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Thursday, October 8, 2015

विकास का ये बहाना क्यों


8 अक्टूबर
महाभारत में यक्ष और युधिष्ठिर के बीच हुए संवाद में यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि दुनिया में सबसे मूल्यवान क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया- समय। वस्तुतः समय ही किसी भी स्थिति घटना या विचार की सकारात्मकता और नकारात्मकता को तय करता है। कहा जा सकता है कि सकारात्मकता एक सापेक्ष अवधारणा है। वह दिक और काल के संदर्भ में ही व्याख्यायित होगा। यानी समय, परिस्थिति और स्थान के सदर्भ से काटकर अगर उसे देखेंगे तो वह एक लुजलुजा-सा पद बनकर रहा जाएगा। अब दादरी कांड को ही लें। यह एक साम्प्रदायिक उन्माद का उन्मेष था, ऐसा ही कुछ वाराणसी में भी हुआ। बेशक दोनो के कारण अलग- अलग थे , लेकिन चरित्र एक ही था। इन घटनाओं को भाजपा नेताओं ने यह कह कर नजर की ओट कर दिया कि यह सब सरकार के विकासात्मक कार्यो को छोटा बनाने की साजिश है। मोदी जी ने भी कहा कि ये सब से अलग मेरा लक्ष्य केवल विकास है। लेकिन यहां सवाल उठता है कि विकास और साम्प्रदायिकता की तुलना कितनी वाजिब है। क्या डिजीटल इंडिया के कारण आयी आधुनिकता देश की पारम्परिक संवेदनाओं और भावुक संवेगो की प्रतिगामी है। इस अवसर पर एक वाकया याद आता है। चरखे या स्वदेशी आंदोलन में विदेशी कपड़ों और सामान की होली जलाने को लेकर महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के बीच हुई असहमति और वाद-विवाद को याद किया जा सकता है। (टैगोर इसे पश्चिम से दिल और दिमाग के स्तर पर अलगाव तथा आध्यात्मिक आत्मघात मानते थे। चरखे से बुनाई पर उन्होंने कहा कि जो लोग दूसरे काम के योग्य हैं, उनके द्वारा चरखे पर सूत कातने से क्या भला होगा।) इसमें रवींद्रनाथ का पक्ष सकारात्मक लग सकता है और गांधीजी की कार्रवाई नकारात्मक। तर्क के स्तर पर चाहे रवींद्रनाथ गलत नहीं थे, लेकिन बाद के इतिहास ने गांधीजी के आंदोलन को ज्यादा सही सिद्ध किया। सही से ज्यादा देश के लिए सार्थक भी। भारत वह नहीं है, जो हम सोचते हैं। यह हमारी सर्वाधिक विचित्र कल्पनाओं से भी परे है। एक शक्तिशाली और हिंदू राष्ट्र भाजपा का भारत है, जिस पर केंद्र से ताकतवर व ईमानदार नेता आसानी से शासन कर सकता है। जिस भारत में हम रहते हैं वह ठीक इसके उलट है। केंद्र जितना ही ताकतवर होता है, राज्य उतने ही बेकाबू होते जाते हैं। यदि आप इतिहास पर नजर डालें तो आपको हमेशा ऐसा ही होता दिखाई देगा। राष्ट्र के जटिल संघीय ढांचे और अत्यंत स्वतंत्र क्षेत्रीय दलों को ठीक से संभाल लेना ही भारत पर शासन करने की कुंजी है। केंद्र की ज्यादातर सरकारें अपने शुरुआती उत्साह में यह तथ्य भूल जाती हैं। जब तक उन्हें इस तथ्य का अहसास होता है, काफी देर हो चुकी होती है।मोदी सरकार के साथ दिक्कत यह है कि यह एक साथ कई चीजें करने की कोशिश कर रही है और यह नहीं कहा जा सकता कि उनमें सफल हो रही है। यह राजनीतिक अनुभवहीनता का चिह्न है, नाकामी का नहीं। भारत पर शासन चलाना आसान नहीं है। हमारी समस्याओं को मात देना ऐसा ही है जैसे रक्त बीज राक्षस का नाश। उत्तर आधुनिकता के एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण चिंतक जाॅक देरिदा के कथन को समझें तो शायद नकारात्मकता तथा सकारात्मकता और समय के संबंध को समझने में ज्यादा सही दृष्टि मिल सकती है। जाॅक देरिदा का मानना है कि ‘चरम निराशा की अवस्था में भी किसी उम्मीद की आकांक्षा समय के साथ हमारे रिश्ते का एक अभिन्न अंग है। नाउम्मीदी, इसलिए है, क्योंकि हमें उम्मीद है कि कुछ अच्छा और सुंदर घटित होगा। मुझे लगता है कि सकारात्मकता से ज्यादा सार्थकता पर बल दिया जाना चाहिए। ’ इतिहास में इसका एक बड़ा दिलचस्प उदाहरणहै। स्वाधीनता संग्राम में भगत सिंह द्वारा संसद में बम फेका जाना ही नहीं महात्मा गांधी का करो या मरो जैसा आंदोलन भी अपने ध्वन्यार्थ में नकारात्मक है, लेकिन इतिहास इन दोनों ही घटनाओं की व्याख्या सकारात्मक रूप से ही करेगा। इसलिए कई बार लगता है कि सकारात्मकता और नकारात्मकता वस्तुतः ताकत के खेल के रूप में अपना अर्थ ग्रहण करते हैं। यह पद एक ऐसा औजार है, जिससे सत्ता हर घटना की व्याख्या को अपने पक्ष में मोड़ लेने की कोशिश करती है। यहां जो सबसे बड़ी गड़बड़ी है वह है कि नागरिकों को सत्ता यह मानने पर मजबूर करती​ है कि ‘साम्पदायिकता या फासीवाद या कम्युनिज्म विकास का प्रतिगामी है।’ 1930 के बाद के काल में तीन नेता फ्रैंकलिन रूजवेल्ट, हिटलर और स्टालिन ने अपने अपने देश में विकास के कीर्तिमान स्थापित किये। इसलिये यह कहना सही नहीं होगा कि ​विकास केवल लोकतंत्र में ही संभव है। किसी दलदल भरे तालाब के किनारे कंगन लेकर बैठने वाले शेर की कथा नहीं है लोकतंत्र, यह शेर और बकरे के एक साथ रहने और फलने फूलने की व्यवस्था है। सबसे बड़ी जरूरत है कि हमारे समय में, जो कुछ भी हाशिये पर धकेल दिए गए मनुष्य के पक्ष में है, वही सार्थक है और वही सही अर्थ में सकारात्मक है तथा विकास के लिये आदर्श स्थिति है।

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