मोदीजी और राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र में सबसे ज्यादा कुपोषण
चुनावों में एक तरफ जहां पैसा पानी की तरह बहाया जाता है और सभी उम्मीदवार गरीबी दूर करने का वादा करते हैं, खुशहाली लाने की बात करते हैं वहीं दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चों में से एक तिहाई केवल इसी देश में हैं। हाल के के अध्ययन के अनुसार 543 चुनाव क्षेत्रों मवेइन से 73 ऐसे हैं जहां 20 प्रतिशत बच्चे बेहद कुपोषित हैं। इनमें चुनाव क्षेत्र झारखंड में हैं,19 मध्यप्रदेश,10 कर्नाटक,8 उत्तरप्रदेश और 6 राजस्थान में हैं।कई चुनाव क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां कई तरह के कुपोषण हैं जिनपर तुरत ध्यान देना जरूरी है। कुपोषण के शिकार लोग रोजगार के काबिल नहीं रह जाते क्योंकि उनका मानसिक विकास रुक जाता है और इससे आर्थिक विकास को भी आघात पहुंचता है। खुशहाली के बड़े बड़े वादों के बावजूद हमारे देश में 4 करोड़ 66 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। आंकड़े बताते हैं कि इससे 2030 तक भारत को 46 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। विडंबना यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान खुशहाली और विकास के वादे चाहे जितने हों कभी कुपोषण इनके एजेंडा में नहीं रहा। हार्वड यूनिवर्सिटी में पॉपुलेशन, हेल्थ एंड जॉग्रफी के प्रोफेसर एस वी सुब्रमण्यम के मुताबिक भारत में 5 वर्ष से कम उम्र बच्चों में अविकसित बच्चों की तादाद 35.9 प्रतिशत है जबकि कम वजन वाले बच्चों का अनुपात 33.5% और रक्तल्पता के शिकार बच्चों की संख्या 56.8% है। यानी देश के 5 वर्ष से कम उम्र बच्चों में से एक तिहाई से ज्यादा अविकसित हैं और काम वजन के हैं तथा आधे से ज्यादा रक्त की कमी के शिकार हैं। इनमें उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव क्षेत्र में सबसे खराब स्थिति है। यही नहीं उत्तर भारत के अधिकांश मंत्रियों के चुनाव क्षेत्रों में भी यही हाल है। वाराणसी चुनाव क्षेत्र में अविकसित बच्चों अनुपात 43.1% है जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। मोदी जी 2014 में वाराणसी से चुने गए थे लेकिन 2009 में भी यह सीट भा ज पा के पास ही थी। मोदीजी के मंत्रिमंडल के 8 कैबिनेट मंत्री उत्तर भारत से हैं , खास तौर पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान से। कर्नाटक और गुलबर्गा का प्रतिनिधित्व विपक्ष के नेता कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे करते हैं और 18 बड़े नेताओं के चुनाव क्षेत्रों में से इसकी हालत सबसे खराब है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र अमेठी और उनके मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुना की स्थिति गुलबर्गा के बाद नीचे से दूसरी और तीसरी है। दुखद तथ्य यह है कि खड़गे गुलबर्गा से 2009 में राहुल गांधी 2004 से और सिंधिया 2002 से इन चुनाव क्षेत्रों से जीत रहे हैं।केरल का तिरुवनंतपुरम कांग्रेस के शशि थरूर का चुनाव क्षेत्र है और हैदराबाद मजलिसे इत्तहादुल मुसलमीन के असादुद्दीन ओवैसी का है और इनकी स्थिति 18 हाई प्रोफाइल चुनाव क्षेत्रों में सबसे अच्छी है।
मध्य और उत्तर भारत के चुनाव क्षेत्रों खासकर उत्तरप्रदेश, बिहार,मध्यप्रदेश और झारखंड में कुल मिलाकर देश की 31 प्रतिशत आबादी निवास करती है।इन राज्यों में कुपोषण से प्रभावित बच्चों का अनुपात सबसे ज्यादा है। इनमें उत्तरप्रदेश में साध्वी सावित्रीबाई फुले के चुनाव क्षेत्र बहराइच में 63.6%, भाजपा के दद्दन मिस्र के श्रावस्ती में 61.3% और भाजपा के ही बृज भूषण शरण सिंह के क़ैसर गंज में 59.7% कुपोषण का अनुपात है।
भारत सरकार ने 1993 में संसदीय क्षेत्र विकास के लिए हर सांसद को 5 करोड़ रुपयों का कोष देने की योजना बनाई। 2016 तक कुल मिला कर सांसदों को इस योजना के अंतर्गत 31,833 करोड़ रुपये दिए जा चुके । इस योजना के तहत जो राशि दी गयी उनमें स्वास्थ्य के लिए खर्च के मद में अस्पतालों को औजार खरीदने के लिए, एम्बुलेंस खरीदने के लिए , क्रीड़ा विकास के लिए खर्च किये गए। सबका उद्देश्य स्वास्थ्य विकास और स्वास्थ्य परिचर्या की स्थिति यह है कि
देश में स्वास्थ्य उप केंद्र की 19% कमी है और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 22% तथा 30% सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है। सरकार के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में एक उप स्वास्थ्य केंद्र से लगभग 5000 लोगों को इलाज इलाज की सुविधा मिलती है जबकि एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 30,000 और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 1,20,000 लोगों को उपचार की सुविधा मुहैया कराता है। प्राथमिक उपचार केंद्र गांव की आबादी और एक डॉक्टर के संपर्क का पहला आधार है। इनमें 46% महिला स्वास्थ्य और 60% पुरुष स्वास्थ्य सहायकों का अभाव है । डॉक्टरों की कमी के कारण प्राथमिक उपचार केंद्र में से 12% में कोई डॉक्टर नहीं है। सरकारी ऑडिटर की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में उपचार का संकट पैदा हो रहा है और दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए आवंटित धन बिना खर्च हुए लौट जा रहा है। 21 अगस्त 2018 को सीएजी की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है की 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 34 से 38 प्रतिशत प्राथमिक उपचार केंद्रों में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है । रिपोर्ट में यह भी पाया गया 75% उप केंद्र सबसे दूरदराज के गांव से 3 किलोमीटर दूर है और इनमें 28% तो ऐसे हैं जहां सार्वजनिक वाहन से पहुंचा ही नहीं जा सकता और 17% केंद्र बेहद गंदे हैं।
अब चुनाव क्षेत्रों में कुपोषण के आंकड़े अलग किस्सा बयान करते हैं।स्वास्थ्य की स्थिति अलग तस्वीर पेश करती है। ऐसे में क्या यह माना जा सकता है कि अपने क्षेत्र में बच्चों की इस दुर्दशा के बारे में सांसदों को जानकारी नहीं होगी? बेशक इस राशि का उपयोग राजनीतिक लाभ को ध्यान में रख कर किया जाता होगा। अगर बच्चों का विकास नहीं होगा तो राष्ट्र के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। तो भविष्य के एक अविकसित राष्ट्र के लिए इतनी लान्तरनियाँ क्यों?
0 comments:
Post a Comment