अब मानसून का क्या होगा
चुनाव के बादल तो बरस चुके और किसकी सरकार बनेगी इसके भी कयास लगाए जा चुके। जैसे ही यह सरगर्मियां खत्म होंगी वैसे ही सामने मानसून का मौसम होगा। देश की अर्थव्यवस्था या सरकार की लोकप्रियता मानसून के मिजाज पर ही निर्भर करती है। हालांकि भारतीय मौसम विभाग ने इस वर्ष सामान्य मानसून की भविष्यवाणी की है लेकिन यह अनिश्चित है क्योंकि मौसम विभाग की गणना मैं कई संभावनाएं हैं और कहा जा सकता है कि मानसून सामान्य से कम रहेगा। जैसी की भविष्यवाणी है बरसात पिछले 50 वर्षों की तुलना में 96% या 89 सेंटीमीटर होगी। अक्सर देखा गया है कि मौसम विभाग की भविष्यवाणी जब सामान्य वर्षा की होती है तो वह सामान्य से कम हुआ करती है। एक निजी संस्थान "स्काईमेट" ने भविष्यवाणी की है कि इस वर्ष जून से सितंबर के बीच सामान्य से कम वर्षा होगी। मौसम विभाग मानसून की पहली भविष्यवाणी अक्सर अप्रैल के महीने में करता है और जून के महीने में इसमें संशोधन किया करता है कि मौसम का किस क्षेत्र में क्या हाल है । इसकी अप्रैल वाली भविष्यवाणी विश्वसनीय नहीं है। पिछले साल भी मौसम विभाग में सामान्य वर्षा की बात कही थी और भारत में सामान्य से कम वर्षा हुई।
देश में कृषि मानसून की वर्षा पर निर्भर करती है। यही नहीं देश में जंगलों की सेहत भी इसी से घटती बढ़ती है। पिछले कुछ वर्षों से वर्षा सामान्य से कम हुई है और इस का संभावित असर कई तरह के प्रदूषण और वातावरण में परिवर्तन के रूप में दिखाई पड़ रहा है। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून देश में कुल संपन्नता का निर्धारण करता है । वर्षा ही महत्वपूर्ण नहीं है, बरसात के पानी का लंबे समय तक उपयोग कृषि ,शहरों और उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है । चिंतनीय विषय है कि गत वर्ष की जांच से पता चला है के भूजल का स्तर 52% गिर चुका है। राज्य सरकारों को नए कुएं खोदने तथा मौजूदा कूपों को युद्ध स्तर पर सुधारने के लिए कहां गया है । राज्य सरकारों ने बरसात के पानी को जमा कर किसानों के लिए उपयोगी बनाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है या उठाया भी है तो वह पर्याप्त नहीं है। नतीजा यह है कि किसानों की दशा बिगड़ती जा रही है और चुनाव में उनकी भलाई के लिए केवल यह कहा जाता है कि छोटे किसानों को कुछ रकम नगदी दे दी जाएगी। भारतीय उपमहाद्वीप में अगर सामान्य वर्षा होती है तो इससे दूर दूर तक खुशहाली आएगी। जैसा कि वैज्ञानिक मानते हैं कि सामान्य वर्षा से जो जल कण वातावरण में फैलेंगे वे ना केवल वातावरण के ताप को सोख लेंगे बल्कि बरसात को भी बढ़ावा देंगे। इससे औद्योगिक प्रदूषण कम हो सकता है साथ ही खेतों में कटाई के बाद बचे डंठल इत्यादि को जला देना से हुए प्रदूषण पर भी नियंत्रण रखता है। जिससे मानसून का स्थाईत्व बढ़ता जाता है। यही नहीं, घरों में पीने के लिए ताजा पानी भी उपलब्ध होता है । नीति आयोग के अनुसार वर्तमान जलापूर्ति का 4% पीने के लिए और 12% उद्योगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शहरीकरण से यह पीड़ा और बढ़ती जा रही है। शहरों के लोग पानी की कमी को महसूस करने लगे हैं। इसलिए बरसात के जल को एकत्र कर उपयोग करने की नीति तथा प्रयास आवश्यक है। राज्य सरकारें नए-नए जल क्षेत्र बनाकर वर्षा के पानी को एकत्र कर सकती हैं। फिलहाल सरकारें जल क्षेत्रों को एक वस्तु के रूप में देख रही हैं और नदियों की दुरावस्था, पोखरों तथा झीलों के प्रति उदासीन है। वह नहीं समझती कि ये बेशकीमती हैं। साफ और स्वच्छ जल बहुत तेजी से प्रदूषित हो रहा है और जल संरक्षण का सही इस्तेमाल, जल का पुनः इस्तेमाल और भूजल की रिचार्जिंग पर पूरा ध्यान नहीं दिया जाता है। राजनैतिक और प्रशासनिक इच्छा शक्ति में कमी के कारण गलत प्राथमिकताएं और जनता की उदासीनता सबसे प्रमुख हैं। इसमें ऊपर से नीचे तक फैली भ्रष्टाचार की संस्कृति और बढ़ावा देती है। जल संसाधन विकास योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं लेकिन समस्या ग्रस्त गांव की संख्या उतनी ही बनी रहती है। एक आंकड़े के मुताबिक यदि हम अपने देश के कुल क्षेत्रफल में से 5% क्षेत्र में होने वाली वर्षा के जल का संग्रहण कर सकें तो एक अरब लोगों को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 100 लीटर पानी मिल सकेगा।
मानसून सामान्य से कम होता जा रहा है और पानी तेजी से बर्बाद हो रहा है। भविष्य में कहीं ऐसा ना हो कि दुनिया में जल के लिए भी युद्ध हो। इसलिए हमें सचेत रहना जरूरी है ।
0 comments:
Post a Comment