुमानी तैयार नहीं थे कि नरेंद्र मोदी के पक्ष में अंडर करंट चल रहा है। एग्जिट पोल के नतीजों को भी लोग नहीं मान रहे थे और खम ठोक कर कह रहे थे कि यह इस बार जनता का मूड एंटी इनकंबेंसी का है। उन्हें क्या मालूम कि इस प्रो इनकंबेंसी लहर में विरोधी दल के अच्छे-अच्छे तैराक डूब जाएंगे। जो लोग मोदी जी की सीट कम आने की बात कर रहे थे और उस पर लंबी लंबी दलीलें दे रहे थे वे अब इसका कारण तलाशने के बहाने खोज रहे हैं। बेशक एग्जिट पोल के नतीजों को नकारा जा सकता है लेकिन वास्तविक नतीजों को तो चुनौती नहीं दी जा सकती है। यहां एक सवाल है अगर नकारात्मक और सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो एक पक्ष यह मानता है कि यह मोदी जी का करिश्मा है दूसरा पक्ष यह भी मानता है कि विपक्षी ताकतों की अक्षमताओं का नतीजा है। दरअसल 2014 के चुनाव में पराजय के बाद विपक्ष लगभग 5 बरस तक ठिठका सा रहा। विपक्षी दलों के भीतर यह आत्मविश्वास ही नहीं जग पाया कि वे नरेंद्र मोदी को हरा भी लेंगे। नरेंद्र मोदी सरकार के कई कार्यक्रमों और कदमों को जनविरोधी घोषित कर दिया गया। लेकिन उन्हें लेकर कोई भी जन संघर्ष देश में होता नहीं दिखा। पिछले साल पांच राज्यों में विपक्षी दल कांग्रेस की सरकार बनी। इससे कांग्रेस के भीतर थोड़ा आत्मविश्वास जगा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इसके बाद कांग्रेस को लगा कि वह चुनावी मैदान में मोदी को मात दे देंगे। लेकिन इस सियासी जंग की शुरुआत में देर हो गई । लगभग 365 दिनों में आखिर कितनी रणनीतियां बना सकेंगे और कितनी ब्यूह रचना कर सकेंगे। कांग्रेस इसी कारण पिछड़ गई। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा सरकारों के प्रति व्यापक जनाक्रोश था। इसी जनाक्रोश के कारण वहां भाजपा की सरकारें गिरी। लेकिन कांग्रेस को यह आकलन करने में गलती हुई कि यह जन आक्रोश केंद्र सरकार पर नहीं टूटेगा और इससे नरेंद्र मोदी का रास्ता रोकना कठिन है। यकीनन कुछ क्षेत्रों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रोश था लेकिन उस आक्रोश के चलते कांग्रेस को या अन्य विपक्षी दल को लाना जनता ने उचित नहीं समझा। क्योंकि जिन स्थितियों के कारण 2014 में मोदी जी को सत्ता तक आने का रास्ता बना था वह स्थितियां तो कायम थीं फिर कांग्रेस कैसे आती ?
नरेंद्र मोदी या कहें भाजपा की इस विजय से कई पुराने मिथक खंड खंड हो गए। राजनीतिक पंडित यह कहते सुने जाते थे कि जहां कांग्रेस से भाजपा आमने-सामने मुकाबला करती है वहां उसे आसानी से हरा देती है लेकिन जहां तीसरी ताकतें होती हैं वहां जीतना मुमकिन नहीं होता। लेकिन इस बार भाजपा ने पश्चिम बंगाल, बिहार ,उत्तर प्रदेश और उड़ीसा में इस मिथक को भंग कर दिया। इन चारों राज्यों में कांग्रेस के बदले एक तीसरी पार्टी भाजपा से मुकाबले में थी। मोदी ने अपनी चतुराई पूर्ण रणनीति से गठबंधन की राजनीति को भी धूल चटा दी। कहते हैं कि सत्ता पर कब्जा करने की कला ही राजनीति है। यह मानना पड़ेगा कि मोदी जी को इस कला में महारत हासिल है। उनमें भारी इच्छाशक्ति भी है। वे चुनाव में साम ,दाम, दंड भेद सब का इस्तेमाल करते हैं। जब जैसी जरूरत आई है उसका उपयोग कर लिया। जबकि विपक्षी दलों के कई बड़े नेताओं को अपने निजी महत्वाकांक्षाओं को ही दबाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी और फिर भी वह उसे दबा नहीं सके इसके अलावा जमीनी हकीकत के आकलन में वे पीछे पड़ गए। कई ऐसे नेता जिनका जनता से कटाव रहा है वे प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। कैसी व्यावहारिक स्थिति है कि विपक्ष का कोई भी नेता जनता का मूड नहीं पढ़ पाया । जो नेता इतना अक्षम हो वह सत्ता के साम, दाम, दंड, भेद से कैसे निपट सकता है। खास करके ऐसी स्थिति में जब वोट बटोरने के सभी समीकरणों को सत्ता पक्ष ने असंतुलित कर दिया हो। भाजपा ने धर्म संस्कृति और सेना का अपने चुनावी मंसूबे के लिए उपयोग किया लेकिन विपक्ष उसे उसी के हथियार से पराजित नहीं कर सका। यही नहीं विपक्षी दलों में वैचारिक दृढ़ता भी नहीं दिखी । उसके पास यह कहने के लिए कोई आधार नहीं है कि उसने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए संघर्ष किया, बेशक उसे जीत नहीं मिली। आज भाजपा के सामने सभी विपक्षी दलों का कद बहुत छोटा हो गया है।
लेकिन इस विजय का एक दूसरा पक्ष भी है। वह कि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार इस विषय को जनता का एक ऐसा जनादेश मानने का भ्रम पाल लेगी कि उसने अब तक जो किया उसे जनता ने स्वीकार किया । कई ऐसे राज्य हैं जो फिलहाल भाजपा की राजनीतिक प्रयोगशाला हैं और वहां अगले 5 वर्षों में क्या-क्या प्रयोग होंगे इसका अंदाजा नहीं है। इस विजय में नरेंद्र मोदी एक केंद्रीय बिंब हो कर उभरे हैं । यह किसी भी संगठन के लिए बहुत अच्छा नहीं है क्योंकि एक बड़ी पार्टी की सारी शिनाख्त एक आदमी में सिमट गई है। यह पार्टी के सांगठनिक चरित्र के लिए और स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है लेकिन इससे ऐसा तो लगता कि कुछ हो रहा है ।
किसी भी चुनाव को जीतने के लिए धन, विचार और कल्पनाओं की जरूरत होती है। विपक्ष के पास इन तीनों का अभाव था। नरेंद्र मोदी की विजय की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने अपनी पार्टी के लिए जनता की मानसिकता का निर्माण किया । जबकि विपक्ष ऐसा करने में कामयाब नहीं हो सका। वह आरंभ से ही जनता को खोता रहा है।विपक्ष भूल गया कि कोई भी विचार शाश्वत नहीं होता। किसी को भी अपने विचार फैलाने और उसे जीवित रखने के लिए लगातार मेहनत करनी पड़ती है। यह एक सबक है जिसे विपक्ष को याद कर लेना चाहिए।
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