आखिरी चरण में गरमाता चुनाव
जैसे-जैसे चुनाव अभियान समापन की ओर बढ़ रहा है इसमें सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं। कहीं बातों के तीर चल रहे हैं तो कहीं सीधे हाथ चल रहे हैं। चारों तरफ एक अजीब सा माहौल हो गया है। इस माहौल में कुछ भी तय कर पाना बड़ा कठिन है। खासकर के पश्चिम बंगाल में हिंसा बढ़ती जा रही है और उसके साथ ही बढ़ रही है राजनीतिक बयानबाजियां। अभी कुछ दिनों से यह भी कहा जा रहा है कि सीपीआईएम ने तृणमूल कांग्रेस और भाजपा को पराजित करने का आह्वान किया है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं सीपीआई (एम) के वरिष्ठ नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पार्टी के अखबार गणशक्ति में एक लेख लिखकर यह आह्वान किया है। वहीं दूसरी तरफ यह भी हवा है कि सीपीआईएम के निराश काडर भाजपा का साथ दे रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए जुटे हुए हैं। इसी के साथ - साथ राज्य में हिंसा भी बढ़ती जा रही है। बात यहीं खत्म हो तो गनीमत है। यहां तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तीखी बयानबाजी से गुरेज नहीं कर रहे हैं। उन्होंने पिछले हफ्ते से एक नया जुमला शुरू किया है वह है "हुआ तो हुआ।" इस जुमले में ऐसा तीखा व्यंग है जो विपक्ष को तार-तार कर देता है। सात चरणों के चुनाव अभियान में सबसे ज्यादा लाभ उन्हें ही मिला है।
पिछले दिनों भटिंडा में उन्होंने कांग्रेस के सैम पित्रोदा पर टिप्पणी की। यह 1984 के सिख दंगों पर पित्रोदा की टिप्पणी के जवाब में थी। नरेंद्र मोदी ने पंजाब की जनता से इस बहाने पूछा कि क्या राज्य में उनको ऐसी ही पार्टी की जरूरत है? पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर में 19 मई को चुनाव होने वाले हैं। यहां उन्होंने राजस्थान के अलवर में 19 वर्षीय युवती के सामूहिक बलात्कार का किस्सा उठाया । साथ ही बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता मायावती के साथ 1995 में गेस्ट हाउस कांड की घटना का जिक्र करते हुए सभा में उपस्थित जन समुदाय से पूछा कि आखिर क्यों बहन जी कांग्रेस की सरकार का राजस्थान में समर्थन कर रही हैं? चलिए हुआ सो हुआ। मोदी जी ने पूछा की क्या पंजाब 1984 के दंगों के लिए कांग्रेस को माफ कर देगा? क्या मायावती जी अलवर के सामूहिक बलात्कार पीड़ित महिला को देख कर मगरमच्छ की आंसू बहा रही हैं? जबकि मौजूदा गठबंधन के सदस्यों ने उन्हें कभी गालियां भी दी थी एक ऐसे चुनाव अभियान में जहां कुछ वोटो के लिए ऐसी -ऐसी अमर्यादित बातें चारों तरफ कही- सुनी जा रही हैं जिन्हें सुनकर आम आदमी के पक जाये। कान पर हाथ रख देने की इच्छा हो ।इतने पर ही बस नहीं है। प्रधानमंत्री जी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वह हर घाव को कुरेद रहे हैं। इस चुनाव की स्थिति देखकर ऐसा लग रहा है कि सत्ता हासिल करने के लोभ में कुछ भी किया जा सकता है। मोदी जी को यह मालूम है कि पंजाब और उत्तर प्रदेश में उनके पक्ष में चुनावी बयार थोड़ी धीमी है इसलिए ऐसे जख्म को कुरेदा जा रहा है जिसे पंजाब की जनता आग बबूला हो जाए । वही हालत उत्तर प्रदेश में भी है । वहां भी जातियों के जो समीकरण है उसके आधार पर समाजवादी पार्टी और बसपा मोदी जी के रथ को रोक सकती है । यही कारण है की उनकी तरकस में जितने भी तीर हैं वह उनका इस्तेमाल कर रहे हैं । कुछ तीर बेशक निशाने पर नहीं लगे। जैसे राजीव गांधी पर आई एन एस विराट युद्धपोत पर अपने रिश्तेदारों के साथ छुट्टी मनाने वाली बात गलत हो गई। लेकिन तब भी कुछ लोगों को तो इस पर विश्वास हो ही गया तो फिर इसका भी प्रयोग करने में हर्ज क्या है? उसी तरह एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने "खान मार्केट गैंग" जुमले का इस्तेमाल किया। इससे उनका इशारा आत्म संतुष्ट, खानदानी नेताओं की ओर था। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों की निगाहें लंदन न्यूयॉर्क और पेरिस पर होती है ना कि भोपाल बेगूसराय भटिंडा पर।
चुनाव के अंतिम चरण में पंजाब उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल पर सब कुछ निर्भर है। जो भी गठबंधन इन 59 सीटों पर विजयी होता है वही दिल्ली की गद्दी पर आसीन होगा। मोदी जी इस तथ्य को अच्छी तरह जानते हैं और इसलिए वे मायावती तथा ममता बनर्जी के खिलाफ तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। विपक्षी नेता भी इसी तरह के उपायों में मशगूल हैं। कहीं बातों के घाव बनाए जा रहे हैं कहीं हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। ममता बनर्जी और सुश्री मायावती अभी मोदी जी के निशाने पर हैं। चुनाव के अंतिम चरण में बहुत कम समय बचा क्या है और इतने कम समय में इन दोनों नेताओं के पास जमकर जवाब देने का वक्त नहीं रहा है। महाभारत का यह संदेश बहुतों को मालूम होगा कि प्रेम और राजनीति में सब कुछ जायज है। नतीजा चाहे जो हो चुनाव के बाद सामाजिक रूप से भारत वह नहीं रह जाएगा जो अब तक रहा है।
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