गुस्से से भरा लोकतंत्र
इस चुनाव के दौरान देश के हर भाग में कहीं न कहीं फसाद हुए ।अभी दो दिन पहले की ही घटना है कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट में भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों में संघर्ष हो गया। इस झगड़े में ईश्वर चंद विद्यानगर की प्रतिमा तोड़ दी गयी। दूसरे दिन इसके विरोध में तृणमूल कांग्रेस ने रैली का आयोजन किया। विगत कुछ वर्षों से यह सब चल रहा है। ऐसा लग रहा है कि पूरा देश गुस्से में है। है, भगवान क्या क्या हमारा देश गुस्से से भरे लोकतंत्र में बदल गया है? क्रोध अब आम हो गया है। देशभक्ति की अभिव्यक्ति का राष्ट्रीय उद्गार हो गया है। आज देशभक्त होने के लिए किसी को देश से प्रेम की जरूरत नहीं है बस देश के भीतरी और बाहरी कल्पित दुश्मनों के प्रति गुस्से का इजहार जरूरी है। किसी भी आरोप में किसी दलित या मुस्लिम को पकड़िए और मार मार कर उसकी जान ले लें , कोई कुछ नहीं करेगा। नेताओं के भाषण सुनिए, संसद की बहस सुनिए सदा गुस्सा उफनता सा दिखेगा। कहीं भी शांति या मैत्री की बाद सुनी ही नहीं गयी। सेनेका ने लिखा है, सभी तरह के जुनून इंसानी तार्किकता पर हमले हैं जबकि गुस्सा मौषय के मानसिक स्वास्थ्य पर हमला है।
देशभक्ति का अर्थ मातृभूमि से प्रेम है अब अगर मातृभूमि के लोग ही नहीं रहेंगे जो उसकी संतान हैं मातृभूमि क्या होगी? मातृभूमि का अर्थ की उसमें रहने वाला हर आदमी जरूरी है। लेकिन गुस्से से भरी देशभक्ति के मामले में या तर्क सही नहीं है। जो लोग आपके धर्म से , आपकी जाती से या आपके समाज से भिन्न हैं उन्हें आप पसंद नहीं करते, तो आपके विचार से वे देशभक्त हो ही नहीं सकते। उसे खदेड़ दें , मार डाले और यदि ऐसा ना कर सकें तो उसके प्रति गुस्से से भरे रहिये। उससे का मनोविज्ञान उदासीन विचारों की परंपरा है जो कुछ कल्पित भय पर आधारित होती है। जैसे आप सोचते हैं कि आप गलत नहीं हैं और आपको बदला लेने का अधिकार है। यह भाव कल्पित बे को समाप्त करने के लिए बदला लेने के जुनून में बदल जाता है। तमाचे के बदले एक तमाचा हो तब तक सही है लेकिन तमाचे के बदले के लिए पूरा गला ही काट दिया जाय तो क्या सही होगा? ऐसी स्थिति में इंसान अपने गुस्से के सामने घुटने टेक देता है। मनुष्य केवल गुस्से का औजार बन कर रह जाता है। पूर्वज कह गए हैं कि गुस्सा विनाशक होता है। गुस्से के कारण जो हानि होती है उसकी जिम्मेदारी को सीकर नहीं करना व्यापक तौर पर गुमराह करना होता है। एक उदाहरण लें। यह केवल पाकिस्तान ही नहीं है जो हमारी सीमाओं का उल्लंघन करता है चीन भी अक्सर ऐसा करता है। लेकिन कोई यह नहीं कहता कि जो चीनी ऐसा करते दिख जाए उसके टुकड़े कर दिया जाय। जब चीन की बात आती है तो संयम और शांति की दलील दी जाती है।
इसलिए ऐसा नहीं है कि हम अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर सकते। हैं सोचते हैं कि विचारों का वातावरण हमारे पक्ष में है तो गुस्सा दिखाने में हर्ज ही क्या है। यह शाश्वत सत्य है कि कोई छोटा और बड़ा नहीं है बशर्ते किसीने खुद को आध्यात्मिक तौर पर अनुशासित नहीं किया हो। गुस्सा बताता है कि हम प्रेम में असफल हो गए हैं। संसद में राहुल गांधी का प्रधान मंत्री से गले मिलना एक आध्यात्मिक घटना थी पर बाद में जो दोनों के बयान आने लगे उसे लगा कि राहुल का अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाने की यह स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। हाल के दिनों में हमारे देश में असहिष्णुता और गुस्से का ज्वार आया हुआ है। अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह समझना जरूरी है कि क्रोध से भरे लोकतंत्र का कोई भविष्य नहीं है क्योंकि गुस्सा मनुष्य की आत्मशक्ति का विनाश है। हमने इतिहास से आंखें मूंद ली हैं और यह मान लिया है कि गुस्सा राहतरिय जिजीविषा को बल प्रदान करेगा या आने वाले दिनों में खुशी की ओर कदम बढ़ाने की शक्ति देगा, लेकिन यह विचार सही नहीं है।
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