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Thursday, May 30, 2019

प्रधानमंत्री जी के सामने अगले पांच वर्ष 

प्रधानमंत्री जी के सामने अगले पांच वर्ष 

नरेंद्र मोदी सांविधानिक तौर पर देश के प्रधान मंत्री हो गए और अब उनके समक्ष अगले पांच साल की चुनौतियां हैं। कुछ दोषदर्शी लोग बेशक उनके विगत पांच वर्षों के कार्यकाल की नुक्ताचीनी में लगे हैं और उम्मीद है लगे भी रहेंगे, लेकिन इससे असंतोष भले ही कुछ हल्का हो जाय पर उपलब्धि क्या होगी? इस लिए अच्छा हो आगे की बात करें। नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए दो लक्ष्य तय किये हैं पहला 2022 जो देश की स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ है। पिछले कार्यकाल में गरीबों के लिए शुरू किए गए कई कल्याणकारी कार्यक्रमों को उस समय तक पूरा किया जाना है। उनमें खास हैं ग्रामीण विद्युतीकरण, स्वास्थ्य बीमा , स्वच्छता, डिजिटाइजेशन, ढांचागत निर्माण और आवास। इनमें से कई तो अभी चल रहे हैं । मोदी जी के नये कार्यकाल के तीन वर्ष 15 अगस्त 2022  तक पूरे होंगे और तब उनसे कई कठिन सवाल पूछे जाएंगे। मसलन अभी भी खुले में शौच किया जाना बंद नहीं हुआ है जबकि 4 जनवरी 2019 को जारी बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में किये गए सर्वे की रपट में कहा गया है कि 98  प्रतिशत घरों में शौचालय का निर्माण किया जा चुका है फिर भी 44 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं। उल्लेखनीय है कि देश की आबादी का एक बहुत बड़ा भाग इन्हीं प्रान्तों में निवास करता है। उत्तर है धर्म और संस्कृति। कुछ गाओं में शौचालयों को भंडार घर बना दिया गया है क्योंकि वहां सफाई और जल निकासी की व्यवस्था नहीं है और है भी पर्याप्त नहीं है ।  जहां तक ग्रामीण विद्युतीकरण का सवाल है तो अंतिम घर तक बिजली पहुंचाना अभी भी समस्या है। गैस सिलिंडर मुफ्त दिए जाने के बावजूद उन्है दुबारा भरवाना अभी भी गरीबों के लिए कठिन है। स्वास्थ्य बीमा के साथ मुश्किल है कि कई बड़े अस्पताल इसके साथ जुड़ना नहीं चाहते। उनका कहना है कि कई ऑपरेशन की दरें बीमा में बहुत कम हैं। यहां इसे बताने का तात्पर्य यह है कि मोदी जी का प्रयास कैसा है। बेशक उन्हें अभी इसमें पूरी कामयाबी नहीं मिली है। मोदी जी की कल्याण कारी योजनाओं ने 1971 से गरीबी हटाओ का नारा लगाने वाली कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया। मोदी जी ने 2014 से गरीबों के लिए जितने कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू किए हैं यदि कांग्रेस ने अपने शासन में किया होता देश की तस्वीर ही बदल गयी होती।
     मोदी सरकार को 2014 में ढुलमुल अर्थव्यवस्था एक देश की जिम्मेदारी मिली, जिसमें मुद्रास्फीति बढ़ी हुई थी, मौद्रिक घाटा बहुत ज्यादा था और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी। मोदी जी ने 2014 में माइक्रो सुधार पर ध्यान दिया खास कर कल्याणकारी योजनाओं पर बनिस्पत मैक्रो आर्थिक  सुधारों पर। यहां लक्ष्य बहुत ही कष्टदायक है।आर्थिक विकास धीमा हो गया है, निजी निवेश कम है बैंक एन पी  ए खत्म करने के लिए फूंक फूक कर कदम उठा रहे हैं। स्पष्ट  है कि अर्थ व्यवस्था को थोड़ा प्रोत्साहन दिया जाना जरूरी है। ऐसे में सरकार द्वारा जब देश में नगदी बढ़ाने की बात होती है तो अर्थ शास्त्री भयभीत हो जाते हैं। लेकिन जब खाद्य मुद्रा स्फीति एक प्रतिशत और थोक मुद्रा स्फीति 3 प्रतिशत हो तो ऐसे भय और बढ़ जाते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को ममग और आपूर्ति दोनों तरफ एक - एक बूस्टर का एक इंजेक्शन लगाना जरूरी है। इसका अर्थ कि निगमों को पूंजी देने के लिए बैंकों में पूंजी निवेश जरूरी है  तथा माल और सेवा की आपूर्ति में वृद्धि आवश्यक है। इसमें कुछ सकारात्मक संकेत भी मिल रहे हैं , जैसे सीमेंट की कलहपत 2018-19 में 13 प्रतिशत बढ़ गयी इसका मतलब है ढांचागत निर्वाण और आवास निर्माण में तेजी आई है। प्रधानमंत्री के एजेंडे में अगला नंबर भूमि सुधार का है। भूमि अधिग्रहण विधेयक अटका पड़ा है। इसबार संसद में भारी बहुमत के कारण भूमि और श्रम के मामले में बड़े कदम उठा सकती है। सरकारी क्षेत्र के 80 लिस्टेड उद्यमों  की मार्किट वैल्यू लगभग 18 लाख करोड़ है अगर इनमें से हर साल 1.5 लाख करोड़ की राशि घाटे में चल रहे सरकारी पुक्रमों में लगाया जाए तो उनकी दशा में यकीनन सुधार आएगा। देश का वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद 2.9 खरब डॉलर है सरकार को इसमें हर साल 7.5 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य अपनाना चाहिए। इस कदम के फलस्वरूप ड्सह का जी डी पी काफी बढ़ जाए सकता है।
       नई मोदी सरकार को विदेश नीति के अपने एजेंडे पर भी ध्यान देना चाहिए। यदि अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधार जाएगी तो अमरीका, चीन , पाकिस्तान के समक्ष ज्यादा  ताकतवर ढंग से खड़ा हो सकता है। चीन की ताकत ने यह बड़ा दिया कि भू राजनैतिक ताकत का उत्स आर्थिक क्षमता है। कम नियम कानून और कम अफसरशाही दूसरा लक्ष्य हासिल करने में मदद करेगी। इस चुनाव के नतीजे साफ हो जाएगा कि भ ज पा का वोट प्रतिशत 1984 के 7.6% से बढ़कर 2019 में 37.7% हो गया। जबकि, कांग्रेस का वोट प्रतिशत 48.1% से घट कर 20 प्रतिशत हो गया। ऐसे में अगर मजबूत अर्थ व्यवस्था हो और कल्याणकारी कार्यक्रम समय पर पूरे हो जाएं तो  मोदी जी के लिए 2024 एक नई दिशा के द्वार खोलेगा। 

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