ये अंदाज ए गुफ्तगू क्या है
चुनाव जैसे-जैसे खत्म होने की ओर बढ़ रहा है बातचीत के अंदाज भी वैसे ही विचित्र होते जा रहे हैं । गालिब का एक बड़ा मशहूर शेर है -
"हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम ही कहो ये अंदाज ए गुफ्तगू क्या है "
कुछ दिन पहले एक जुमला उठा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी को कहा है कि उन्हें वह तमाचा मारेंगी। बाद में ममता बनर्जी ने सफाई दी कि उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र का तमाचा मारेंगी । बात बढ़ती गई और प्रचारित होती गई। दोनों तरफ से सफाई तथा आरोप चलने लगे - "मैंने यह कहा और वह कहा। " गुरुवार को प्रधानमंत्री जी ने थप्पड़ वाली बात पर ममता जी पर जमकर हमला किया। बांकुड़ा और पुरुलिया में चुनावी सभाओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा कि मुझे देश का प्रधानमंत्री ना मानकर ममता दीदी ने देश के संविधान का अपमान किया है । वह खुलेआम कहती हैं कि "उन्हें प्रधानमंत्री नहीं मानती, जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री मानने में उन्हें गौरव होता है।" मोदी जी ने कहा कि हार के भय से ममता दीदी बौखला गई हैं और इसी कारण संविधान का अपमान कर रही हैं। उन्होंने कहा कि "सुना है की ममता दीदी मुझे थप्पड़ मारना चाहती हैं। मैं उनका सम्मान करता हूं उनका थप्पड़ भी मेरी आशीर्वाद होगा । " जबकि बात यह थी कि गत मंगलवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था नरेंद्र मोदी को लोकतंत्र का करारा थप्पड़ लगाना चाहिए। इसके जवाब में मोदी जी ने कहा कि तृणमूल सुप्रीमो को उन लोगों को तमाचा मारना चाहिए जिन्होंने चिटफंड के नाम पर लोगों की गाढ़ी कमाई के रुपए लूटे हैं। अगर आप तोला बाजों (जबरदस्ती वसूली करने वालों) को तमाचा मारती तो आज ट्रिपल टी का दाग नहीं लगता। उन्होंने ट्रिपल टी को स्पष्ट करते हुए बताया कि इसका अर्थ तृणमूल तोला बाज टैक्स है । उन्होंने कहा कि फनी तूफान के समय उन्होंने ममता बनर्जी को दो बार फोन किया था, लेकिन ममता बनर्जी ने बात नहीं की। उन्होंने सुपर साइक्लोन के बाद देश के प्रधानमंत्री से बात करना भी जरूरी नहीं समझा। सरकार वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर हालात का जायजा लेना चाहती थी लेकिन दीदी ने ऐसा नहीं होने दिया। प्रधानमंत्री ने अपने विशेष अंदाज में कहा कि दीदी को 23 मई को पहला झटका लगेगा और उसी दिन से तृणमूल सरकार के अंत की शुरुआत होगी। जो अवैध घुसपैठिए तृणमूल काडर बन गए हैं और बंगाल की बेटियों को परेशान कर रहे हैं उन्हें चिन्हित कर उनका हिसाब किया जाएगा। जिन्होंने यहां गणतंत्र को गुंडा तंत्र बनाया है उन के दिन पूरे हो गए हैं। 23 मई के बाद भारत का संविधान सभी का हिसाब करेगा।
उधर दीदी ने इसका जमकर विरोध किया और पुरुलिया में चुनाव सभाओं में कहा कि वह प्रधानमंत्री को क्यों थप्पड़ मारेंगी? थप्पड़ तो लोकतंत्र का होगा और जनता मारेगी। ममता जी ने कहा, जरा भाषा को समझिए मैं आपको पत्थर क्यों मारूंगी? बंगाल की मिट्टी के लड्डू खिलाऊंगी । उन्होंने कहा कि " प्रधानमंत्री जी उन पर यानी उनकी पार्टी पर तोला बाजी के आरोप लगा रहे हैं । अगर यह आरोप प्रमाणित होता है तो वह अपने सभी उम्मीदवार वापस ले लेंगी, वरना वे (मोदी जी) सौ बार उठक बैठक करें। ममता जी ने अपने खास अंदाज में कहा, "मेरे पास भी एक पेन ड्राइव है जिसमें कई भाजपा नेताओं के कच्चे चिट्ठे हैं । अगर उसे बाजार में छोड़ दूं तो कई नेताओं और मंत्रियों के नाम सामने आएंगे। "
यहां बात यह नहीं है कि किसने क्या कहा और सही क्या है बात है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर हमले स्वाभाविक हैं लेकिन उस का एक स्तर होना चाहिए और उसकी सीमा होनी चाहिए। संविधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को ऐसी बातें शोभा नहीं देती। बेशक हमें भ्रष्टाचार इत्यादि खत्म करना है लेकिन उससे भी पहले हमें झूठ की सियासत और धोखेबाजियों को खत्म करने के उपाय करने होंगे। जो लोग चुनाव प्रचार के दौरान आम जनता के बीच मिथ्या बोलें उन्हें दंडित किया जाए। तभी चुनाव में पारदर्शिता आएगी और लोग इस तरह की बातें नहीं कर सकेंगे। इन बातों को सुनकर ऐसा लग रहा है कि हम न जाने इतिहास के किस मोड़ पर खड़े हैं ,नैतिकता का कितना पतन होगा और इस तरह के वाक युद्ध का अंत कहां होगा? प्रश्न उठता है कि क्या 23 मई के बाद यह लोकतंत्र सही स्वरूप में कायम रहेगा, यह संविधान सही रूप में कायम रहेगा? हमारी जिम्मेदारी क्या है? राजनीतिक पार्टियां जिस तरह से नैतिक पतन की ओर बढ़ रही हैं उससे तो लगता है एक नई तरह की हिंसा की शुरुआत होगी, जिसमें इंसान की या कहें आम जनता की प्रतिष्ठा की सबसे पहले हत्या होगी। यहां यह समझना बहुत जरूरी है कि हमारी संसद या विधान सभाएं राजनीतिक पार्टियों का जमावड़ा नहीं हैं। संसद या विधानसभाओं का हर सदस्य भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करता है और वह जिन शर्तों को पूरा करके वहां पहुंचा है उन्हीं शर्तों को पूरा करने के कारण ही सत्तारूढ़ दल या कहें प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्री भी पहुंचते हैं। जब एक नेता अपने विपक्षी नेता के बारे में अपशब्द कहता है या मिथ्या आरोप लगाता है तो उसे इस बात के लिए भी सोचना चाहिए कि वह केवल उस नेता पर ही उंगली नहीं उठा रहा है या उसकी बेइज़्ज़ती नहीं कर है बल्कि वह उस पूरी जनता को भी अपशब्द कह रहा है जिसने उसे चुना है। वह देश की जनता का अपमान कर रहा है। वह नेता देश की जनता की वैचारिक क्षमताओं और मेधा का अपमान कर रहे हैं। यह वक्त आ गया है जब हमारी सिविल सोसायटी इस मामले को लेकर खड़ी हो।
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