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Tuesday, October 6, 2015

इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं



5 सितम्बर

देश में दादरी कांड इन दिनों छाये हुआ है। सभी सियासी रंग और जमात के लाेग अपनी गोटियां बिछा रहे हैं। कोई कह रहा है कि खानपान को लेकर बंदिशें हो रहीं हैं और कोई खनपान की पवित्रता के नाम पर खून खराबे को हवा दे रहा है और कोई सेकुलर भारत का रोना रो रहा है। पूरी कवायद को दखें तो ये नेता दादरी कांड में मरे हुए लोगों की लाशों पर वोटों की फसल उगाने में लगे हैं। यह भी एक विडंबना है कि उधर वे फेसबुक के अमरीका स्थित ऑफिस में लिखते हैं -‘अहिंसा परमो धर्मः’ और इधर उनके भक्त एक बूढ़े को बेवकूफाना अफवाह के चलते पीट-पीट कर मार देते हैं! वाह क्या गजब का तालमेल है भगवान और भक्तों के बीच!! परसाई जी का एक लेख था ‘’ आवारा भीड़ के खतरे’उसमें उन्होंने लिखा था कि ‘दिशाहीन और हताश युवकों की भीड़ दिग्भ्रमित होती है, जिसका प्रयोग खतरनाक विचारधारावाले महत्वाकांक्षी लोग कर सकते हैं।’ आज यही भीड़ लगातार बढ़ रही है। राष्ट्रवाद के नाम पर इन्हें दिग्भ्रमित किया जा रहा है। परसाई ने सही कहा था कि भारत सिर्फ ढाई विचारधाराओं वाला देश है, कांग्रेस की गांधीवादी विचारधारा, कम्युनिस्ट विचारधारा और आधी सोशलिस्ट विचारधारा। आज इसी ढाई विचारों के सोच पर ‘औना-पौना’ छद्म राष्ट्रवाद हावी हो गया है। यह कांग्रेस की बहुत बड़ी हार है कि जिसने इतने साल शासन में होने के बावजूद गांधी और नेहरू के विचारों को पोषित नहीं किया। यह तो भला हो अन्य पश्चिमी विचारकों का जिन्होंने गांधीवाद को जिंदा रखा। हमारे देश की विडम्बना है कि दादरी कांड हो या कोई और, मीडिया में कुल मिलाकर हत्या की कहानी कुछ इस तरह से पेश होती है कि अपराधी का ‘‘निश्चय’ होने की जगह ‘अपराध’ का ‘मैनेजमेंट’ होने लगता है। यह अपराध शास्त्र की​ एक नयी व्याख्या सामने आ रही है। हम आजकल इसी का अभ्यास देख रहे हैं। दादरी की कहानी इसी तरह बन रही है। कलबुर्गी की हत्या हो, पंसारे की या दाभोलकर की हत्या या कि ऐसी और हत्याएं, वे सब मीडिया पर देर-सबेर खबर बनी हैं और पहले उन्होंने अपराधी की ओर उंगली उठाई है। लेकिन ऐसी हर हत्या एक-दो दिन खबर बनी रही है। हर हत्या की आलोचना हुई है और आलोचकों ने हत्यारों को पकड़ने, सजा देने की गुहार की है । उन्होंने कहा कि जनतंत्र का वध करने वाली शक्तियां बढ़ रही हैं, अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा बढ़ रहा है इत्यादि । लेकिन जितना समय इस आलोचनात्मकता को मिला है उतना ही समय हत्या के पक्षकारों को दिया गया है। वे भी उन हत्यारों को डिफेंड करने सामने आते रहे हैं। ऐसे पक्षकार गजब के प्रतिभाशाली और कुतर्की होते हैं: अपराधी पकड़े तक नहीं गए होते लेकिन उन कथितों का बचाव पहले किया जाने लगता है। वे ऐसे अंतर्यामी हो जाते हैं कि जिन ‘‘अनामों’ पर शक किया जा रहा है, उन्हीं ‘‘अनामों’ को वे डिफेंड करने लगते हैं कि वे बेकसूर हैं और उनके खिलाफ राजनीति हो रही है। ऐसी बातों से ऐसा लगने लगता है कि जिसकी हत्या की गई है शायद वही अपराधी है! तर्क के आगे कुतर्क भारी होने लगता है। अपराधी को संदेह का लाभ मिलने लगता है। मसलन ,राजद अध्यक्ष और पूर्व मुख्यंमत्री लालू प्रसाद यादव ने भाजपा पर साम्प्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि आरक्षण और सामाजिक न्याय की धारा की गोलबंदी से डरी भाजपा और मीडिया का एक वर्ग खानपान जैसे मुद्दों के पीछे मुंह छिपा रहा है। यादव ने अपने ट्वीट के जरिए शनिवार को एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा पर करारा प्रहार किया और कहा, ‘‘मोदीजी, रहन सहन, खान पान और आस्था के बिन्दुओं पर फसाद करने की राजनीति बंद करो। इसके तुरंत बाद अपने दूसरे ट्वीट में राजद सुप्रीमो ने लिखा,‘‘मीडिया का एक वर्ग भाजपा से मिलकर दलितों और पिछड़ों के अधिकारों के मुद्दों से ध्यान भटकाने की चेष्टा कर रहा है। जब तक ऐसे मामलों में आम जनता धर्म से ऊपर उठकर नहीं सोचेगी, तब तक ये रुकने वाला नहीं है । यह घटना बता रही है कि हमारे समाज में धार्मिक कट्टरता बढ़ती जा रही है और आप अन्य घटनाओं को भी देखेंगे तो जातीय कट्टरता भी बढ़ रही है । ऐसी हरकतों से पूरे देश की पूरे विश्व में बदनामी हो रही है । ऐसी बदनामी की बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ती है, शायद इसका अन्दाजा इन घटनाओं में शामिल लोगो को नहीं होता । हैरानी की बात है कि कुछ शक्तिशाली देश आसमान से बम गिराकर शांति लाना चाहते हैं और आतंकवादियों के नाम पर निर्दोष नागरिकों को अपना शिकार बना रहे हैं । धार्मिक कट्टरता की कितनी भारी कीमत ये देश चुका रहे हैं इसका अन्दाजा भी नहीं लगाया जा सकता ।

