लिखा जा चुका है भारत का मुकद्दर
किसी भी चुनाव के दौरान आमतौर पर उदार नजरिया यह होता है कि चुनाव चल रहे हैं इसका जो नतीजा निकलेगा उसके बाद उसी के आधार पर सरकार बनेगी, जो भारत का मुकद्दर तय करेगी। वर्तमान समय में यह भी सोचा जा सकता है कि चुनाव का नतीजा यह तय करेगा कि भारत एक हिंदू राष्ट्र बने जिसमें नागरिक स्वतंत्रता काम हो या अल्पसंख्यकों के प्रति सहिष्णुता कम हो। भारत एक ऐसे देश में बदल जाएगा जहां धर्मनिरपेक्षता खत्म हो जाएगी, लेकिन शायद ऐसा नहीं होगा। अब बहुत देर हो चुकी है और फैसला हो चुका है। 23 मई को मतगणना होगी और उस दिन तीन संभावनाएं हैं। पहली कि मोदी जी दोबारा जीत जाएंगे और प्रधानमंत्री बनेंगे या फिर कांग्रेस विजई होगी और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे जो शायद संभव नहीं है और तीसरी संभावना है कि किसी को बहुमत ना मिले इसकी भी उम्मीद कम है । मोदी जी सशक्त जनादेश के आधार पर अगर फिर से प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश हिंदू राष्ट्र के रूप में घोषित हो जाएगा और जो इस से मतभेद रखेंगे या स्वतंत्र मीडिया पर शिकंजा कसेगा, चुनिंदा पूंजीपतियों को विशेष सुविधाएं मिलेंगी तथा जम्मू और कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जा समाप्त होगा। इसके बाद देश में एक बगावत भी हो सकती है। अगर मोदी ऐसा नहीं होने देते हैं तब भी उनके प्रधानमंत्री होने पर देश में हिंदू दृष्टिकोण का वर्चस्व होगा। नागरिक स्वतंत्रता कम हो जाएगी और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ देश में बर्ताव बदल जाएगा। यहां एक नई सरकार कानून और टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को खत्म कर सकती है बशर्ते वह इसके लिए प्रतिबद्ध हो। लेकिन जो भी सरकार सहिष्णुता की तरफदार होगी उसके लिए विभाजन कारी नफरत और आजादी पर हमले से मुंह मोड़ना संभव नहीं होगा। एक सरकार संविधान की रक्षा के लिए प्रयास कर सकती है लेकिन कई बार वह इसमें असफल भी हो जाती है। खास करके जब जनसमर्थन उसके पक्ष में हो नागरिक शांति में विघ्न का खतरा हो। अल्पसंख्यकों से दुश्मनी मोदी जी के शासनकाल में बढ़ी है। उदाहरण हैं कि गैर भाजपाई सरकार के शासनकाल में भी ऐसा हुआ है।
टॉमस हांसन ने अपनी पुस्तक "मेजॉरिटेरियन स्टेट" में लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार 2014 में जब से सत्ता में आई तब से उसने नागरिक आजादी में कटौती को रोकने के लिए कोई महत्वपूर्ण कानून नहीं पारित किया। इसने मौजूदा कानूनों को लागू किया और बोलने की आजादी तथा किसी को भी राष्ट्र विरोधी कह दिया जाए उसके खिलाफ "पुलिस प्रोटोकोल" बनाया । भाजपा ने ना केवल औपनिवेशिक काल के कानूनों पर भरोसा किया बल्कि कांग्रेस द्वारा 1960 से देश को पुलिस राज में बदलने की जो कोशिश हुई है उसे कायम रखा। बोलने की आजादी को अवरुद्ध करने वाले विभिन्न कानूनों पर मोदी जी ने कोई टिप्पणी नहीं की। खासकर वे कानून जो राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफाजत करते हैं और आतंकवाद के खिलाफ अमल में लाये जाते हैं। लेकिन उनका इस्तेमाल अक्सर अल्पसंख्यकों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ होता है। चाहे जिस पार्टी की सत्ता हो भारत में कुछ दिनों से यह देखा गया है कि भारत की पुलिस कई कानूनों अपने हाथ में लेती रही है और उसका दुरुपयोग करती रही है। अभी हाल में आईटी कानून के दुरुपयोग की कई घटनाएं सामने आई। कानूनों के गलत उपयोग से कई जिंदगियां और उनकी साख समाप्त हो गई है। नई सरकार शायद से खत्म नहीं कर सकती किसी भी लोकतंत्र में कानून का दुरुपयोग दो ही शर्तों पर होता है पहला की जनता सत्ता के खिलाफ बगावत करने लगती है या दूसरा जनता कानूनी और संवैधानिक भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लेती है । अल्पसंख्यकों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और जो भी सत्ता के खास करके भाजपा के बहुसंख्यक वाद दृष्टिकोण की मुखालफत करता हो उनके खिलाफ बढ़ते अपमान का भाव स्पष्ट तौर पर देशवासियों को परेशान नहीं करता लेकिन सत्ता को परेशान करता है।
यह स्पष्ट है कि भाजपा ने बहुत दिन से बढ़ते असंतोष को हवा दिया क्योंकि ऐसी प्रवृतियां रातों-रात पैदा नहीं होतीं। बहुत लोगों को खासतौर पर भारतीय समाज के इस भाव को पाले रखने में मदद की। संघ परिवार का कई दशकों से समाज को संगठन के माध्यम से हथियार बंद करने और उन में हिंसा की क्षमता को बढ़ाने का नजरिया रहा है। यह नजरिया जातीय श्रेष्ठता को खास करके उच्च वर्गीय हिंदू समुदाय की प्रवृत्तियों को मजबूत बनाता है। यह प्रवृत्ति संचार के विकास खासकर मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के माध्यम से और ज्यादा फैलती है और समाज में नफरत को बढ़ावा मिलता है। अब इतिहास को नए तरीके से गढ़ने क्षमता हिंदुत्व में लगातार बढ़ रही है । अगर मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं भी होते हैं तब भी यह प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जाएगी।
लोगों में एक विशेष भाव भर रहा है कि जो देशभक्त है वह भाजपा को वोट देता है। मोदी जी अपने भाषणों में लगातार कहते पाए गए हैं कि 70 वर्षों में कोई विकास नहीं हुआ। लेकिन कोई है सुनने को तैयार नहीं है कि जब आजाद हुए थे इस देश की क्या दशा थी। जब यह बात कही जाती है तो लोग गला फाड़कर चिल्लाते हैं कि जो दशा हुई थी वह महात्मा गांधी के कारण हुई थी। क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान के मुसलमानों को एक हजार करोड़ रुपए दे दिए थे । देश ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है जहां मिथ्या सत्य बन गई है। बहुत कम लोग हैं जो सच को जानना चाहते हैं। बहस इस पर हो रही है कि गांधी हत्यारे थे या देशभक्त। प्रज्ञा सिंह ठाकुर इस कथन के अलावा एक पुलिस अधिकारी उस के श्राप से मारा जाता है। अगर हम सोचते हैं कि ऐसे लोग भारतीय विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तो शायद हम अपने देश को सही ढंग से नहीं जान पाएंगे। सरकार अब जो भी बने समाज इसी तरह बढ़ता हुआ नजर आ रहा है और समाज की इस गति से स्पष्ट तौर पर देश का भविष्य समझा जा सकता है।
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