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Friday, October 16, 2015

क्या रहस्य पर से परदा हटेगा?


16 अक्टूबर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों को भरोसा दिया है कि अगले साल 23 जनवरी से नेताजी से जुड़ी फाइलें सामने लाई जाएंगी। पीएम ने ट्वीट कर इस बारे में खुद जानकारी दी है। 23 जनवरी को ही नेताजी का जन्मदिन होता है। करीब 130 फाइलें केंद्र सरकार और पीएमओ के पास पिछले 70 साल से मौजूद हैं। इन फाइलों को सीक्रेट बताकर केंद्र की अब तक किसी भी सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया। मोदी जी ने इस संदर्भ में ट्वीट किया कि ‘इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की जरूरत नहीं है। जो देश अपना इतिहास भूल जाते हैं, उनमें इतिहास बनाने की ताकत भी खत्म हो जाती है। नेताजी से जुड़ी फाइलें डिक्लासिफाइड करने का प्रॉसेस 23 जनवरी, 2016 से शुरू होगा। उस दिन सुभाष बाबू का जन्मदिन है। हम दूसरे देशों से भी नेताजी से जुड़ी फाइलें डिक्लासिफाई करने को कहेंगे। इसकी शुरुआत रूस से दिसंबर में होगी(पीएम दिसंबर में रूस के दौरे पर जाने वाले हैं)।’ अब भी 130 फाइलें केंद्र सरकार के पास हैं जो क्लासिफाइड हैं , और 37 सीक्रेट फाइलें पीएमओ में हैं। नेताजी के परिजन और विशेषज्ञों का एक समूह बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंचा था। 51 लोगों के इस समूह में नेताजी के परिवार से जुड़े 36 लोग, बाकी विशेषज्ञ थे। नेताजी पर शोध करने वाले लेखक अनुज धर और सुरक्षा विशेषज्ञ अवकाश प्राप्त जनरल जी.डी. बख्शी भी इस ग्रुप में शामिल हैं।
इस ग्रुप ने पीएम से नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक की जाने की मांग की थी। पिछले 70 साल में किसी भी सरकार ने नेताजी से जुड़ीं फाइलें पब्लिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। सरकारें यही कहती रही हैं कि इन फाइलों में बेहद सेंसेटिव इन्फॉर्मेशन हैं। अगर इन फाइलों को सार्वजनिक किया जाता है तो भारत के कुछ देशों से रिश्ते खराब हो सकते हैं। लेकिन किसी भी सरकार ने यह नहीं बताया कि रिश्ते आखिर क्यों खराब होंगे। उन फइलों में क्या है? विशेषज्ञों का मानना है कि 1945 के बाद नेताजी चीन में थे पर किसी भी सरकार ने इस लिंक की जांच कराने का प्रयास नहीं किया। जब तक सारी जानकारी एक साथ रखकर इसकी जांच नहीं की जाएगी तब तक नेताजी से जुड़ा सच सामने नहीं आएगा। फाइलों को गोपनीयता के दायरे से हटा कर सार्वजनिक करने के साथ ही मोदी जी ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को भी निशाने पर ले लिया है। कांग्रेस के लिए यह लज्जाजनक स्थिति है कि पार्टी के प्रतिद्वंद्वी उस व्यक्ति के जीवन और मृत्यु के तथ्यों को उजागर कर रहे हैं जो कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष थे। जो फाइलें केंद्र सरकार के पास थीं उन्हें अबतक सार्वजनिक न करने और उस नेता के जीवन के राज को गोपनीय रखने की कोई विश्वसनीय वजह भाजपा के पास भी नहीं है। इसके पूर्व जब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फाइलों को सार्वजनिक किया था तब संसदीय मामलों के मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा था , 'पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी से जुड़ी कुछ गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक किया है। यह अच्छा है। केंद्र सरकार इस तरह का कोई भी फैसला करने से पहले इसका अध्ययन करने की जरूरत को समझती है क्योंकि इसका असर अंतरराष्ट्रीय समुदाय, दूसरे देशों, पड़ोसी देशों के साथ हमारे संबंधों पर पड़ता है।' उन्होंने आगे कहा, 'मैं निजी तौर पर यह महसूस करता हूं कि देश के लोगों का यह अधिकार है कि वे नेताजी के मसले की हकीकत को जानें। सरकार भी इसके बारे में सोचेगी और यह फैसला करेगी कि कब और कैसे इसे किया जा सकता है।' गोपनीय पत्रों को सार्वजनिक करना हमेशा से मौजूदा राजनीति के ऐतिहासिक प्रमाणीकरण का एक स्त्रोत रहा है। अब अगर विकिलीक्स विवाद को ही लें तो इससे संप्रभु राष्ट्रों के रिश्तों में जटिलताएं बढ़ीं। इसी तरह 1990 के दशक की शुरुआत में मित्रोखिन पेपर्स जारी होने से भारत के कुछ प्रमुख वाम नेताओं और नौकरशाहों की विश्वसनीयता पर अविश्वास बढ़ा। इन खुलासे से सरकार भी सकते में आ गई। उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में विपक्ष ने जांच की मांग की। इस तरह के खुलासे ने उन दिनों की राजनीति को एक आकार देने में अपना योगदान किया। नेताजी की रहस्यमयी गुमशुदगी से जुड़े तमाम किस्से और कहानियां हैं, कई दावे हैं। 70 साल बाद ही सही पश्चिम बंगाल सरकार ने ये बात सार्वजनिक कर दी कि 1945 में नेताजी की मौत नहीं हुई लेकिन 1945 के बाद नेताजी कहां गए, कहां रहे, ये राज आज भी कायम है। क्या यह उन फाइलों में दफन है जो लुटियन जोन में कड़ी सुरक्षा के बीच धूल फांक रही हैं और अब मोदी जी उन्हें सार्वजनिक करने जा रहे हैं।

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