9 अक्टूबर
सरकार विदेशों में जमा कालेधन की घोषणा करने वालों को लोभ दे रही है और धमका भी रही है। लेकिन अबतक क्या मिला। फकत 4147 करोड़ रुपये वह भी 638 घोषणाओं में। यानी मोटे तौर पर 6 करोड़ रुपये प्रति घोषणा। इससे सरकार को 30 प्रतिशत टैक्स मिलेगा। यह बहुत छोटी रकम है, चुनाव के दौरान किये गये दावों के मुकाबले। चुनाव के दौरान तो कहा गया था कि विदेशों में इतना काला धन जमा है कि हर आदमी के खाते में 15 लाख रुपये आ जाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बहुत कम रकम हाथ आयी। यह सब देख कर लगता है कि मोदी एंड कम्पनी ने जनता को केवल सब्जबाग दिखाया था। वैसे , कहीं जेटली का कोरा वादा तो नहीं, आयकर छूट की सीमा बढ़ाने की बात?
राजनीति में जनता को तरह-तरह के सब्जबाग दिखाने का काम तो हरेक पार्टी करती है। बीजेपी भले ही नयी तरह की राजनीति करने का दावा करे लेकिन उससे भी ये अपेक्षा करना नादानी ही होगी कि वो जनता को नहीं बरगलाएगी। अब वित्त मंत्री अरुण जेटली का ये बयान भी बरगलाने वाला ही लग रहा है कि सरकार आयकर छूट की सीमा को बढ़ाने पर गम्भीरता से विचार कर रही है। अपने फेसबुक पोस्ट में जेटली ने जिस रास्ते जाने का इशारा किया है, वो ख़बर झूठी, खुशी लायक ही लग रही है, ठीक वैसी ही जैसे चुनाव के पहले हर खाते में 15 लाख लाने का वादा किया गया था। वित्त मंत्रालय के अफ़सरों का कहना है कि सरकार की टैक्स से होने वाली आमदनी का हाल अच्छा नहीं है। जेटली की ओर से उनके अफसरों ने देश को बताया कि चालू वित्त वर्ष में कर-संग्रह करीब 7 प्रतिशत कम रहने वाला है। व्यवहार में ये ज्यादा ही होगा। क्योंकि अफसरों की ये जानी-पहचानी अदा है कि वो उपलब्धि को थोड़ा बढ़ाकर और कमजोरियों को थोड़ा घटाकर बताते हैं। सरकार का कहना है कि बजट अनुमान के लिहाज से सरकार 14.5 लाख करोड़ रुपये का टैक्स जमा नहीं कर पाएगी। ये सात प्रतिशत घटा तो 13.5 लाख करोड़ रुपये के आसपास थम जाएगा। यहां एक सवाल उठता है कि बेवजह ऐसे कानून बनाये ही क्यों जा रहे हैं? सरकार का अनुमान है कि वित्तीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का 3.9 प्रतिशत तक रहेगा। राजस्व और खर्च के बीच के फर्क को वित्तीय घाटा कहते हैं। इसे तीन प्रतिशत तक लाने का इरादा था। वित्तीय घाटे की भरपायी सरकार कर्ज से करती है। रिजर्व बैंक ने जीडीपी की विकास दर 7.4 प्रतिशत रहने की उम्मीद जतायी है। जबकि वित्त मंत्री का लक्ष्य 8.5 प्रतिशत का था। यानी अर्थव्यवस्था उतने अच्छे संकेत नहीं दे रही है, जिसका भरोसा फरवरी में वित्त मंत्री ने बजट पेश करते वक्त जताया था। एक ओर अर्थव्यवस्था की ये दशा है और दूसरी ओर बिहार चुनाव में माहौल को खुशगवार बनाने के लिए वित्तमंत्री ने ये बयान दिया है कि सरकार आयकर छूट की सीमा को बढ़ाने पर गम्भीरता से विचार कर रही है। वित्तीय ढांचे पर गौर करें तो लगेगा कि आयकर छूट की सीमा बढ़ाने की बात झूठ है। बीजेपी के दो चहेते - बाबा रामदेव और सुब्रह्मण्यम स्वामी तो ये नुस्ख़ा भी देश को बेच चुके हैं कि आयकर को पूरी तरह से ही खत्म कर देना चाहिए। लेकिन न जाने क्यों, इतने बड़े ‘वित्तीय सुधार’ पर सरकार ने अपना मुंह सिल रखा है? मोदी जी, वैसे तो बहुत वाचाल हैं, लेकिन गूढ़ विषयों पर ‘मन की बात’ मन में ही रखते हैं। वो भला क्यों देश को ये बताने के लफ़ड़े में पड़ें कि योजना आयोग के बाद अब आयकर की अन्त्येष्टि की बारी आ गयी। उन्हें बोलना भी होगा तो लाल क़िले के प्राचीर से बोलेंगे, संसद में बोलेंगे, बिहार में चुनाव सभाओं में बोलेंगे या विदेश में भारतवंशियों के बीच बोलेंगे। वहां पर बोलना भी तो भारत में सीधा प्रसारित होता है। पता नहीं क्यों, मोदी जी ऐसे विषयों पर बोलने की अपेक्षा रखते हैं, जो उन्हें पसन्द नहीं हैं। उन्हें ये बताने में गर्व होता है कि कितने करोड़ लोगों के बैंक खाते खुल गये, 95 लाख शौचालय बन गये (कहां-कहां, ये सिर्फ सरकार जानती है या उसका सांख्यिकी मंत्रालय), हजारों करोड़ रुपये की एलपीजी सब्सिडी का पैसा सरकारी खजाने में बचने लगा, क्योंकि उन्होंने ‘परित्याग’ का जो उपदेश दिया था उसे आज्ञाकारी देश ने अंगीकार कर लिया। मोदी जी से यदि सवाल कर लिया तो मोदी भक्त भड़क जाएंगे। कहेंगे - कांग्रेस का दलाल है, भ्रष्ट है, बेईमान है, एजेंट है, राष्ट्रद्रोही है, नकारात्मक सोच फ़ैलाने वाला ग़द्दार प्रेस्टीच्यूट है। उस पर साम्प्रदायिक और तुष्टिवादी होने का ठप्पा भी पलक झपकते लगा दिया जाएगा। ख़ैर… लोकतंत्र में ये सहज है। समाज ने तो सीता को भी कब बख्शा था, जो किसी और के साथ मुरव्वत करेगा!
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