23 मई के बाद मोदी जी को क्या करना चाहिए
नरेंद्र मोदी को दोबारा सत्ता मैं लौट आना लगभग तय है। एग्जिट पोल में जो अभी दिखाया जा रहा है वह बात पहले से ही तय थी। यद्यपि कुछ नकारात्मक विचार वाले लोग विपरीत सोच रहे थे। गुरुवार को चुनाव समीक्षा का शोर आरंभ हो उससे पहले कुछ जरूरी बातें ,कुछ जरूरी विचार आवश्यक हैं। मोदी जी के सत्ता में आने पर यकीनन सुझावों का पहाड़ सामने खड़ा होगा और कम सीटें मिलने की सूरत में उसके कारणों का एक अलग ढेर जमा होगा। कुछ लोग नए मंत्रिमंडल के गठन को लेकर अपने विचार व्यक्त करने में मशगूल रहेंगे और कुछ लोग पराजित पक्ष खिल्ली उड़ाने में व्यस्त रहेंगे। ऐसे में कुछ कह पाना बड़ा कठिन होगा । पहली बात कि मोदी जी की विजय का श्रेय केवल उन्हीं को जाता है। अब जब मोदी जी प्रधानमंत्री बनते हैं तो सब कुछ करने का भार भी उन पर ही होगा। पार्टी की भीतरी खींचतान और राजनीतिक व्यवहार कुशलता की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। चुनाव को फिलहाल दरकिनार कर दें । मोदी जी की दूसरी पारी में सबसे जरूरी होगा कि उन्हें अपनी सरकार के कामकाज के लिए कुछ प्रतिभावान लोगों की जरूरत होगी और उन्हें तलाश कर अपने समूह में शामिल करना होगा । इसके लिए उन्हें संघ के दायरे से बाहर निकलकर लोगों की तलाश करनी होगी हो। सकता है वह लोग किसी राजनीतिक पार्टी से संबद्ध ना हों और पेशेवर हों। ऐसे बहुत से लोग उद्योग, शिक्षा और यहां तक कि मीडिया में भी मिल जाएंगे। हो सकता है यह लोग उनकी आईडियोलॉजी के अनुरूप नहीं हों लेकिन उनकी योग्यता और क्षमता देश के काम आ सकती है। मोदी जी को एक शक्तिशाली मंत्रिमंडल की भी जरूरत पड़ेगी। अपनी पहली पारी में उन्होंने नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज जैसे लोगों को रखा इस बार वैसे ही कुछ और लोगों की जरूरत पड़ेगी ताकि उनकी टीम मजबूत बन सके और देश के लिए कुछ अच्छा कर सके। भाजपा में विधि विशेषज्ञों की बहुत बड़ी कतार नहीं है जबकि कांग्रेस वकीलों की ही पार्टी मानी जाती है। मोदी जी का सामना जब लीगल एक्टिविस्ट समुदाय से होता है तो मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। इसके अलावा मोदी जी को बहुत ज्यादा बोलने वाले लोगों पर लगाम लगानी होगी मसलन साध्वी प्रज्ञा। इस चुनाव में भाजपा का हर उम्मीदवार राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी को छोड़कर अपनी विजय का श्रेय मोदी जी और अमित शाह को देगा। अतः ऐसे लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने से भी कोई बड़ा जोखिम नहीं होने वाला। यदि पिछली सरकार को सिन्हा और शौरी नहीं गिरा सके तो इस सरकार को साध्वी और महाराजा जैसे लोग क्या गिरा पाएंगे। इसके अलावा कुछ राज्यों जैसे राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से प्राप्त सबक से मोदी सरकार को यह सीखना चाहिए कि राज्यों में भी सुशासन जरूरी है। केवल साफ-सुथरी छवि वाला एक प्रधानमंत्री ही जरूरी नहीं है। क्योंकि शासन में कमजोर रहने वाले राज्य ,जहां कोई काम ना हो रहा हो और भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा हो वह भी केंद्र सरकार की छवि को खराब करते हैं। इस चुनाव में मतदाताओं ने लोकसभा और विधानसभाओं को अलग अलग मानकर वोट दिया है लेकिन जरूरी नहीं कि अगली बार भी ऐसा हो। अभी उत्तर प्रदेश के चुनाव होने वाले हैं और इसके लिए मोदी जी और अमित शाह को अभी से तैयारी करनी पड़ेगी। मोदी जी को अपने दृष्टिकोण को राज्यों में भी लागू करने के लिए समझदार और योग्य राजनीतिज्ञों की जरूरत है।
गोरक्षा और इस तरह की गतिविधियों से कठोरता से निपटना होगा। जिला प्रशासन को स्पष्ट निर्देश होना चाहिए कि उन्हें क्या करना है खासकर सांप्रदायिक मामलों में। महिलाओं, अल्पसंख्यक और दलितों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। कुछ वर्तमान मुख्यमंत्रियों को भी कड़ाई से यह बातें समझानी होगी। नए मुख्यमंत्रियों को नियुक्त करने की स्थिति भी आ सकती है। इस चुनाव में विजय के बाद अब मोदी जी को विशिष्ट क्षेत्रों में क्षेत्रपों की इच्छा पर नहीं अपने निर्णय पर चलना होगा। इसके अलावा जनता की सबसे बड़ी अपेक्षा है कि सरकार भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कदम उठाए क्योंकि आम लोग यही मानते हैं कि इस दिशा में बहुत कम काम हुआ है। यद्यपि कानून के रास्ते को स्वीकार करना पड़ेगा और एकदम शिकंजा करने की भी जरूरत नहीं है लेकिन लोगों के दिमाग में जो बात बैठी है उसे धीरे-धीरे खत्म करना भी सरकार के लिए जरूरी है। जनता को किसी भी विषय पर निर्णय होता दिखना चाहिए। सरकार को अपने इस दूसरे दौर में सरकार मीडिया रणनीति की भी समीक्षा करनी होगी। पिछले पांच वर्षों में उद्योगपतियों को यह संदेश मिल गया है कि दरबारी पूंजीवाद खत्म हो रहा है, लेकिन साथ ही यह महसूस हुआ है कि सरकार का उनसे दुराव बढ़ रहा है। इसे खत्म करना होगा। एक स्पष्ट नियम बनाना होगा ताकि देश में दोबारा "पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप" ढंग से आरंभ हो सके। क्योंकि इससे न केवल विदेशी पूंजी का आगमन होगा बल्कि लोगों को रोजगार भी मिलेगा और अंत में मोदी जी को कुछ छुट्टियां भी मनानी चाहिए छुट्टी मनाना कोई पाप नहीं है।
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