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,

हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।

हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है और रहना भी चाहिये, क्योंकि वर्तमान में सिर्फ धर्मनिरपेक्ष देश ही कायम रह सकते हैं और धर्म के आधार पर बनने वाले देशों का हाल तो पाकिस्तान,सीरिया,इराक और अफगानिस्तान जैसा ही होता है । हमें हर प्रकार से किसी भी धर्म की धार्मिक कट्टरता को रोकना है, क्योंकि इसी में देश का हित है। हम फिक्रमंद हैं कि तिरंगे पर दस्तखत किए गए, लेकिन किसी का राष्ट्रवाद दादरी में गलत शुबहे के चलते एक निरीह वृद्ध की हत्या और बेटे की पिटाई पर जागता नहीं ? वाह फिर भी हम देशभक्त हैं। संविधान कहता है हम धर्म निरपेक्ष राष्ट्र हैं। पर, हमारी राजनीति स्वयं ही संविधान की विरोधी है। धर्म निरपेक्षता की सरकारी और राजनैतिक व्याख्या क्या है आम आदमी को नहीं पता किन्तु आम आदमी जो समझता है वह है कि भारत में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति का एक ही धर्म है और वह यह है कि वह भारतीय है। एक बात समझ लें कि -‘मैं श्रेष्ठ हूं’ यह आत्मविश्वास होता है लेकिन ‘मैं ही श्रेष्ठ हूं, यह अहंकार होता है।’ आज के हालात देख कर तो यही लगता है ,

चीड़-वन में आंधियों की बात मत कर,

इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं ।

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