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Thursday, October 15, 2015

स्याही को तेजाब ना बनने दें



15अक्टूबर 2015

शिव सेना ने मुम्बई में सुधीन्द्र कुलकर्णी के मुंह पर स्याही और रंग फेंक कर दुनिया को यह बता रंग और स्याही का और उपयोग हो सकता है साथ ही वह स्याही तथा रंग खुद ब खुद तेजाब की शक्ल अख्तियार कर सकती है और समाज चेहरे को बदरंग भी कर सकती है। आगे बढ़ने से पहले यहां यह बता देना जरूरी है कि आज के संचार प्रमुख जमाने में समाज में जब कोई घटना प्रभाव डालती है तो वह एक तरह से साइकी के पैराडाइम शिफ्ट की तरह हाेता है।एकदम वही साहेच होती है जो उस घटना का कारण बनी थी। आप में से बहुतों को याद होगा कि सन 2011 में पाकिस्तान के पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर को फकत इसलिये मौत के घट उतार दिया गया था कि वे पाकिस्तान के ईशनिंदा (पैगंबर मोहमम्द आलोचना) के तत्कालीन कानून से इत्तफाक नहीं रखते थे। सलमान तासीर अपने ही मजहब में मौजूद कमजोरियों के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में मार दिए गए। वे मुसलमान थे, पाकिस्तानी थी, ऊंचे ओहदे पर विराजमान थे, लेकिन धर्म के उन्माद ने उनकी जान ले ली।इस घटना ने पाकिस्तानियों के साथ बाकी दुनिया को भी सकते में डाल दिया था।तब शायद ही किसी को गुमान हुआ कि ये ऐसे घटनाएं भारत में भी घटने लग जाएंगी। अब भारत में देखें , सुधींद्र कुलकर्णी पर शिवसेना वालों ने इसलिए स्याही फेंक दी क्योंकि वे पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शिद महमूद कसूरी की किताब के लॉन्च के प्रमुख आयोजक थे। कुलकर्णी बीजेपी के लौहपुरुष अडवाणी के मीडिया सलाहकार रहे हैं। जब इस दौर का इतिहास लिखा जाएगा तब अडवाणी का नाम भारत के विराट हिंदुओं में लिखा जाएगा। उनका नाम शायद बाला साहब ठाकरे जैसे विराट हिंदू से तो ऊपर ही होगा। कुलकर्णी हिंदू हैं, भारतीय भी हैं। अडवाणी जैसे विराट हिंदू के सलाहकार भी रहे हैं, लेकिन इन सबके बावजूद उन्हें बख्शा नहीं गया। कुलकर्णी के मुंह पर स्याही फेंककर शिवसेना ने खुद को ज्यादा हिंदू और ज़्यादा भारतीय साबित कर दिया। ठीक वैसे ही जैसे सलमान तासीर के हत्यारों ने उनकी हत्या करके खुद को बड़ा मुसलमान साबित किया था। महाराष्ट्र तक को ही अपनी ‘कर्मभूमि’ बनाए रखने वाली पार्टी शिवसेना का विरोध हो सकता है जायज हो लेकिन, उनका यह काम घोर निंदनीय है। विरोध का अपना तरीका होता है। वह शांतिपूर्ण भी हो सकता था, लेकिन किसी का मानमर्दन, अस्वीकार है। शिवसेना ने कुछ ही दिन पहले पाकिस्तानी गज़ल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम रद्द करने पर मजबूर कर दिया था। महाराष्ट्र की सरकार तब भी नाकाम साबित हुई थी और आज भी नाकाम रही। सरकार में शिवसेना की भी भागीदारी है और कार्यक्रम को मंजूरी मिलने के बाद पार्टी का ऐसा रुख सिर्फ यही दिखा रहा है कि पार्टी बीजेपी से अपना स्वार्थ साधने में लगी है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी से मिली हार के बाद शिवसेना इस प्रकार की हरकत कर रही है जिससे बीजेपी की सरकार को असमंजस की स्थिति का सामना करना पड़े। यही नहीं, केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी पर आजकल शिवसेना खूब हमले कर रही है। यह वही पीएम मोदी हैं जिन्हें पार्टी सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे काफी पसंद किया करते थे और पार्टी ने हमेशा जिनका साथ दिया। ऐसे तमाम मौके आए हैं जब शिवसेना, राज्य और खास तौर पर मुंबई में अपने को सरकार से ऊपर की हस्ती साबित करने का प्रयास करती रही है।आज वह वाकया बताना भी प्रासंगिक हो जाता है जब भारत और पाकिस्तान के बीच मैच के लिए बीसीसीआई के अधिकारियों को शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे से मुलाकात कर मैच कराने की अनुमति मांगनी पड़ी थी। कहा जाता है कि उनसे अनुमति मिलने के बाद यह मैच हो पाया था। तब भी यह देश और राज्य सरकार के लिए शर्मिंदगी का विषय था और आज भी है। सवाल तो तब यही मेरे ज़हन में उठा कि यदि मैच गलत था तो क्यों इजाजत दी। फिर बीसीसीआई वाले क्यों इजाजत लेने गए थे। क्या ठाकरे साहब सरकार थे। कुलकर्णी ने भी यही गलती की कि वे 'इजाजत' लेने गए थे और इजाजत नहीं मिली। वे बता रहे हैं कि कार्यक्रम के एक दिन पहले वह उनसे मिलने गए थे और चर्चा की थी। कुलकर्णी जी तो पहले ही जानते हैं कि शिवसेना का विरोध का तरीका क्या रहता है। हम पहले से ही कलबुर्गी, पनसारे और दाभोलकर को खो चुके हैं, अगर ऐसी ही गतिविधि जारी रही तो कल ये लोग हमारे बच्चों के स्कूलों पर भी हमला करने लगेंगे। ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि यदि सरकार की इच्छाशक्ति होती तो यह देश को शर्मसार करने वाली वारदात नहीं हो पाती। लेकिन राज्य की देवेंद्र फड़णवीस सरकार भले ही घटना के बाद लम्बी बातें करे लेकिन जमीन पर वह नाकाम ही साबित हुई है। दूसरी बात कि ऐसी बातों को समाज कभी बर्दाश्त ना करे। अगर आप इसी तरह बर्दाश्त करते रहे तो आपको पता भी नहीं चलगा कि स्याही कब तेजाब बन गई।

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