मसूद अजहर पर प्रतिबंध
4 मई 2019
मसूद अजहर पर प्रतिबंध को लेकर एक सवाल उठता है कि राष्ट्र संघ के नियम के अनुसार अजहर पर पाबंदी पर चीन ने जो विटो लगा रखा था उसे उसने अभी क्यों वापस लिया? एकदम चुनाव के मध्य में उसने ऐसा क्यों किया? उत्तर हो सकता है ,नरेंद्र मोदी जी को मदद कर आभारी बनाने के लिए। मोदीजी ने इसके खिलाफ जोर शोर से अभियान चलाया था। लेकिन , यह उत्तर बड़ा सरल और नौसिखुआ प्रकार का है। क्योंकि चुनाव के चार चरण बीत चुके हैं और इसलिए मोदी जी को अब इसमें मदद नहीं की जा सकती है। हो सकता है चीनी दो तरफा चाल चल रहे हों। अगर मोदी जी जीतकर दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह कहता फिरेगा कि उसने इनकी मदद की और अगर हारते हैं तो कहेगा कि चुनाव से कोई लेना देना नहीं था। दूसरा सवाल है कि भारत इसके बदले चीन को क्या देगा? अगर कोई यह समझता है कि चीन भारत की बात से सहमत था तो वह दिवास्वप्न देखता है।
सही बात तो यह है कि मोदी जी ने अपनी चुनावी रणनीति के तहत इसके लिए बहुत मेहनत की थी। उन्होंने चुनाव जीतने के लिए इस रणनीति का जितना उपयोग करना था किया है । चाहे वह जातीय समीकरण हो या विपक्षियों को हड़काने के लिए प्रवर्तन निदेशालय का उपयोग हो या टीवी शो या फिर फिल्म अभिनेताओं द्वारा समर्थन ही ,मोदी जी ने कुछ नहीं छोड़ा। इसी तरह उन्होंने कूटनीति का भी प्रयोग किया। कुछ लोगों का मानना है कि विदेश सचिव विजय गोखले की 21 से 23 अप्रैल की दो दिवसीय चीन यात्रा इसी प्रयास का एक अंग थी। सरकारी तौर पर वे नियमित विचार-विमर्श के लिए बीजिंग गए थे लेकिन कूटनीतिक क्षेत्रों में कहा जा रहा है कि वे चीन से मसूद अजहर पर पाबंदी के लिए सहयोग का वादा करवाने गए थे। चीन बेल्ट एंड रोड फोरम के दूसरे अभियान मे जुटा है और पिछले हफ्ते वहां 37 देशों के विदेशी विभागों के प्रमुख थे जिनमें राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, राष्ट्र संघ के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेस तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख क्रिस्टिन लागार्डे भी शामिल थे। इसलिए चीन ने यह फैसला अभी किया।
हमें इस बात पर बहुत ज्यादा मुतमईन नहीं रहना चाहिए कि गोखले जो अतिरिक्त सबूत लेकर चीन गए थे उसे बीजिंग ने मान लिया । यह एक साधारण और सरल राजनीतिक सौदेबाजी थी। दरअसल अजहर मसूद पर पाबंदी के लिए राष्ट्र संघ की नोटिस में यह साफ था कि चूंकि अजहर जैश ए मोहम्मद का संस्थापक है और पूर्ववर्ती हरकत उल मुजाहिदीन का प्रमुख था। दोनों राष्ट्र संघ की इसी नोटिस के तहत पहले से ही राष्ट्र संघ में पाबंदीशुदा थे। हाल के वर्षों में जैश पर पुलवामा पठानकोट जैसी कोई रिपोर्ट भी नहीं थी। जैश का भारत से जुड़ा लंबा इतिहास रहा है। अजहर मसूद जो कभी हरकत उल मुजाहिदीन का प्रमुख था वह जैश ए मोहम्मद का प्रमुख बन गया। उसे विमान अपहरण में फंसे यात्रियों को रिहा कराने के लिए सन 2000 में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने रिहा कर दिया था। दूसरे ही साल उसके नए संगठन ने भारत की संसद पर हमला कर दिया। हाल के वर्षों में उसने लश्कर-ए-तैयबा को भी अपने संगठन में शामिल कर लिया। उसने 2016 में पठानकोट ,उड़ी और नगरोटा पर ,सुंजवान पर 2018 में और 2019 में पुलवामा में अर्धसैनिक बलों के वाहन पर हमले किए।
राष्ट्र संघ ने अजहर पर पाबंदी की नोटिस पेश की लेकिन चीन ने अड़ंगी लगा दी। भारत ने 2009 में ही इस पर प्रतिबंध के लिए आवेदन किया था इसके बाद पठानकोट हमले के पश्चात अमरीका, इंग्लैंड और फ्रांस की मदद से फिर आवेदन किया। चीन ने फिर वही किया। 2017 में भी पुनः प्रयास किया गया लेकिन वह भी नाकाम हो गया। इस वर्ष पुलवामा हमले के बाद फ्रांस और इंग्लैंड के सहयोग से फिर से कोशिश हुई इस बार तो जैश ए मोहम्मद ने उस हमले में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली थी तब भी चीन ने वही किया जो अब तक करता रहा है । अब सवाल उठता है कि क्या चुनाव में वर्तमान सरकार को क्या इससे मदद मिलेगी? क्या सचमुच यह एक बहुत बड़ी विजय है?
वस्तुतः अजहर मसूद आज एक आतंकी है और वह भारत पर कई हमलों का दोषी भी है। उस पर प्रतिबंध का भारत के चुनाव पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला। इसके पहले लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज मोहम्मद पर 2009 नए प्रतिबंध लगा था लेकिन वह पाकिस्तान में फलता फूलता रहा। प्रतिबंध से केवल यही होता है कि उसकी संपत्ति जप्त हो जाती है और विदेश यात्राओं पर रोक लग जाती है। पिछले 3 वर्षों से जैश ए मोहम्मद ने भारत के कई स्थानों पर हमले किए और सुरक्षाकर्मियों को मारा। इसमें मोदी सरकार ने केवल एक ही आ कि राष्ट्र संघ में उसके खिलाफ कागजात को आगे बढ़ा दिया और कागज पर ही उस पर पाबंदी लग गई। अजहर जैसे आतंकवादी का सबसे अच्छा इलाज यह होता की उसे पकड़ लिया जाता और जेलों में बंद कर दिया जाता उस पर मुकदमा चलता या फांसी पर लटका दिया जाता। लेकिन ऐसा कुछ भी मोदी सरकार ने नहीं कहा है। इस तरह की पाबंदी को बहुत बड़ी विजय बताना सचमुच जरा खोखला लगता है। यह बात याद दिलाती है पिछले चुनाव में मोदी जी ने दाऊद इब्राहिम को भारत लाने का वादा किया था क्या हुआ उसका? बस यह पाबंदी भी कुछ वैसा ही करेगी।
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